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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला: पेड़ों की कटाई पर कड़ी शर्तें लागू

by kishanchaubey
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Supreme Court: गुरुवार, 19 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 के तहत 50 या उससे अधिक पेड़ों की कटाई पर रोक लगाने के लिए सख्त निर्देश जारी किए। कोर्ट ने कहा कि अब पेड़ों की कटाई पर तभी अमल किया जाएगा जब केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (सीईसी) से अनुमति मिल जाएगी।

मुख्य निर्देश: सीईसी की मंजूरी अनिवार्य

सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि जब वृक्ष अधिकारी 1994 अधिनियम की धारा 8 और धारा 9 के तहत 50 या अधिक पेड़ों की कटाई की अनुमति देंगे, तो:

  1. सीईसी की मंजूरी जरूरी होगी: अनुमति को सीईसी द्वारा जांचे जाने के बाद ही उस पर कार्रवाई होगी।
  2. प्रतिकार वनीकरण (Compensatory Afforestation): किसी भी कटाई से पहले नए पेड़ों का रोपण सुनिश्चित करना होगा।
  3. आवेदकों को स्पष्ट निर्देश: अनुमति के लिए आवेदन करने वाले सभी आवेदकों को सूचित किया जाएगा कि सीईसी की स्वीकृति के बिना अनुमति मान्य नहीं होगी।

पेड़ों की रक्षा के लिए सुप्रीम कोर्ट का नजरिया

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली वृक्ष संरक्षण अधिनियम, 1994 के उद्देश्य पर जोर देते हुए कहा कि इसका मकसद पेड़ों को संरक्षित करना है।

  • पेड़ों की कटाई केवल अपवाद स्वरूप मामलों में होनी चाहिए, न कि नियमित रूप से।
  • संविधान के अनुच्छेद 21, 48ए और 51ए के अनुसार, पर्यावरण की रक्षा करना और उसका सुधार करना सरकार का कर्तव्य है।
  • “एहतियाती सिद्धांत” (Precautionary Principle) का पालन करते हुए पर्यावरणीय गिरावट को रोकने के लिए सख्त कदम उठाए जाने चाहिए।

वृक्षों की गिनती के लिए जनगणना जरूरी

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मौजूदा पेड़ों की सही संख्या का डेटा होना बेहद जरूरी है। इसके लिए कोर्ट ने वन अनुसंधान संस्थान (Forest Research Institute, FRI), देहरादून को दिल्ली में पेड़ों की जनगणना का कार्य सौंपा।

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पेड़ों की जनगणना के लिए कार्ययोजना

  1. एफआरआई और विशेषज्ञों की टीम: तीन विशेषज्ञों – सेवानिवृत्त आईएफएस अधिकारी ईश्वर सिंह, सुनील लिमये, और वृक्ष विशेषज्ञ प्रदीप किशन – के मार्गदर्शन में एफआरआई जनगणना करेगा।
  2. संपत्ति मालिकों की भागीदारी: सभी भूमि मालिकों और अधिभोगियों से उनकी संपत्ति पर मौजूद पेड़ों की संख्या के बारे में जानकारी मांगी जाएगी।
  3. कार्य की समयसीमा: वृक्ष प्राधिकरण को 10 फरवरी, 2025 तक समयसीमा और कार्यप्रणाली की रिपोर्ट देनी होगी।
  4. फंडिंग: इस कार्य के लिए धनराशि भारत सरकार या प्रतिपूरक वनीकरण निधि (Compensatory Afforestation Fund) से दी जाएगी।

धारा 29 का दुरुपयोग रोकने के निर्देश

धारा 29 के तहत सरकार जनहित में पेड़ों की कटाई के लिए छूट दे सकती है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि इसका कई बार गलत इस्तेमाल किया गया है। अब यह सुनिश्चित किया गया है कि ऐसी किसी भी छूट के लिए भी सीईसी की मंजूरी अनिवार्य होगी।

धारा 9(4): “मान्य अनुमति” का दायरा सीमित

सुप्रीम कोर्ट ने 1994 अधिनियम की धारा 9(4) पर ध्यान दिया, जिसके तहत यदि किसी आवेदन पर 60 दिनों के भीतर फैसला नहीं लिया जाता, तो वह स्वचालित रूप से “मान्य अनुमति” मानी जाती है। कोर्ट ने इसे सीमित करते हुए कहा:

  • अब ऐसी मान्य अनुमति पर सुप्रीम कोर्ट की पूर्व मंजूरी के बिना कार्रवाई नहीं होगी।
  • सभी आवेदकों को यह जानकारी दी जानी चाहिए कि सीईसी की स्वीकृति के बिना कोई भी अनुमति वैध नहीं होगी।

पर्यावरण संरक्षण में यह फैसला क्यों अहम है?

सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश का मकसद केवल पेड़ों की कटाई को नियंत्रित करना नहीं है, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखना है।

  1. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण: पेड़ों को संरक्षित करना प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा का हिस्सा है।
  2. वायु गुणवत्ता सुधार: दिल्ली जैसे प्रदूषण-ग्रस्त शहरों में पेड़ वायु गुणवत्ता सुधारने में अहम भूमिका निभाते हैं।

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