रीडिंग विश्वविद्यालय, बर्कशायर, इंग्लैंड के शोधकर्ताओं द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में खुलासा हुआ है कि जलवायु परिवर्तन, आवास की कमी, और शिकार जैसे मानवजनित खतरों के कारण अगली सदी में 500 से अधिक पक्षी प्रजातियों के विलुप्त होने का खतरा मंडरा रहा है। यह संख्या 1500 ई. के बाद से दर्ज सभी पक्षी विलुप्तियों से तीन गुना अधिक है।
अध्ययन, जो नेचर इकोलॉजी एंड इवोल्यूशन में प्रकाशित हुआ, ने अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) की लाल सूची के आंकड़ों का उपयोग कर लगभग 10,000 पक्षी प्रजातियों की जांच की।
प्रमुख निष्कर्ष:
- खतरे में प्रजातियां: बड़े पक्षी, जैसे बेयर-नेक्ड अम्ब्रेला बर्ड और हेलमेटेड हॉर्नबिल, शिकार और जलवायु परिवर्तन के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील हैं, जबकि चौड़े पंख वाले पक्षी आवास विनाश से अधिक प्रभावित हैं।
- पारिस्थितिकी तंत्र पर प्रभाव: इन प्रजातियों के विलुप्त होने से पारिस्थितिकी तंत्र पर गंभीर असर पड़ सकता है, क्योंकि ये पक्षी बीज प्रसार और कीट नियंत्रण जैसे महत्वपूर्ण कार्य करते हैं।
- विलुप्ति का संकट: अध्ययन में पाया गया कि मानवजनित खतरों को पूरी तरह खत्म करने के बावजूद, कई पक्षी प्रजातियों को बचाना संभव नहीं होगा। 250 से 350 प्रजातियों को प्रजनन कार्यक्रमों और आवास बहाली जैसे विशेष संरक्षण उपायों की आवश्यकता होगी।
- संरक्षण की जरूरत: आवास विनाश को रोकना सबसे अधिक पक्षियों को बचाने में प्रभावी होगा, लेकिन शिकार और आकस्मिक मौतों को कम करना भी पारिस्थितिकी तंत्र के लिए महत्वपूर्ण है।
सुझाव और समाधान:
शोधकर्ताओं ने तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता पर बल दिया। सबसे अनोखी और लुप्तप्राय प्रजातियों के लिए प्रजनन परियोजनाएं और आवास बहाली जैसे लक्षित संरक्षण कार्यक्रम शुरू करने की सिफारिश की गई है। असामान्य पक्षियों के संरक्षण को प्राथमिकता देने से पक्षियों की विविधता और पारिस्थितिकी तंत्र का स्वास्थ्य बनाए रखा जा सकता है।