इस साल देश के ज्यादातर राज्यों में मॉनसून ने जमकर बारिश करवाई, हालांकि अब कई हिस्सों से मानसून विदा हो चुका है। मौसम में आए इस बदलाव के पीछे का मुख्य कारण ला नीनो को माना जा रहा है। भारतीय मौसम विभाग (IMD) ने बताया कि इस साल ला नीना के प्रभाव का सही अनुमान नहीं लगाया जा सका, जो मौसम में अप्रत्याशित बदलाव का कारण बना।
ला नीनो को लेकर गलत अनुमान
अमेरिकी वेदर एजेंसी NOAA (नोआ) ने मई में ला नीनो के आगमन को लेकर अलर्ट जारी किया था और संकेत दिया था कि जल्द ही ला नीने की स्थिति उत्पन्न होगी। हालांकि, उनकी यह भविष्यवाणी गलत साबित हुई। इसके बाद उन्होंने बताया कि यह मई के दूसरे भाग में आएगा, लेकिन अब अक्टूबर आ गया है और आ नीनो साउदर्न ऑस्किलेशन (ENSO) की स्थिति अभी भी बनी हुई है। विशेषज्ञों का मानना है कि ला नीनो की शुरुआत में देरी से ग्लोबल स्तर पर अक्टूबर से देखी जा रही गर्मी की लहर लंबे समय तक बनी रह सकती है।
भारत में आ नीनो और ला नीनो का प्रभाव
अमेरिकी वेदर एजेंसी NOAA के मुताबिक नीनो साउदर्न ऑस्किलेशन (ENSO) धरती की सबसे जरूरी जलवायु घटनाओं में से एक है, जिसमें ग्लोबल स्तर पर वायुमंडलीय इकोसिस्टम में बदलाव की क्षमता होती है। इसका प्रभाव पूरी दुनिया के तापमान और बारिश पर देखा जा सकता है। आ नीनो स्थिति में मिडिल और ईस्ट ट्रॉपिकल पैसिफिक महासागर में समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक हो जाता है। यह घटना हर 3 से 5 साल में होती है और यह जलवायु परिवर्तन का हिस्सा है। भारत में आ नीनो का प्रभाव भीषण गर्मी और कमजोर मानसून के रूप में देखा जाता है, जबकि ला नीनो का संबंध मजबूत मॉनसून और ठंडी सर्दियों से होता है।
ला नीनो पर विशेषज्ञों की राय
भारतीय मौसम विभाग (IMD) के महानिदेशक एम. महापात्रा ने बताया कि इस साल दुनिया भर में मौजूद किसी भी मॉडल ने ला नीनो के पूर्वानुमान को सही नहीं ठहराया। हालांकि, इसके कुछ गुण ला नीनो से मिलते-जुलते हैं, जो मॉनसून के बारे में पूर्वानुमान लगाने में मदद करते हैं। एक्सपर्ट्स का मानना है कि जलवायु संकट भी इसका एक बड़ा कारण है। वहीं, अन्य विशेषज्ञों के अनुसार ला नीनो के बदलाव का सबसे बड़ा कारण ग्लोबल वार्मिंग हो सकता है। इसके कारण ही आ नीनो और ला नीना का विकास हो रहा है, जिससे जलवायु पर पड़ने वाले प्रभाव को समझना मुश्किल होता जा रहा है।
क्या हो सकता है भविष्य में?
ला नीना और आ नीनो जैसी जलवायु घटनाओं का सीधा असर पूरे देश के मौसम पर पड़ता है। भारत में आने वाले समय में मॉनसून के उतार-चढ़ाव, सर्दी और गर्मी की लहरों का निर्धारण इन घटनाओं से ही होता है। ऐसे में मौसम विभाग और अन्य एजेंसियों को इस प्रकार की घटनाओं के सटीक पूर्वानुमान के लिए अधिक प्रयास करने की आवश्यकता है, ताकि समय रहते सही जानकारी दी जा सके और लोग मौसम में आने वाले बदलावों के लिए तैयार रह सकें।
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