प्लास्टिक आज हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का अटूट हिस्सा बन चुका है। खाने-पीने की पैकिंग से लेकर बच्चों के खिलौने, घर, दफ्तर और मेडिकल उपकरणों तक, हर जगह इसका इस्तेमाल आम है। लेकिन इस सुविधा की भारी कीमत हमारे स्वास्थ्य और पर्यावरण को चुकानी पड़ रही है। हाल ही में न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी लैंगोन हेल्थ के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया एक वैश्विक अध्ययन इस खतरे को और स्पष्ट करता है।
अध्ययन के मुताबिक, प्लास्टिक में उपयोग होने वाला एक खतरनाक रसायन ‘डाइ-2-एथाइलहेक्सिल फ्थेलेट (डीईएचपी)’ दुनिया भर में हृदय रोग से होने वाली लाखों मौतों के लिए जिम्मेदार है। खास तौर पर भारत में स्थिति सबसे गंभीर है, जहां 2018 में 1,03,587 मौतें इस रसायन से जुड़ी पाई गईं।
अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष: जर्नल लैंसेट ई बायोमेडिसिन में प्रकाशित इस अध्ययन के अनुसार, 2018 में वैश्विक स्तर पर हृदय रोग से हुई 3,56,000 से ज्यादा मौतों का संबंध डीईएचपी से था। यह रसायन प्लास्टिक को लचीला और मुलायम बनाने के लिए उपयोग किया जाता है, लेकिन यह मानव स्वास्थ्य के लिए गंभीर खतरा बन चुका है।
अध्ययन में पाया गया कि डीएचपी शरीर में पहुंचकर दिल की धमनियों में सूजन पैदा करता है, जो समय के साथ दिल का दौरा या स्ट्रोक जैसी जानलेवा बीमारियों का कारण बन सकता है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि 55 से 64 वर्ष की आयु वर्ग में हृदय रोग से होने वाली 13% मौतें इस रसायन से प्रभावित हो सकती हैं।
अध्ययन में भारत की स्थिति सबसे चिंताजनक बताई गई है। यहां 2018 में हृदय रोग से हुई 1,03,587 मौतों में डीईएचपी की भूमिका पाई गई। भारत के बाद चीन और इंडोनेशिया जैसे देशों में भी इस रसायन का व्यापक प्रभाव देखा गया।
दक्षिण एशिया, पूर्वी एशिया, मध्य पूर्व और प्रशांत क्षेत्रों में इस केमिकल से होने वाली तीन-चौथाई मौतें दर्ज की गईं। शोधकर्ताओं का कहना है कि तेजी से बढ़ते प्लास्टिक उत्पादन और नियामक ढांचे की कमी के कारण इन क्षेत्रों में लोग इस हानिकारक रसायन के ज्यादा संपर्क में आ रहे हैं।
फ्थेलेट्स क्या हैं और कैसे नुकसान पहुंचाते हैं?
फ्थेलेट्स ऐसे रसायन हैं, जो प्लास्टिक के डिब्बों, कॉस्मेटिक्स, डिटर्जेंट, कीटनाशक, पाइप और मेडिकल उपकरणों में बड़े पैमाने पर उपयोग होते हैं। ये सूक्ष्म कणों के रूप में हमारे शरीर में प्रवेश कर सकते हैं और मोटापा, डायबिटीज, कैंसर और प्रजनन संबंधी समस्याओं को बढ़ा सकते हैं।
डीईएचपी, जो फ्थेलेट्स का एक प्रकार है, विशेष रूप से हृदय स्वास्थ्य के लिए खतरनाक है। यह शरीर में सूजन को बढ़ावा देता है, जिससे हृदय रोगों का जोखिम बढ़ जाता है।
क्यों है यह चिंता का विषय?
वरिष्ठ शोधकर्ता डॉ. लियोनार्डो ट्रासांडे के अनुसार, फ्थेलेट जैसे रसायनों का खतरा केवल अमीर देशों तक सीमित नहीं है। तेजी से औद्योगीकरण की राह पर चल रहे निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह समस्या और गंभीर हो रही है।
भारत जैसे देशों में प्लास्टिक उत्पादन में तेजी और नियामक ढांचे की कमी लोगों को इन जहरीले रसायनों के संपर्क में ला रही है।
पहले भी सामने आए थे खतरे: 2021 में किए गए एक अध्ययन में फ्थेलेट्स को अमेरिका में हर साल 50,000 से ज्यादा असमय मौतों से जोड़ा गया था, जिनमें अधिकांश हृदय रोग से संबंधित थीं। नया अध्ययन पहला वैश्विक विश्लेषण है, जो इन रसायनों के संपर्क से होने वाली हृदय संबंधी मौतों का अनुमान लगाता है।
शोधकर्ताओं ने 200 देशों में यूरीन सैंपल और मृत्यु दर के आंकड़ों का विश्लेषण किया, जिसमें पाया गया कि फ्थेलेट्स के उच्च स्तर वाले क्षेत्रों में हृदय रोगों का खतरा भी ज्यादा था।
आगे क्या करना होगा?
शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि फ्थेलेट्स का प्रभाव वैश्विक स्तर पर एक समान नहीं है। कुछ क्षेत्रों में यह खतरा बहुत ज्यादा है, जबकि कुछ में कम। इसे कम करने के लिए वैश्विक स्तर पर सख्त नियम और निगरानी की जरूरत है, खासकर उन देशों में जहां प्लास्टिक का उपयोग और औद्योगीकरण तेजी से बढ़ रहा है।
शोधकर्ताओं ने यह भी स्पष्ट किया कि यह अध्ययन डीईएचपी को मौतों का एकमात्र कारण नहीं मानता, लेकिन इसकी भूमिका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। अन्य फ्थेलेट्स और आयु वर्गों को शामिल करने पर मौतों की संख्या और ज्यादा हो सकती है।