दिल्ली की सर्दियां अब वो पुरानी ठंडक भरी शामें नहीं रहीं, जिनमें लोग परिवार के साथ लोधी गार्डन जैसे हरे-भरे बागानों में पिकनिक मनाने जाया करते थे। अब दिल्ली की सर्दियां एक और नाम से जानी जाती हैं — वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI)। जैसे ही सर्दियों की शुरुआत होती है, दिल्ली की हवा जहरीली हो जाती है और इसका सीधा असर लोगों की सेहत पर पड़ता है।
रिपोर्टों के अनुसार, दिल्ली में इस साल श्वसन संबंधी बीमारियों के मामलों में 30 प्रतिशत की तेज़ी देखी जा रही है। अस्थमा, क्रॉनिक ऑब्सट्रक्टिव पल्मोनरी डिजीज (COPD), और निमोनिया जैसे रोगों से जूझ रहे मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। अस्पतालों में सांस लेने में दिक्कत, खांसी और फेफड़ों की समस्याओं वाले मरीजों की भीड़ बढ़ती जा रही है।
दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) अब ‘खराब’ से ‘बहुत खराब’ श्रेणी में पहुंच चुका है, और विशेषज्ञों का कहना है कि स्थिति और भी बिगड़ सकती है। फिलहाल, राजधानी में प्रदूषण का मुख्य कारण स्थानीय कारखानों, वाहनों से निकलने वाला धुआं और पड़ोसी राज्यों पंजाब और हरियाणा से आने वाला पराली जलाने का धुआं है, जिससे हर साल धुंध (स्मॉग) का संकट पैदा होता है।
स्मॉग का सबसे बुरा असर अभी आने वाला है, क्योंकि पराली जलाने का सीजन अभी जारी है। इस धुएं के साथ मिलकर ठंडी हवा दिल्ली की हवा को और भी जहरीला बना देती है।
डॉक्टरों का कहना है कि खासकर बच्चे, बुजुर्ग और पहले से बीमार लोग इस प्रदूषण के चलते ज्यादा प्रभावित हो रहे हैं। स्कूलों में भी बच्चों के लिए खेलकूद की गतिविधियां बंद कर दी गई हैं, और लोगों को मास्क पहनने और बाहर कम निकलने की सलाह दी जा रही है।
सरकार ने प्रदूषण से निपटने के लिए कुछ कदम उठाए हैं। ग्रेडेड रिस्पॉन्स एक्शन प्लान (GRAP) के तहत निर्माण गतिविधियों पर रोक, सड़कों पर पानी का छिड़काव, और डीजल जनरेटरों के इस्तेमाल पर प्रतिबंध जैसे उपाय शामिल हैं। लेकिन दिल्ली के लोग अभी भी इस संकट का प्रभाव कम होते देखने का इंतजार कर रहे हैं।
दिल्ली की सर्दियां अब ठंड से ज्यादा प्रदूषण के नाम से पहचानी जाने लगी हैं, और यह प्रदूषण हर साल लोगों के लिए एक बड़ी चुनौती बनकर सामने आता है।