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डीएपी खाद संकट: रबी सीजन में किसानों की मुश्किलें बढ़ीं

by kishanchaubey
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रबी फसलों की बुआई का समय आते ही देशभर में डीएपी (डाय-अमोनियम फॉस्फेट) खाद की भारी कमी की समस्या सामने आ रही है। किसान अपनी खेती छोड़कर डीएपी खाद के लिए लंबी-लंबी कतारों में खड़े होने को मजबूर हैं। इसके बावजूद सरकार लगातार दावा कर रही है कि देश में खाद की कोई कमी नहीं है।

हरियाणा से डीएपी खाद की किल्लत के कारण किसानों की आत्महत्या, विरोध प्रदर्शन, और यहां तक कि पुलिस थानों में खाद बिक्री की खबरें आ रही हैं। यह समस्या सिर्फ हरियाणा तक सीमित नहीं है, बल्कि देश के कई अन्य राज्यों में भी किसान इसी तरह परेशान हैं।

गेहूं बुआई और खाद का महत्व

भारत में अक्टूबर-नवंबर के महीने में करीब 31.5 मिलियन हेक्टेयर क्षेत्र में गेहूं की बुआई होती है। इससे औसतन 112 मिलियन टन वार्षिक उत्पादन होता है। डीएपी खाद में 18% नाइट्रोजन और 46% फॉस्फोरस (P2O5) होता है, जो पौधों की जड़ों, कल्ले (टिलर) और तने को मजबूत बनाकर पैदावार बढ़ाने में अहम भूमिका निभाता है।

खाद की कमी का प्रभाव:
आईसीएआर और कृषि विश्वविद्यालयों के शोध बताते हैं कि प्रति एकड़ 50 किलोग्राम डीएपी का उपयोग गेहूं और धान की पैदावार में 30% तक बढ़ोतरी कर सकता है। खाद की इस कमी से न केवल रबी फसलों की पैदावार घटेगी, बल्कि यह देश की खाद्य सुरक्षा पर भी गंभीर खतरा है।

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खाद की किल्लत और सरकार के दावे

सरकार का आंकड़ा:
केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री ने 9 दिसंबर 2022 को लोकसभा में बताया कि रबी सीजन के लिए देश को 55.38 लाख मीट्रिक टन डीएपी की आवश्यकता है। 1 अक्टूबर से 5 दिसंबर 2022 तक 33.74 लाख मीट्रिक टन खाद बेचा गया।

हकीकत:
फर्टिलाइजर एसोसिएशन ऑफ इंडिया के मुताबिक, 1 अक्टूबर 2024 तक देश में केवल 16 लाख मीट्रिक टन डीएपी स्टॉक में था, जो कुल जरूरत का मात्र 29% है। यह आंकड़ा सरकार के दावों को झूठा साबित करता है और खाद की कमी की गंभीरता को दिखाता है।

हरित क्रांति से खाद्य सुरक्षा तक का सफर

पिछले छह दशकों में उन्नत गेहूं किस्मों, रासायनिक उर्वरकों, और सिंचाई सुविधाओं ने भारत को गेहूं उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया। हालांकि, 1.4 अरब की जनसंख्या की खाद्य जरूरतों को पूरा करने के लिए 2022 में गेहूं निर्यात पर प्रतिबंध लगाया गया।

सरकार ने 2023 और 2024 में गेहूं खरीद का लक्ष्य 37 मिलियन टन रखा था, लेकिन वास्तविक खरीद क्रमशः 26.2 और 26.6 मिलियन टन ही हुई। इससे साफ है कि उत्पादन और मांग के बीच संतुलन मुश्किल होता जा रहा है।

खाद संकट के पीछे की वजहें

  1. घटती सब्सिडी:
    सरकार ने 1970 से रासायनिक उर्वरकों पर सब्सिडी देकर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की है। लेकिन हाल के वर्षों में सब्सिडी में भारी कटौती हुई है:
    • 2022-23: ₹2,51,340 करोड़
    • 2023-24: ₹1,88,901 करोड़
    • 2024-25: ₹1,64,102 करोड़
  2. घटता उत्पादन और आयात:
    भारत डीएपी की कुल खपत का केवल 50% ही खुद उत्पादन करता है। सब्सिडी में कमी के कारण आयात भी कम हो गया है।
  3. नैनो खाद का विवाद:
    सरकार पारंपरिक डीएपी के विकल्प के रूप में नैनो डीएपी और नैनो यूरिया को बढ़ावा दे रही है। हालांकि, पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के शोध के अनुसार, इन नैनो खादों के उपयोग से गेहूं की उपज में 30% तक कमी देखी गई है।

किसानों की समस्याएं और समाधान

किसानों को समय पर डीएपी खाद नहीं मिलने से उनकी फसलों की पैदावार पर गहरा असर पड़ेगा। सरकार को चाहिए कि:

  • डीएपी उत्पादन और आयात बढ़ाने पर जोर दे।
  • नैनो खादों की उपयोगिता पर फिर से वैज्ञानिक शोध कराए।
  • पारदर्शी वितरण प्रणाली लागू करे।
  • किसानों को सस्ती दरों पर खाद उपलब्ध कराए।

यदि सही कदम नहीं उठाए गए, तो यह संकट केवल किसानों की आजीविका को ही नहीं, बल्कि देश की खाद्य सुरक्षा को भी खतरे में डाल सकता है।

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