तिरुवनंतपुरम, 26 जून 2025: केरल में किए गए सर्वेक्षणों से पता चला है कि सफेद-पेट वाले समुद्री गरुड़ (white-bellied sea eagle), जिन्हें समुद्री बाज के नाम से भी जाना जाता है, के घोंसलों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। इसका मुख्य कारण ऊंचे घोंसले वाले पेड़ों की कटाई और प्राकृतिक क्षति है।
अन्य तटीय राज्यों में भी इस पक्षी के प्रजनन स्थलों में कमी की खबरें सामने आई हैं, लेकिन भारत में इसकी जनसंख्या प्रवृत्ति पर डेटा सीमित है। केरल में शोधकर्ताओं ने इसके संरक्षण के लिए जन सहभागिता आधारित दृष्टिकोण अपनाया है, जो आशाजनक परिणाम दे रहा है।
केरल में घोंसलों की स्थिति: कन्नूर जिले के गैर-सरकारी संगठन, मलाबार अवेयरनेस एंड रेस्क्यू सेंटर फॉर वाइल्डलाइफ (MARC) की रिपोर्ट के अनुसार, समुद्री बाज के घोंसलों की संख्या में कमी का प्रमुख कारण पेड़ों की कटाई, उनके पुराने होने या गिरने से है।
2021 में उत्तर केरल में 22 घोंसले पाए गए, जो 2022 में घटकर 18 और 2023 में 15 रह गए। केरल में यह पक्षी मुख्य रूप से कन्नूर और कासरगोड जिलों में पाया जाता है। MARC की रिपोर्ट बताती है कि 2000-2010 के बीच के 15 घोंसले अब नष्ट हो चुके हैं।
सर्वेक्षण की प्रक्रिया: शोधकर्ताओं ने 150 किमी लंबी तटीय रेखा, तटीय कस्बों, मुहानों, बैकवाटर, और धार्मिक वनों का सर्वे किया। उन्होंने eBird डेटाबेस, स्थानीय पक्षी प्रेमियों, और समाचार पत्रों के माध्यम से जानकारी जुटाई।
समुद्री बाज, जो एकसाथी (monogamous) होते हैं और लगभग 30 साल तक जीवित रहते हैं, एक ही घोंसले का उपयोग करते हैं, बशर्ते उनका आवास सुरक्षित रहे।
संरक्षण की स्थिति: केरल की क्षेत्रीय रेड लिस्ट में समुद्री बाज को “मध्यम संरक्षण प्राथमिकता” में रखा गया है, लेकिन MARC के शोधकर्ता रोशनाथ रमेश और अमल यू.के. ने इसे “उच्च प्राथमिकता” में बदलने की सिफारिश की है।
यह रेड लिस्ट भारतीय प्राणी सर्वेक्षण विभाग और केरल राज्य जैव विविधता बोर्ड द्वारा 2023 में प्रकाशित की गई थी। समुद्री बाज एक कीस्टोन प्रजाति है, जो तटीय पारिस्थितिकी तंत्र की सेहत बनाए रखने में महत्वपूर्ण है।
वैश्विक और राष्ट्रीय स्थिति: IUCN रेड लिस्ट में समुद्री बाज को “कम चिंता” की श्रेणी में रखा गया है, लेकिन इसकी वैश्विक आबादी 2,600-41,000 के बीच मानी जाती है, जो कुछ क्षेत्रों में घट रही है। भारत में eBird डेटा और स्टेट ऑफ इंडियाज़ बर्ड्स (SoIB) 2023 रिपोर्ट के अनुसार, 2000 के बाद इसकी साइटिंग्स दो-तिहाई कम हुई हैं, जिसके कारण इसे “मध्यम चिंता” की श्रेणी में रखा गया है।
आवास में बदलाव: ओडिशा, महाराष्ट्र, तमिलनाडु, और आंध्र प्रदेश में शोधकर्ताओं ने पाया कि समुद्री बाज पारंपरिक प्राकृतिक आवास छोड़कर मोबाइल टावरों और बिजली के खंभों पर घोंसले बना रहे हैं। ओडिशा के बेहरामपुर विश्वविद्यालय के अध्ययन में 75% घोंसले गैर-प्राकृतिक स्थलों पर पाए गए। चक्रवात, पेड़ों की कटाई, और जलवायु परिवर्तन इस बदलाव के प्रमुख कारण हैं। कीटनाशकों और जल प्रदूषण से भी इनके शिकार (मछलियां) प्रभावित हो रहे हैं।
महाराष्ट्र और गोवा में स्थिति: महाराष्ट्र में 1996-2000 के बीच 32 घोंसले पाए गए, जो 2014-17 में बढ़कर 46 हो गए, मुख्यतः काजू के पेड़ों की बढ़ोतरी के कारण। हालांकि, चक्रवात निसर्ग (2020) ने ऊंचे पेड़ों को नुकसान पहुंचाया, जिससे पक्षी छोटे पेड़ों पर घोंसले बना रहे हैं। गोवा में गोवा बर्ड कंजर्वेशन नेटवर्क 24 घोंसलों की निगरानी कर रहा है और स्थानीय जैव विविधता प्रबंधन समितियों के साथ संरक्षण की योजना बना रहा है।
केरल का संरक्षण मॉडल: MARC ने समुदाय आधारित संरक्षण शुरू किया है, जिसमें मछुआरे, पेड़ों के मालिक, और स्थानीय लोग घोंसलों की निगरानी करते हैं। कन्नूर के चल बीच पर शिजिल कोट्टायी और सुनील अरिप्पा जैसे संरक्षणकर्ता घोंसलों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हैं। रमंथली के लक्ष्मणन टी. ने अपने प्लॉट के पेड़ को संरक्षित करने का फैसला किया। 30 लोगों का व्हाट्सएप ग्रुप नियमित जानकारी साझा करता है।