ओडिशा के चिलिका झील में डॉल्फिन जनगणना का तीन दिवसीय कार्यक्रम आज सुबह शुरू हुआ। इस अभियान में चिलिका वाइल्डलाइफ डिवीजन की 18 टीमों को चिलिका और सतपड़ा से रवाना किया गया है।
कार्यक्रम का समय और स्थान:
यह जनगणना 20 से 22 जनवरी तक, हर दिन सुबह 6 बजे से दोपहर 12 बजे तक चलेगी। सतपड़ा से 8 टीमों को उत्तरी बाहरी चैनल में तैनात किया गया है, जबकि बालुगांव से 10 टीमें झील के मध्य और दक्षिणी चैनलों में काम कर रही हैं।
स्वयंसेवकों और विशेषज्ञों की भागीदारी:
इस जनगणना में वन्यजीव प्रेमियों, छात्रों, शोधकर्ताओं और वाइल्डलाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (WII) के छह सदस्यों सहित स्वयंसेवकों की एक टीम भी हिस्सा ले रही है। ये टीम आधुनिक उपकरण जैसे स्पॉटिंग बाइनोक्यूलर, जीपीएस ट्रैकर्स और सोनिक उपकरणों से लैस है। इनका उद्देश्य झील में डॉल्फिन की सटीक संख्या का आकलन करना है।
डॉल्फिन जनगणना कैसे होती है?
डॉल्फिन जनगणना “लाइन ट्रांसेक्ट पद्धति” के जरिए की जाती है। इसमें कई नावें एक साथ झील के विभिन्न हिस्सों में बहुत धीमी गति से समानांतर रूप से चलती हैं। जैसे ही कोई टीम डॉल्फिन को देखती है, वे इसकी जानकारी दर्ज करती हैं।
चिलिका वन्यजीव प्रभाग के सहायक वन संरक्षक प्रमोद कुमार सेठी के अनुसार, WII की टीम डॉल्फिन का पता लगाने के लिए इको-लोकेशन पद्धति का उपयोग करते हुए हाइड्रोफोन का इस्तेमाल करेगी। अभियान समाप्त होने के बाद, मैनुअल अवलोकन से प्राप्त आंकड़ों और हाइड्रोफोन डेटा को मिलाकर डॉल्फिन की सटीक संख्या तैयार की जाएगी।
चिलिका झील और डॉल्फिन की विशेषता:
पिछले साल अगस्त में ओडिशा के वन और पर्यावरण मंत्री गणेश राम खुटिया ने विधानसभा में बताया था कि चिलिका झील और इसके आसपास के इलाकों में 743 डॉल्फिन पाई गई थीं। चिलिका झील, जो एशिया की सबसे बड़ी खारे पानी की झील है, दुनिया में सबसे ज्यादा सिंगल लैगून डॉल्फिन आबादी के लिए जानी जाती है।
पिछले वर्ष का डेटा:
पिछले साल की जनगणना में 154 इरावदी डॉल्फिन और 19 बॉटलनोज डॉल्फिन दर्ज की गई थीं। यह आंकड़े झील की समृद्ध जैव विविधता को दर्शाते हैं।
महत्व:
चिलिका झील में हर साल होने वाली डॉल्फिन जनगणना डॉल्फिन की सेहत और उनकी आबादी की स्थिति पर नजर रखने के लिए बेहद जरूरी है। यह झील न केवल जैव विविधता के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि स्थानीय पर्यावरणीय संतुलन बनाए रखने में भी अहम भूमिका निभाती है।