पूर्वी भारत के तटीय क्षेत्रों पर चक्रवात ‘दाना’ का गंभीर खतरा मंडरा रहा है। भारत मौसम विज्ञान विभाग (IMD) के अनुसार, बंगाल की खाड़ी के पूर्वी-मध्य हिस्से में बना अवसाद तेजी से एक गंभीर चक्रवाती तूफान का रूप ले रहा है, जो 24 अक्टूबर 2024 की रात से 25 अक्टूबर की सुबह के बीच ओडिशा के धामरा पोर्ट के पास तट पर टकरा सकता है। इसके परिणामस्वरूप 100-110 किलोमीटर प्रति घंटे की गति से हवाएँ चलेंगी, जो 120 किलोमीटर प्रति घंटे तक पहुँच सकती हैं। यह चक्रवात तटीय क्षेत्रों में पर्यावरणीय संकट का कारण बनने की संभावना है।
पश्चिम बंगाल पर असर: पर्यावरणीय संतुलन पर खतरा
हालांकि, चक्रवात ओडिशा के तट से टकराएगा, लेकिन इसका असर पश्चिम बंगाल के तटीय जिलों पर भी देखने को मिलेगा। खासकर पूर्वी मेदिनीपुर और दक्षिण 24 परगना जैसे तटीय जिलों में गंभीर परिणाम हो सकते हैं। चक्रवात की ‘ट्रैक’ के दाईं ओर होने की वजह से ये जिले तूफान के केंद्र में होंगे, जिससे इन क्षेत्रों में तेज हवाओं और भारी बारिश का सामना करना पड़ेगा।
यह चक्रवात न केवल जनजीवन और संपत्ति के लिए खतरा है, बल्कि इसके कारण तटीय क्षेत्रों के पर्यावरणीय संतुलन पर भी गंभीर असर पड़ सकता है। तूफानी हवाएँ और भारी बारिश तटीय पारिस्थितिक तंत्र, विशेष रूप से सुंदरबन के मैंग्रोव जंगलों, को क्षति पहुँचा सकती हैं। सुंदरबन के ये मैंग्रोव जंगल जैव विविधता के संरक्षण के लिए महत्वपूर्ण हैं और वैश्विक जलवायु संतुलन में भी अहम भूमिका निभाते हैं। तूफान से इनकी सुरक्षा के लिए विशेष सावधानी की जरूरत होगी, क्योंकि ये जंगल तटीय क्षरण को रोकने में सहायक होते हैं और कई लुप्तप्राय जीवों का घर हैं।
पर्यावरणीय खतरे: समुद्र के स्तर में बढ़ोतरी और जैव विविधता पर प्रभाव
चक्रवात ‘दाना’ से समुद्र का जलस्तर भी बढ़ने की संभावना है, जिससे तटीय इलाकों में बाढ़ का खतरा है। इससे न केवल मानव बस्तियाँ प्रभावित होंगी, बल्कि वन्यजीवों के प्राकृतिक आवासों को भी क्षति पहुँचेगी। तटीय क्षेत्रों में मौजूद मछलियों की प्रजातियों और समुद्री जीवन को भी इस तूफान से खतरा हो सकता है। इसके अलावा, तेज हवाओं के कारण तटीय वनस्पतियों और कृषि भूमि को नुकसान पहुँचने की भी संभावना है।
IMD ने पहले ही चेतावनी जारी की है कि मछुआरे समुद्र में न जाएँ, क्योंकि समुद्र की स्थिति 23 अक्टूबर से 25 अक्टूबर तक अत्यधिक खतरनाक रहने की उम्मीद है। इसके साथ ही ओडिशा और पश्चिम बंगाल की सरकारें चक्रवात से निपटने की तैयारियों में जुट गई हैं। राज्य के आपदा प्रबंधन विभाग ने संभावित क्षेत्रों में राहत एवं बचाव कार्य के लिए उपाय किए हैं, ताकि जनजीवन और पर्यावरणीय क्षति को कम से कम किया जा सके।
जलवायु परिवर्तन की बढ़ती चुनौतियाँ
चक्रवात ‘दाना’ जैसी प्राकृतिक आपदाएँ हमें इस बात की याद दिलाती हैं कि जलवायु परिवर्तन के कारण तटीय क्षेत्रों पर खतरा लगातार बढ़ रहा है। समुद्र के बढ़ते तापमान और जलवायु असंतुलन से चक्रवातों की संख्या और तीव्रता में वृद्धि हो रही है। यह न केवल मानव जीवन को प्रभावित करता है, बल्कि समुद्र तटीय पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता के लिए भी गंभीर खतरा बनता जा रहा है।
इस चक्रवात से निपटने के साथ-साथ हमें दीर्घकालिक उपायों पर भी ध्यान देना होगा, जिसमें जलवायु परिवर्तन को रोकने के लिए ठोस नीतियाँ और तटीय क्षेत्रों की सुरक्षा के लिए व्यापक कदम शामिल हों।
इस खबर के माध्यम से चक्रवात ‘डाना’ को पर्यावरणीय दृष्टिकोण से जोड़ते हुए उसके संभावित प्रभावों और जलवायु परिवर्तन के खतरों को उजागर किया गया है।