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पेरिस समझौते के बावजूद जलवायु परिवर्तन का बढ़ता खतरा, स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभाव गंभीर

by reporter
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2015 में पेरिस समझौता का उद्देश्य धरती के तापमान को 1.5°C तक सीमित रखना था, लेकिन 2023 में धरती का तापमान इस सीमा के करीब, 1.45°C तक पहुंच गया। ‘लांसेट काउंटडाउन’ की एक रिपोर्ट ने जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य और आर्थिक प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया है।

जलवायु परिवर्तन के स्वास्थ्य पर असर

जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य पर गहरा असर पड़ा है। 1990 के मुकाबले हीट स्ट्रेस से होने वाली मौतें 167% बढ़ गई हैं, और बुजुर्गों में गर्मी से जुड़े जोखिमों में 27.7% की बढ़ोतरी हुई है। मौसम की चरम स्थितियों, जैसे कि बाढ़ और सूखे, ने 2022 में 15 करोड़ से अधिक लोगों को खाद्य असुरक्षा में डाल दिया। तापमान और बदलते वर्षा पैटर्न के कारण डेंगू, मलेरिया, और कॉलरा जैसी बीमारियां नई जगहों पर फैल रही हैं।

आर्थिक नुकसान

जलवायु से संबंधित आर्थिक नुकसान में 2013 से 2023 तक 23% की वृद्धि हुई है। निम्न आय वाले देशों में ये नुकसान अधिक हैं क्योंकि बीमा कवरेज सीमित है। जलवायु प्रभावों के कारण खोए गए श्रम घंटों का नुकसान 835 बिलियन डॉलर तक पहुंच गया है, जो मध्यम और निम्न आय वाले देशों की GDP का 7.6% और 4.4% है।

पेरिस समझौते से पीछे रह रही दुनिया

पेरिस समझौते के बावजूद, 2023 में CO₂ उत्सर्जन ने नए रिकॉर्ड बनाए। 2040 तक इन उत्सर्जनों के लक्ष्यों से 189% अधिक होने की उम्मीद है। जीवाश्म ईंधन उद्योग में निवेश जारी है, जिससे जलवायु लक्ष्यों की पूर्ति कठिन होती जा रही है।

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संभावनाओं की ओर एक कदम

हालांकि, स्वच्छ ऊर्जा निवेश में बढ़ोतरी हुई है। रिपोर्ट ने 2023 में 11 स्वास्थ्य-केंद्रित सिफारिशें दी हैं, जिनमें स्वास्थ्य के दृष्टिकोण से नीतियों में बदलाव की आवश्यकता बताई गई है। इसमें पारंपरिक ऊर्जा सब्सिडी को स्वच्छ ऊर्जा में बदलने और प्रभावित देशों के लिए सहायता पर जोर दिया गया है। जलवायु और स्वास्थ्य की शिक्षा, स्वच्छ आहार और प्रदूषण नियंत्रण को जलवायु नीतियों में शामिल करने की सिफारिश की गई है।

रिपोर्ट ने निष्कर्ष में कहा कि स्वास्थ्य पेशेवरों को जलवायु नीति निर्माताओं के साथ मिलकर काम करना चाहिए, ताकि स्वस्थ और सुरक्षित भविष्य की दिशा में कदम बढ़ाए जा सकें।

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