डाॅ. सुभाष सी पांडे ने बहुत ही विस्तृत और जानकारीपूर्ण स्टोरी साझा की है जो मूर्ति विसर्जन के पर्यावरणीय प्रभावों और इसके प्रति प्रशासन की अनदेखी पर केंद्रित है। मूर्ति विसर्जन से जुड़ी खबरें पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण के नजरिए से हमेशा महत्वपूर्ण रही हैं। हाल के वर्षों में विशेष रूप से गणेश और दुर्गा प्रतिमाओं के विसर्जन के बाद होने वाले जल प्रदूषण पर कई रिपोर्ट्स सामने आई हैं। मूर्तियों के निर्माण में प्लास्टर ऑफ पेरिस (POP) का उपयोग, और उन पर इस्तेमाल होने वाले केमिकल युक्त रंग जलस्रोतों को प्रदूषित करते हैं। इनसे भारी धातुओं जैसे मरकरी, सीसा, और कैडमियम का पानी में मिलना, पानी के जहरीले होने और एक्वाटिक जीवन को नुकसान पहुंचाने का बड़ा कारण है।
2014 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने इस संदर्भ में सख्त आदेश जारी किए थे और सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) ने 2010 में ही मूर्ति विसर्जन के लिए गाइडलाइंस तय की थीं, ताकि पर्यावरणीय नुकसान को रोका जा सके। इसके तहत यह निर्देश दिया गया था कि मूर्तियों के विसर्जन के लिए बनाए गए कुंडों और घाटों से विसर्जन के 24 घंटे के भीतर सभी सामग्री को निकालकर सही तरीके से डिस्पोजल किया जाए, ताकि जल प्रदूषण को रोका जा सके।
हालांकि, जमीनी हकीकत इससे भिन्न है। हाल की रिपोर्ट्स के अनुसार, कई स्थानों पर मूर्तियों के विसर्जन के बाद कुंडों और जलस्रोतों से मूर्तियों को सही समय पर नहीं निकाला जाता, जिससे प्रदूषित तत्व पानी में घुलने लगते हैं। उदाहरण के तौर पर, मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल में मूर्ति विसर्जन के बाद 7 से 10 दिनों तक मूर्तियों को कुंडों में छोड़ दिया गया। इस देरी से जलस्रोतों में केमिकल्स और भारी धातुएं घुलकर पानी को दूषित कर देती हैं, जो इंसान और जलजीवों दोनों के लिए खतरनाक साबित हो सकता है।
मध्य प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (MPPCB) द्वारा किए गए टेस्ट में भी कई खामियां सामने आई हैं। 2023 में जहां 13 पैरामीटर्स पर पानी की जांच की गई थी, 2024 में केवल 4 पैरामीटर्स पर रिपोर्ट बनाई गई। यह रिपोर्ट अधूरी और तकनीकी तौर पर गलत मानी जा रही है, क्योंकि इसमें भारी धातुओं की जांच को पूरी तरह से नजरअंदाज किया गया है। साथ ही, कई महत्वपूर्ण मापदंडों जैसे पानी की टर्बिडिटी और कलर की जांच नहीं की गई, जो जल प्रदूषण के अहम संकेतक होते हैं।
इसके अलावा, स्थानीय निकायों और पर्यावरणीय एजेंसियों के बीच समन्वय की कमी भी इस समस्या को बढ़ा रही है। मूर्ति विसर्जन के समय से लेकर बाद की प्रक्रियाओं में लापरवाही से जल स्रोतों का प्रदूषण बढ़ता जा रहा है।
कुल मिलाकर, मूर्ति विसर्जन को लेकर जारी गाइडलाइंस का ठीक से पालन न होना और पर्यावरणीय एजेंसियों की लापरवाही बड़े पैमाने पर जल प्रदूषण का कारण बन रही है। इस स्थिति को सुधारने के लिए प्रभावी निगरानी और सख्त कार्रवाई की आवश्यकता है।