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जलवायु परिवर्तन बन रहा है जैव विविधता बड़ा खतरा, समुद्री अकशेरुकी जीवों पर सबसे ज्यादा असर

by kishanchaubey
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एक नए अध्ययन के अनुसार, अब तक जैव विविधता के नुकसान का प्रमुख कारण अत्यधिक दोहन और आवास का विनाश माना जाता रहा है, लेकिन जलवायु परिवर्तन तेजी से पृथ्वी के जानवरों के लिए तीसरा सबसे बड़ा खतरा बनता जा रहा है।

शोध में सामने आया है कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली चरम मौसमी घटनाएं, जैसे लू, जंगल की आग, सूखा और बाढ़, सामूहिक मृत्यु का कारण बन रही हैं, जो पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता पर गहरा प्रभाव डाल रही हैं।

शोध का आधार और निष्कर्ष
ओरेगन स्टेट यूनिवर्सिटी (ओएसयू) कॉलेज ऑफ फॉरेस्ट्री और मैक्सिको के शोधकर्ताओं ने 70,814 प्रजातियों के डेटा का विश्लेषण करने के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ (आईयूसीएन) के सार्वजनिक रूप से उपलब्ध जैव विविधता डेटासेट का उपयोग किया। इन प्रजातियों को उनके वर्ग और जलवायु परिवर्तन के खतरों के आधार पर वर्गीकृत किया गया।

शोध में पाया गया कि छह अलग-अलग वर्गों की कम से कम एक-चौथाई प्रजातियां जलवायु परिवर्तन से प्रभावित हैं। इनमें मकड़ियां (एराक्निड्स), सेंटीपीड्स (चिलोपोड्स), जेलीफिश और कोरल से संबंधित समुद्री अकशेरुकी (एंथोजोअन्स और हाइड्रोजोअन्स) शामिल हैं।

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विशेष रूप से समुद्री अकशेरुकी जीव जलवायु परिवर्तन से होने वाली गर्मी को सबसे ज्यादा अवशोषित करते हैं, जिससे उनकी चलने-फिरने की सीमित क्षमता के कारण वे अधिक संवेदनशील हो गए हैं।

सामूहिक मृत्यु की घटनाएं और उनके प्रभाव
शोध पत्र, जो बायोसाइंस में प्रकाशित हुआ, बताता है कि जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाली चरम मौसमी घटनाएं सामूहिक मृत्यु का कारण बन रही हैं। उदाहरण के लिए:

  • इजरायल के तट पर बढ़ते समुद्री तापमान के कारण मोलस्क की आबादी में 90% की कमी आई।
  • 2021 में प्रशांत नॉर्थवेस्ट हीट डोम के दौरान अरबों इंटरटाइडल अकशेरुकी जीवों की मृत्यु हुई।
  • 2016 की भीषण समुद्री लू के कारण ग्रेट बैरियर रीफ के 29% हिस्से में कोरल नष्ट हो गए।
  • 2015-16 में उत्तरी अमेरिका के पश्चिमी तट पर समुद्री लू के कारण 40 लाख आम म्यूरेस भूख से मर गए, पैसिफिक कॉड की आबादी 71% कम हुई, और लगभग 7,000 हंपबैक व्हेल की मृत्यु में इसकी भूमिका हो सकती है।

इन सामूहिक मृत्यु की घटनाओं के व्यापक प्रभाव कार्बन चक्र, पोषक चक्रण, शिकार, प्रतिस्पर्धा, परागण और परजीवीवाद जैसी पारिस्थितिकी तंत्र की महत्वपूर्ण प्रक्रियाओं को प्रभावित कर रहे हैं।

डेटा की कमी और चिंता
शोध में चिंता का एक प्रमुख कारण यह भी है कि वन्यजीवों पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों के बारे में जानकारी अभी भी बहुत सीमित है। 101 में से 66 वन्यजीव वर्गों की प्रजातियों का अभी तक आईयूसीएन द्वारा मूल्यांकन नहीं किया गया है।

मूल्यांकन की गई 70,814 प्रजातियां पृथ्वी की कुल वर्णित प्रजातियों का केवल 5.5% हैं। आईयूसीएन की रेड लिस्ट में कशेरुकी प्रजातियों पर अधिक ध्यान दिया गया है, जो पृथ्वी की कुल प्रजातियों का 6% से भी कम हैं।

आगे की जरूरतें
शोधकर्ताओं ने सुझाव दिया है कि जलवायु परिवर्तन के खतरों का आकलन करने और प्रजातियों की अनुकूलन क्षमता को समझने के लिए अधिक व्यापक अध्ययन की आवश्यकता है।

सामूहिक मृत्यु की घटनाओं पर एक वैश्विक डेटाबेस तैयार करना और अनदेखी प्रजातियों का मूल्यांकन तेज करना जरूरी है। इसके अलावा, जैव विविधता और जलवायु परिवर्तन नीतियों को एक साथ जोड़कर वैश्विक स्तर पर समन्वित प्रयासों की आवश्यकता है।

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