कल्पना करें कि आइसक्रीम, केक या चॉकलेट में वनीला की मिठास और खुशबू गायब हो जाए। जलवायु परिवर्तन के कारण यह कल्पना जल्द हकीकत बन सकती है। वनीला, जो खाद्य, दवा और कॉस्मेटिक उद्योगों की जरूरत है, अब संकट में है। वनीला, केसर के बाद दूसरा सबसे महंगा मसाला, वनीला ऑर्किड की फलियों से बनता है।
इसके लिए हाथ से परागण की नाजुक प्रक्रिया अपनाई जाती है। बढ़ता तापमान, सूखा और बीमारियां इसकी खेती को प्रभावित कर रहे हैं। वैज्ञानिकों ने चेतावनी दी है कि जलवायु परिवर्तन से यह संकट और गहराएगा, जिससे किसानों की आजीविका खतरे में है।
फ्रंटियर्स इन प्लांट साइंस में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, जंगली वनीला प्रजातियां, जो सूखा और गर्मी सहन कर सकती हैं, संकट से निपटने की कुंजी हो सकती हैं। लेकिन जलवायु परिवर्तन इन प्रजातियों और उनके परागणकर्ता मधुमक्खियों को प्रभावित कर रहा है। शोधकर्ता शार्लोट वाट्टेइन के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से वनीला और परागणकर्ताओं का संतुलन बिगड़ सकता है।
दो जलवायु परिदृश्यों (एसएसपी2-4.5, एसएसपी3-7.0) के विश्लेषण से पता चला कि 2050 तक कुछ वनीला प्रजातियां अपने आवास 140% तक बढ़ा सकती हैं, जबकि अन्य 53% तक खो सकती हैं। परागणकर्ता मधुमक्खियों के आवास भी तेजी से सिकुड़ रहे हैं। यदि परागणकर्ता नए क्षेत्रों में नहीं पहुंचे, तो वनीला का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
वैज्ञानिकों ने प्राकृतिक संरक्षण, बीज बैंक और वनस्पति उद्यानों की सिफारिश की है। बिना तत्काल कदमों के, 2050 तक वनीला और परागणकर्ताओं के साझा संरक्षित क्षेत्र 42% से घटकर 17% रह जाएंगे। वनीला न केवल स्वाद, बल्कि किसानों की आजीविका और जैव विविधता का आधार है। इसके संरक्षण के लिए तुरंत कार्रवाई जरूरी है।