तीन दिसंबर को दुनिया भर में अंतर्राष्ट्रीय दिव्यांगजन दिवस मनाया जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र ने 1992 में इस दिवस की शुरुआत की थी ताकि दिव्यांग लोगों के अधिकारों, सम्मान और उनकी रोजमर्रा की चुनौतियों के प्रति वैश्विक जागरूकता बढ़ाई जा सके।
2025 की थीम है – “सामाजिक प्रगति के लिए दिव्यांग-समावेशी समाजों को प्रोत्साहित करना”। यह थीम जोर देती है कि असली प्रगति तभी संभव है जब हर व्यक्ति को समान अवसर और सम्मान मिले।
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार आज दुनिया में करीब 1.3 अरब लोग (विश्व जनसंख्या का लगभग 16%) किसी न किसी रूप में दिव्यांगता के साथ जी रहे हैं, फिर भी ये लोग सुलभ और वहनीय स्वास्थ्य सेवाओं से बड़े पैमाने पर वंचित हैं। स्वास्थ्य नीतियों और वित्तपोषण में दिव्यांगजनों की सक्रिय भागीदारी और उनकी विशिष्ट जरूरतों को शामिल करना अब जरूरी हो गया है।
समय के साथ दृष्टिकोण बदला है। दिव्यांगजनों को अब बोझ नहीं, बल्कि समाज के सक्रिय और रचनात्मक सदस्य के रूप में देखा जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र दिव्यांगता अधिकार अभिसमय (CRPD) को 180 से अधिक देशों ने अपनाया है, जिसके चलते कई देशों में रैंप, ब्रेल साइनेज, सुलभ परिवहन, समावेशी शिक्षा और रोजगार में सकारात्मक बदलाव आए हैं।
इस दिवस का संदेश साफ है – जब हम समावेशी ढांचा, सामाजिक सुरक्षा और आंकड़ों पर आधारित नीतियां बनाते हैं, तो न केवल दिव्यांगजन सशक्त होते हैं, बल्कि पूरा समाज मजबूत और प्रगतिशील बनता है।
आज का दिन हमें याद दिलाता है: समावेश कोई दान नहीं, बल्कि हर इंसान का हक है।
