देहरादून, जो कभी शांत और सुरम्य कस्बा था, अब एक व्यस्त शहर में बदल चुका है। 16 सितंबर 2025 की भारी बारिश से आई बाढ़ ने रिस्पना और बिंदाल नदियों को उफान पर ला दिया, जिससे दून घाटी में भारी तबाही मची।
यह पहली बार था जब शहर की नदियों ने इतना कहर बरपाया। हालांकि, देहरादून की पहचान कभी उसकी प्राकृतिक सुंदरता और सांस्कृतिक धरोहर से थी, जो अब विकास की दौड़ में धुंधली पड़ चुकी है।
कभी देहरादून “सफेद बालों और हरी झाड़ियों का शहर” कहलाता था। रस्किन बॉन्ड ने इसे अपनी किताब में एक उपजाऊ घाटी के रूप में चित्रित किया, जहां पेड़, फूल, और चिड़ियों की चहचहाहट जीवन का हिस्सा थे।
नहरों का जाल, जो अंग्रेजों ने बनवाया, पेयजल और सिंचाई के लिए था। रिस्पना और बिंदाल नदियां अविरल बहती थीं, और खेतों में मूंगरी उगती थी। बारिश का अपना अनोखा अंदाज था, जिसे स्थानीय लोग “झड़ी” कहते थे।
सर्दियों में मसूरी की बर्फीली चोटियां साफ दिखती थीं। लेकिन 2000 में उत्तराखंड की राजधानी बनने के बाद देहरादून तेजी से बदला। औद्योगिक क्षेत्रों और ऊंची इमारतों ने जंगलों और खेतों को निगल लिया
2003-2017 के बीच रिस्पना के जलग्रहण क्षेत्र में निर्माण कार्य बढ़े। चिड़ियों की चहचहाहट की जगह हॉर्न ने ले ली, और नदियां कचरे से भर गईं। बिंदाल नदी सिकुड़ गई, और नहरें ढक दी गईं।
आज देहरादून का पुराना आकर्षण इतिहास बन चुका है। बाढ़ ने शहर को झकझोरा, लेकिन असली नुकसान इसकी आत्मा का है। वह मोहक देहरा अब केवल यादों में बाकी है।
