Chhattisgarh : छत्तीसगढ़ ने भारत में पहली बार पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं का मूल्यांकन अपनी आर्थिक योजना का हिस्सा बनाया है। यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘विकसित भारत @2047’ और सतत विकास लक्ष्यों (SDGs) की दिशा में एक बड़ा प्रयास है। मुख्यमंत्री विष्णु देव साय के नेतृत्व में और वन मंत्री केदार कश्यप की देखरेख में इस पहल को वन विभाग के जरिए लागू किया जा रहा है।
इस योजना का मुख्य उद्देश्य ग्रीन जीडीपी (Green GDP) को राज्य की विकास रणनीतियों में शामिल करना है।
छत्तीसगढ़ के वन और उनकी अहमियत
छत्तीसगढ़ का 44% क्षेत्रफल (59,820.78 वर्ग किलोमीटर) वनाच्छादित है, जो लाखों लोगों की आजीविका का आधार है। राज्य के वनों से मिलने वाले प्रत्यक्ष लाभ, जैसे लकड़ी, बांस, तेंदूपत्ता, औषधीय पौधे, साल के बीज, शहद और लाख, ग्रामीण अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। ये संसाधन स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देते हैं, रोजगार प्रदान करते हैं और आसपास के समुदायों की रोज़मर्रा की जरूरतें पूरी करते हैं।
लेकिन वनों से मिलने वाले अप्रत्यक्ष लाभ, जैसे जलवायु संतुलन, कार्बन अवशोषण, जैव विविधता संरक्षण, जल पुनर्भरण और सांस्कृतिक महत्व, अक्सर नजरअंदाज कर दिए जाते हैं। इस कमी को पूरा करने के लिए राज्य वन विभाग अब इन सेवाओं का मूल्यांकन कर रहा है और इसे ग्रीन जीडीपी के रूप में दर्ज कर रहा है।
वन संसाधनों का आर्थिक योगदान
छत्तीसगढ़ के वनों ने 2024 में अपनी आर्थिक क्षमता साबित की:
- तेंदूपत्ता संग्रहण से 789 करोड़ रुपये का राजस्व प्राप्त हुआ। 2022 में तेंदूपत्ता संग्रहकर्ताओं को 248.47 करोड़ रुपये प्रोत्साहन राशि के रूप में दिए गए।
- लकड़ी उत्पादन 115,758 घन मीटर तक पहुंचा।
- बांस वितरण से 4,178 परिवारों को लाभ मिला।
- संयुक्त वन प्रबंधन कार्यक्रम के तहत 7,887 वन प्रबंधन समितियों को 422.94 करोड़ रुपये का लाभांश वितरित किया गया।
इको-टूरिज्म और सांस्कृतिक महत्व
राज्य में इको-टूरिज्म तेजी से बढ़ा है। गुरु घासीदास नेशनल पार्क, कांगेर घाटी, और इंद्रावती राष्ट्रीय उद्यान जैसे स्थान इको-कैंप, सफारी और ट्रेल्स के माध्यम से पर्यावरण संरक्षण के साथ स्थानीय अर्थव्यवस्था को सशक्त बना रहे हैं।
इसके अलावा, देवगुड़ी जैसे पवित्र स्थल न केवल आदिवासी सांस्कृतिक धरोहर को संजो रहे हैं, बल्कि जैव विविधता के संरक्षण में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं।
वन सेवाओं का मूल्यांकन: आर्थिक और पर्यावरणीय संतुलन
वन सेवाओं का मूल्यांकन राज्य की बजट योजना, फंड आवंटन और वन प्रबंधन रणनीतियों में मदद करेगा। यह सुनिश्चित करेगा कि वन संसाधनों का अधिकतम सामाजिक-आर्थिक लाभ उठाते हुए पर्यावरण संरक्षण भी बरकरार रखा जाए।
इस पहल में एसीएस (वन और जलवायु परिवर्तन) ऋचा शर्मा, पीसीसीएफ और हॉफ वी. श्रीनिवास राव, और एपीसीसीएफ सुनील मिश्रा जैसे अधिकारियों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
देश के लिए एक मॉडल
छत्तीसगढ़ का यह प्रयास पर्यावरण संरक्षण और आर्थिक विकास के बीच संतुलन बनाने की दिशा में एक आदर्श कदम है। इस मॉडल को अपनाकर अन्य राज्य भी सतत विकास लक्ष्यों की ओर अग्रसर हो सकते हैं।