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क्लाइमेट फाइनेंस: भारत ने जलवायु परिवर्तन के लिए अनुकूलन वित्त में बड़े सुधार की मांग की

by kishanchaubey
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भारत ने संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन सम्मेलन (COP29) में जलवायु परिवर्तन अनुकूलन के लिए वित्तीय सहायता में भारी बढ़ोतरी की मांग की। यह जोर दिया गया कि विकासशील देशों को जलवायु परिवर्तन के ऐतिहासिक प्रभावों का सबसे अधिक खामियाजा भुगतना पड़ रहा है, जबकि इसके लिए मुख्य रूप से विकसित देश जिम्मेदार हैं।

विकासशील देशों पर संकट

भारतीय वार्ताकार ने कहा, “हमारे लिए, एक विकासशील देश के रूप में, लोगों की जिंदगी, उनकी आजीविका और यहां तक कि उनका अस्तित्व खतरे में है। अनुकूलन वित्त को प्राथमिकता मिलनी चाहिए।” भारत ने स्पष्ट किया कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए उसके अधिकांश वित्तीय प्रयास घरेलू संसाधनों से किए जा रहे हैं।

अनुकूलन वित्त की आवश्यकता

भारत ने पिछले साल संयुक्त राष्ट्र को सौंपी गई अपनी “प्रारंभिक अनुकूलन योजना” का हवाला देते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए $854.16 बिलियन तक की जरूरत हो सकती है। इसके लिए वित्तीय प्रवाह में वृद्धि और तेज प्रक्रिया आवश्यक है।

  • भारत ने कहा कि New Collective Quantified Goal (NCQG) में सुधार जरूरी है ताकि धीमी धनराशि वितरण, जटिल अनुमोदन प्रक्रियाएं, और कठोर योग्यता मानदंड जैसे मुद्दे हल किए जा सकें।
  • 2025 के बाद के समय के लिए, NCQG को आकर्षक वित्तीय लक्ष्य निर्धारित करना चाहिए और इसे विकासशील देशों की विशेष आवश्यकताओं के अनुसार तैयार किया जाना चाहिए।

COP28 का अनुभव और आगे की जरूरतें

भारत ने COP28 ग्लोबल स्टॉकटेक के निर्णयों का उल्लेख करते हुए कहा कि जलवायु परिवर्तन अनुकूलन और इसके कार्यान्वयन में भारी अंतर हैं।

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  • UAE फ्रेमवर्क फॉर ग्लोबल क्लाइमेट रेजिलिएंस को स्वीकार करते हुए भारत ने कहा कि विकसित देशों से अधिक समर्थन और संसाधनों की आवश्यकता है ताकि विकासशील देशों को उनके लक्ष्यों को हासिल करने में मदद मिल सके।

पर्यावरण पर प्रभाव

  1. जलवायु परिवर्तन का खतरा:
    • अत्यधिक गर्मी, बाढ़, सूखा और चक्रवात जैसी घटनाएं विकासशील देशों में बढ़ रही हैं।
    • खेती, पेयजल, और जलीय पारिस्थितिकी तंत्र पर बुरा असर पड़ रहा है।
  2. प्राकृतिक संसाधनों पर दबाव:
    • जलवायु संकट से मिट्टी का कटाव, वनस्पति क्षति और जल संसाधनों की कमी हो रही है।
  3. इकोलॉजिकल असंतुलन:
    • जलवायु परिवर्तन ने वनों और समुद्री पारिस्थितिकी को कमजोर किया है।

स्वास्थ्य पर प्रभाव

  1. बीमारियों का प्रसार:
    • गर्मी और बाढ़ जैसी आपदाओं के कारण मलेरिया, डेंगू, और जलजनित रोग बढ़ रहे हैं।
  2. भोजन और पोषण संकट:
    • कृषि उत्पादन में गिरावट से भुखमरी और कुपोषण जैसी समस्याएं बढ़ सकती हैं।
  3. मानसिक स्वास्थ्य पर असर:
    • जलवायु संकट से प्रभावित लोगों में तनाव, अवसाद और मानसिक अस्थिरता के मामले बढ़े हैं।

भारत का संदेश और आग्रह

भारत ने स्पष्ट किया कि विकसित देशों को अब अपनी ऐतिहासिक जिम्मेदारी स्वीकार करनी चाहिए। वित्तीय सहायता केवल दिखावे के लिए नहीं होनी चाहिए, बल्कि इसे विकासशील देशों की आवश्यकताओं के अनुसार बनाया जाना चाहिए।

  • स्थानीय रणनीतियों का समर्थन: वित्तीय सहायता ऐसी होनी चाहिए जो देशों की घरेलू नीतियों के अनुकूल हो।
  • अनुकूलन प्रयासों को प्राथमिकता: जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से लड़ने के लिए स्थायी समाधान तलाशने और उन्हें लागू करने पर जोर दिया गया।

निष्कर्ष

भारत का यह संदेश स्पष्ट है कि जलवायु परिवर्तन के कारण सबसे ज्यादा पीड़ित विकासशील देशों को न केवल वित्तीय सहायता चाहिए बल्कि इसे सरल और तेज बनाने की भी जरूरत है। यह कदम पर्यावरण और मानव स्वास्थ्य दोनों को बचाने के लिए अनिवार्य है।

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