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उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कीटों की घटती आबादी: पारिस्थितिकी तंत्र और मानव स्वास्थ्य पर खतरा

by kishanchaubey
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कीट हमारे पर्यावरण और पारिस्थितिकी तंत्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। वे पौधों के परागण, मिट्टी की उर्वरता, और पोषक चक्रण जैसी प्रक्रियाओं में अहम भूमिका निभाते हैं। लेकिन, चिंता की बात यह है कि दुनिया भर में कीटों की संख्या तेजी से कम हो रही है।

नेचर रिव्यू बायोडायवर्सिटी पत्रिका में प्रकाशित एक शोध के अनुसार, खासकर उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों (जैसे वर्षावन) में कीटों की आबादी को कई खतरों का सामना करना पड़ रहा है। इन क्षेत्रों में कीटों की अधिकांश प्रजातियां पाई जाती हैं, लेकिन वहां के आंकड़े बहुत कम हैं, जिससे उनकी स्थिति को समझना मुश्किल हो रहा है।

उष्णकटिबंधीय कीटों पर मंडराता खतरा

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में कीटों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है:

  1. आवास का नुकसान: शहरीकरण और जंगलों की कटाई के कारण कीटों के रहने की जगहें खत्म हो रही हैं।
  2. प्रदूषण: कृषि और शहरी क्षेत्रों से निकलने वाले रासायनिक प्रदूषण कीटों के लिए जहरीले हैं।
  3. आक्रामक प्रजातियां: खासकर उष्णकटिबंधीय द्वीपों पर, बाहरी प्रजातियां स्थानीय कीटों को नष्ट कर रही हैं। कई अनोखी प्रजातियां पहले ही विलुप्त हो चुकी हैं।
  4. जलवायु परिवर्तन: बढ़ता तापमान और एल नीनो व ला नीना जैसे मौसमी बदलाव कीटों की प्रजनन और生存 क्षमता को प्रभावित कर रहे हैं।

कीटों की कमी का असर

शोधकर्ताओं का कहना है कि कीटों की घटती जैव विविधता का असर पूरे पारिस्थितिकी तंत्र पर पड़ रहा है। कुछ प्रमुख प्रभाव हैं:

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  • कार्बन चक्रण: कीट मिट्टी में कार्बन को संतुलित करने में मदद करते हैं। उनकी कमी से यह प्रक्रिया बाधित हो सकती है, जिसका असर वैश्विक जलवायु पर पड़ेगा।
  • खाद्य सुरक्षा: कीट परागण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। उनकी कमी से फसलों की पैदावार घट सकती है, जिससे खाद्य संकट बढ़ेगा।
  • बीमारियों का खतरा: कीटों का संतुलन बिगड़ने से डेंगू, मलेरिया जैसी बीमारियां बढ़ सकती हैं। पशुओं में भी इसी तरह की बीमारियां फैलने का खतरा है।
  • पारिस्थितिकी तंत्र का असंतुलन: कीट जंगलों के विकास को नियंत्रित करते हैं। उनकी कमी से जंगल और अन्य प्राकृतिक क्षेत्रों का स्वास्थ्य प्रभावित होगा।

उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में शोध की कमी

ज्यादातर अध्ययन यूरोप और उत्तरी अमेरिका में हुए हैं, जहां कीटों की संख्या में कमी के आंकड़े उपलब्ध हैं। लेकिन, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में, जहां दुनिया की 90% से ज्यादा कीट प्रजातियां पाई जाती हैं, लंबे समय तक निगरानी के आंकड़े नहीं हैं।

इस कमी के कारण वैज्ञानिकों को यह समझने में दिक्कत हो रही है कि समय के साथ कीटों की विविधता कैसे बदल रही है।

नए शोध और तकनीक

हाल के वर्षों में कृत्रिम बुद्धिमत्ता (AI) और आनुवंशिक तकनीकों की प्रगति ने इस समस्या को समझने में मदद की है। शोधकर्ताओं ने तीन साल तक उष्णकटिबंधीय ऑस्ट्रेलिया और एशिया के जंगलों में अध्ययन किया। उन्होंने उन जगहों का दोबारा दौरा किया, जहां पहले कीटों पर शोध हुआ था। कुछ प्रमुख शोध स्थल हैं:

  • लैमिंगटन नेशनल पार्क (ऑस्ट्रेलिया): यहां विशेष जाल का उपयोग कर चींटियों, पतंगों, भृंगों और तितलियों को इकट्ठा किया गया।
  • डैनम वैली कंजर्वेशन क्षेत्र (बोर्नियो): जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को समझने के लिए कीटों की आबादी का अध्ययन।
  • युन्नान (चीन) और डेनट्री (ऑस्ट्रेलिया): यहां टावर क्रेन की मदद से वर्षावन के ऊपरी हिस्सों में कीटों को इकट्ठा किया जा रहा है।

इन अध्ययनों का मकसद यह समझना है कि पिछले दो दशकों में जलवायु परिवर्तन ने कीटों की आबादी को कैसे प्रभावित किया है। शोधकर्ता यह भी जानना चाहते हैं कि कीटों की बदलती आबादी उष्णकटिबंधीय जंगलों को कैसे प्रभावित कर रही है।

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