केंद्र सरकार ने संसद में साफ कर दिया है कि वह वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 में कोई बदलाव नहीं करने जा रही है। इसका मतलब है कि राज्यों को जंगली जानवरों के हमलों से निपटने के लिए ज्यादा अधिकार नहीं दिए जाएंगे। यह जानकारी पर्यावरण राज्य मंत्री किर्ति वर्धन सिंह ने राज्यसभा सांसद वी. सिवदासन के सवाल के जवाब में दी। सिवदासन कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सिस्ट) से सांसद हैं और केरल का प्रतिनिधित्व करते हैं।
क्या है पूरा मामला?
सिवदासन ने सरकार से पूछा था कि क्या केंद्र वन्यजीव संरक्षण कानून में बदलाव करके राज्यों को जंगली जानवरों के हमलों से निपटने के लिए ज्यादा स्वतंत्रता देगा? उन्होंने यह भी पूछा कि क्या राज्यों ने इस कानून में बदलाव की माँग की है?
मंत्री किर्ति वर्धन सिंह ने जवाब दिया कि इस कानून में अभी कोई बदलाव की योजना नहीं है। उन्होंने बताया कि वन्यजीवों की सुरक्षा और इंसान-जानवरों के बीच टकराव (ह्यूमन-वाइल्डलाइफ कॉन्फ्लिक्ट) को संभालने की जिम्मेदारी मुख्य रूप से राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों की है।
वन्यजीव संरक्षण कानून क्या कहता है?
यह कानून जंगली जानवरों की रक्षा के लिए बनाया गया है, लेकिन इसमें कुछ ऐसे प्रावधान हैं जो खतरनाक जानवरों से निपटने की इजाजत देते हैं:
- सेक्शन 11(1)(a): अगर कोई जानवर, जो शेड्यूल-1 (सबसे ज्यादा संरक्षित प्रजाति) में है, इंसानों के लिए खतरनाक हो जाता है या उसे ठीक न होने वाली बीमारी हो जाती है, तो राज्य का मुख्य वन्यजीव वार्डन उसकी शिकार की अनुमति दे सकता है।
- सेक्शन 11(1)(b): अगर शेड्यूल-2, 3, या 4 में शामिल जानवर (जिन्हें कम संरक्षण मिलता है) इंसानों या उनकी संपत्ति के लिए खतरनाक हो जाते हैं, या वे बीमार या अपंग हो जाते हैं, तो मुख्य वन्यजीव वार्डन या कोई अधिकृत अधिकारी शिकार की अनुमति दे सकता है।
केरल की माँग: जंगली सुअर को “हानिकारक” घोषित करें
सिवदासन केरल से हैं, और केरल सरकार लंबे समय से केंद्र से माँग कर रही है कि जंगली सुअर (वाइल्ड बोअर) को “हानिकारक” (Vermin) घोषित किया जाए। केरल का कहना है कि जंगली सुअर फसलों को भारी नुकसान पहुँचा रहे हैं और इंसानों पर हमले भी बढ़ गए हैं।
- हानिकारक घोषित करने का मतलब: अगर किसी जानवर को “हानिकारक” घोषित कर दिया जाता है (सेक्शन 62 के तहत), तो उसे कानूनी संरक्षण नहीं मिलता। इसका मतलब है कि लोग उसे बिना किसी रोक-टोक के मार सकते हैं। लेकिन सेक्शन 11 के तहत अनुमति केस-टू-केस आधार पर दी जाती है, जिसमें हर मामले की जाँच होती है।
- केंद्र का जवाब: केंद्र ने 2021 में कहा था कि जंगली सुअर को “हानिकारक” घोषित करना ज्यादा नुकसान करेगा। इसके बजाय, केंद्र ने केरल को सलाह दी कि वह सेक्शन 11 का इस्तेमाल करे, जिसमें मुख्य वन्यजीव वार्डन को चुनिंदा शिकार की अनुमति देने का अधिकार है।
केरल ने क्या कदम उठाए?
- 2022 में विशेष आदेश: केरल सरकार ने एक विशेष आदेश जारी किया, जिसमें किसानों को लाइसेंसी बंदूक से जंगली सुअर को मारने की अनुमति दी गई। लेकिन यह शिकार वन रक्षक की मौजूदगी में करना जरूरी था। यह आदेश 17 मई 2022 से एक साल के लिए बढ़ाया गया था।
- केरल विधानसभा की माँग: पिछले साल, केरल विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें केंद्र से जंगली सुअर को “हानिकारक” घोषित करने और कानून में बदलाव करने की माँग की गई, ताकि इंसान-जानवर टकराव को कम किया जा सके।
केंद्र का रुख
केंद्र सरकार का कहना है कि मौजूदा कानून में राज्यों के पास पहले से ही काफी अधिकार हैं। सेक्शन 11 के तहत राज्य अपने स्तर पर खतरनाक जानवरों से निपट सकते हैं। लेकिन “हानिकारक” घोषित करने का फैसला केंद्र ही ले सकता है, और अभी वह इसके लिए तैयार नहीं है।
इंसान-जानवर टकराव क्यों बढ़ रहा है?
- जंगल कम होना: जंगलों की कटाई और शहरीकरण की वजह से जानवरों का प्राकृतिक आवास सिकुड़ रहा है। इससे वे गाँवों और शहरों की ओर आ रहे हैं।
- फसलों को नुकसान: जंगली सुअर जैसे जानवर खेतों में घुसकर फसलों को नष्ट कर देते हैं, जिससे किसानों को भारी नुकसान होता है।
- हमले बढ़ना: जंगली जानवरों के हमले में इंसानों की जान भी जा रही है, खासकर केरल जैसे राज्यों में, जहाँ जंगल और गाँव पास-पास हैं।
क्या हो सकता है समाधान?
- जागरूकता और सुरक्षा: गाँवों में लोगों को जंगली जानवरों से बचने के तरीके सिखाए जाएँ, जैसे बाड़ लगाना या शोर मचाने वाली मशीनें इस्तेमाल करना।
- जंगलों का संरक्षण: जंगलों को बचाने और जानवरों के लिए उनके प्राकृतिक आवास को बढ़ाने की जरूरत है।
- स्थानीय समाधान: राज्यों को अपने स्तर पर ऐसे उपाय करने चाहिए, जो इंसानों और जानवरों दोनों की सुरक्षा करें, जैसे कि चुनिंदा शिकार की अनुमति देना।