जलवायु परिवर्तन अब दूर की बात नहीं, बल्कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी को प्रभावित करने वाली सच्चाई है। खेती-किसानी पर इसका गहरा असर पड़ रहा है। हाल के एक अध्ययन से पता चला है कि अगर वैश्विक तापमान 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा बढ़ता है, तो खाद्य सुरक्षा पर गंभीर संकट आ सकता है। इसका कारण होगा फसलों की विविधता में भारी कमी।
नेचर फूड जर्नल में प्रकाशित इस अध्ययन के मुताबिक, अगर तापमान 2 डिग्री सेल्सियस बढ़ता है, तो दुनिया की 52% कृषि भूमि पर फसलों की विविधता घट सकती है। यदि तापमान 3 डिग्री सेल्सियस तक बढ़े, तो यह आंकड़ा 56% तक पहुंच सकता है। इसका मतलब है कि हमारी थाली से कई दालें, सब्जियां, और अनाज गायब हो सकते हैं।
यह अध्ययन फिनलैंड की आल्टो यूनिवर्सिटी, जर्मनी के गौटिंगेन विश्वविद्यालय, और स्विट्जरलैंड के ज्यूरिख विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने किया। उन्होंने 30 प्रमुख फसलों (जैसे चावल, गेहूं, मक्का, आलू, सोयाबीन) पर तापमान, बारिश, और सूखे के असर का विश्लेषण किया। शोध में 1.5 से 4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी के चार परिदृश्यों का अध्ययन किया गया।
भूमध्य रेखा के पास के क्षेत्र, जैसे उप-सहारा अफ्रीका और दक्षिण एशिया (भारत सहित), सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे। तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी से इन क्षेत्रों की 70% से ज्यादा कृषि भूमि पर फसलों की विविधता कम हो सकती है। 3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी पर उप-सहारा अफ्रीका में 75% तक फसल उत्पादन खतरे में पड़ सकता है। भारत में चावल, गेहूं, और दालों पर असर पड़ेगा, जो हमारी खुराक का बड़ा हिस्सा हैं।
तापमान बढ़ने से खेती की जमीन कम होगी। 2 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी से 10-31% कृषि उत्पादन ऐसे क्षेत्रों में शिफ्ट हो सकता है, जहां का मौसम फसलों के लिए अनुकूल नहीं। 3 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी पर यह 20-48% तक पहुंच सकता है। बारिश का पैटर्न बदलने, सूखे, और मिट्टी की उर्वरता घटने से फसलों का उत्पादन कम होगा। इससे कैलोरी और प्रोटीन की कमी हो सकती है, जिससे कुपोषण बढ़ेगा।
प्रमुख फसलें जैसे चावल, गेहूं, मक्का, आलू, और सोयाबीन, जो दुनिया की दो-तिहाई खाद्य जरूरतें पूरी करती हैं, खतरे में होंगी। याम जैसी कंद फसलें, जो गरीब क्षेत्रों में मुख्य भोजन हैं, भी प्रभावित होंगी। शोध की लेखिका सारा हेइकोनेन कहती हैं कि फसलों की विविधता कम होने से पोषण की कमी होगी। प्रोफेसर मैट्टी कुम्मु ने चेतावनी दी कि तापमान बढ़ने से नई फसलें उगाने के मौके मिल सकते हैं, लेकिन कीट और चरम मौसमी घटनाएं (बाढ़, सूखा) चुनौती बढ़ाएंगी।
यूरोप और अमेरिका जैसे उच्च अक्षांश क्षेत्र कम प्रभावित होंगे। वहां नई फसलें उगाने के मौके बढ़ सकते हैं, लेकिन वैश्विक मांग और बाजार तय करेंगे कि क्या उगाया जाए।
उपाय क्या हैं?
- नई फसलें: गर्मी और सूखा सहने वाली फसलों को अपनाएं।
- बुवाई का समय: मौसम के हिसाब से बुवाई और कटाई बदलें।
- सिंचाई और उर्वरक: अफ्रीका और दक्षिण एशिया में बेहतर सुविधाएं।
- भंडारण: फसलों को सुरक्षित रखने के लिए गोदाम।
- कीट नियंत्रण: नए कीटों से बचाव के तरीके।