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दंतेवाड़ा की जैविक क्रांति: चन्नू कुंजम और रीता मोडियम जैसे किसानों की प्रेरक कहानी

by kishanchaubey
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छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा जिले में जैविक खेती ने एक नई उम्मीद जगाई है। यहां के किसान चन्नू कुंजम और रीता मोडियम उन हजारों किसानों में से हैं, जिन्होंने पारंपरिक और जैविक खेती को अपनाकर न केवल अपनी आजीविका को बेहतर बनाया, बल्कि पर्यावरण को भी बचाने में योगदान दिया।

उनकी मेहनत और जिला प्रशासन के प्रयासों ने दंतेवाड़ा को भारत का पहला ऐसा राज्य बनाया, जिसे लार्ज एरिया सर्टिफिकेशन (एलएसी) योजना के तहत जैविक खेती का प्रमाण पत्र मिला।

चन्नू कुंजम की शुरुआत

दंतेवाड़ा के आलनार गांव के रहने वाले चन्नू कुंजम ने 13 साल पहले खेती शुरू की थी। उनके पिता ने उन्हें सलाह दी थी कि रासायनिक खाद जमीन को बंजर बना देगी। इस सलाह को मानते हुए कुंजम ने जैविक खेती को चुना।

उनके परिवार ने हमेशा सूखे पत्तों और गाय के गोबर का इस्तेमाल किया। कुंजम के पास 2.54 हेक्टेयर का खेत है, जहां वे जीवामृत नामक जैविक खाद बनाते हैं।

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जीवामृत बनाने के लिए वे गाय का गोबर, गोमूत्र, गुड़, बेसन और मिट्टी का उपयोग करते हैं। इस मिश्रण को 7 दिन तक रखने के बाद खेतों में डाला जाता है। कुंजम बताते हैं कि यह खाद बनाने की सामग्री उनके खेत और घर से ही मिल जाती है, जिससे लागत भी कम रहती है।

रीता मोडियम की सफलता

दंतेवाड़ा के मसूदी गांव की किसान रीता मोडियम की कहानी भी प्रेरणादायक है। रीता बताती हैं कि 10 साल पहले उनकी खेती से केवल परिवार का गुजारा हो पाता था। लेकिन, जीवामृत और जैविक खेती अपनाने के बाद उनकी फसल की पैदावार बढ़ी। आज वे 20 क्विंटल धान और कई तरह की सब्जियां बेचती हैं, जिससे उनकी आय में काफी इजाफा हुआ है।

दंतेवाड़ा का जैविक सफर

दंतेवाड़ा के 110 गांवों के 10,000 किसानों को 2023-24 में एलएसी योजना के तहत जैविक खेती का प्रमाण पत्र मिला। यह योजना 2020-21 में शुरू हुई थी, जिसका मकसद उन इलाकों को प्रमाणित करना है, जहां पारंपरिक रूप से जैविक खेती होती है, जैसे पहाड़ी, रेगिस्तानी और द्वीपीय क्षेत्र।

यह भारतीय भागीदारी गारंटी प्रणाली (PGS-इंडिया) का हिस्सा है, जो 2011 में जैविक उत्पादों को प्रमाणित करने के लिए शुरू हुई थी।

अब तक लद्दाख (5,000 हेक्टेयर) और लक्षद्वीप (2,700 हेक्टेयर) को ही यह सर्टिफिकेट मिला था। लेकिन, दंतेवाड़ा ने 65,000 हेक्टेयर कृषि भूमि के साथ यह उपलब्धि हासिल कर इतिहास रच दिया।

संगठित प्रयासों की शुरुआत

दंतेवाड़ा में जैविक खेती का विस्तार 2013 में शुरू हुआ, जब जिला प्रशासन और कृषि विभाग ने मिलकर इसे बढ़ावा देने का फैसला किया। भूमगाड़ी ऑर्गेनिक फार्मर्स प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के आकाश बड़वे बताते हैं कि उस समय किसान बिना किसी प्रमाण पत्र के जैविक खेती कर रहे थे।

कृषि उप निदेशक सूरज कुमार पंसारी कहते हैं कि विभाग ने किसानों को वैज्ञानिक जानकारी दी, ताकि वे अपनी पारंपरिक खेती को और बेहतर बना सकें। उदाहरण के लिए, श्री पद्धति (सघन धान प्रणाली) का प्रशिक्षण दिया गया, जिसे मेडागास्कर विधि भी कहते हैं। इस विधि में धान के पौधों को एक-दूसरे के करीब रोपा जाता है, जिससे:

  • पानी की बचत होती है।
  • पैदावार बढ़ती है।
  • मिट्टी की उर्वरता बनी रहती है।

मोचो बाड़ी योजना

प्रशासन ने मोचो बाड़ी (हलबी बोली में ‘मेरा खेत’) योजना शुरू की, जिसे राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (NMDC) के सहयोग से चलाया जा रहा है। इस योजना के तहत किसानों को:

  • बाड़ लगाने के लिए मदद।
  • सौर पंप और कृषि उपकरणों पर सब्सिडी।
  • दो मौसमों में फसल उगाने की सुविधा।

NMDC की 2018 की रिपोर्ट के अनुसार, इस योजना से किसानों की आय में 600% की बढ़ोतरी हुई और खेतों की पैदावार में भी सुधार हुआ।

रासायनिक खाद पर रोक

2015 में किसानों ने रासायनिक खाद की बिक्री बंद करने की मांग की। इसके बाद:

  • 2016 में जिला प्रशासन ने रासायनिक खादों का प्रचार बंद किया।
  • 2018 में निजी दुकानों में रासायनिक खाद बेचने के लाइसेंस रद्द किए गए।
  • कृषि मंत्रालय ने दंतेवाड़ा को पूरी तरह ऑर्गेनिक जिला बनाने का रोडमैप तैयार किया।

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