दिल्ली-NCR और उत्तर भारत में प्रदूषण का संकट
उत्तर भारत के कई राज्यों, विशेष रूप से दिल्ली-NCR, में बढ़ते वायु प्रदूषण और AQI स्तर ने जीवन की गुणवत्ता पर गंभीर असर डाला है। लेकिन सवाल यह है कि ऊंची इमारतों में रहने वाले लोगों के लिए यह समस्या और गंभीर है या नहीं?
ऊंचाई पर वायु गुणवत्ता और ऑक्सीजन का स्तर
स्वास्थ्य कोच डॉ. मिक्की मेहता के अनुसार, ऊंचाई पर ऑक्सीजन का स्तर थोड़ा कम होता है। साथ ही, शहरी क्षेत्रों की ऊंचाई पर हवा में प्रदूषक कण अधिक स्थिर होते हैं, जो शरीर के अंगों पर नकारात्मक प्रभाव डाल सकते हैं। इससे रक्तचाप, हृदय, और सांस से संबंधित समस्याएं हो सकती हैं।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
- डॉ. संगीता चेकर (चेस्ट फिजिशियन, वॉकहार्ट हॉस्पिटल):
ऊंची इमारतों में लंबे समय तक रहना सांस से जुड़ी बीमारियों जैसे राइनाइटिस, अस्थमा, और क्रोनिक समस्याओं को बढ़ा सकता है। इसके लिए खराब “इनडोर एयर क्वालिटी” भी जिम्मेदार हो सकती है। - डॉ. रवि शेखर झा (पल्मोनोलॉजिस्ट, फोर्टिस हॉस्पिटल, फरीदाबाद):
ऊंचाई बढ़ने पर वायु दबाव और ऑक्सीजन का स्तर थोड़ा कम हो जाता है, लेकिन यह बदलाव सामान्यतः ऊंची इमारतों की ऊंचाई में स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण नहीं है। हालांकि, दिल और फेफड़ों की बीमारियों वाले व्यक्तियों को हल्की परेशानी हो सकती है। - डॉ. सुधीर कुमार (न्यूरोलॉजिस्ट, अपोलो हॉस्पिटल, हैदराबाद):
जिन लोगों को पहले से फेफड़े या हृदय की समस्याएं हैं, उनके लिए ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी कुछ लक्षण पैदा कर सकती है। लेकिन स्वस्थ व्यक्तियों पर इसका असर न के बराबर होता है। - डॉ. विकास मित्तल (पल्मोनोलॉजिस्ट, सीके बिरला हॉस्पिटल, दिल्ली):
ऊंची इमारतों में रहने का एक फायदा यह भी है कि लोग जमीनी स्तर पर मौजूद प्रदूषकों जैसे धूल, वाहनों का धुआं और औद्योगिक प्रदूषण से कम प्रभावित होते हैं। इसके अलावा, आधुनिक वेंटिलेशन सिस्टम इनडोर एयर क्वालिटी में सुधार करते हैं।
ऊंचाई और वायु दबाव का असर
ज्यादा ऊंचाई पर जाने से वायु दबाव हर 100 मीटर पर लगभग 1.2% कम हो जाता है। यह बदलाव ऊंची इमारतों में सामान्यतः नगण्य है, लेकिन गंभीर सांस की बीमारियों वाले लोगों को हल्की दिक्कत हो सकती है।
जमीनी स्तर बनाम ऊंचाई पर रहने का अध्ययन
स्विट्जरलैंड में 1.5 मिलियन लोगों पर किए गए एक अध्ययन में पाया गया कि:
- लंग डिजीज: जमीनी स्तर पर रहने वाले लोगों की मृत्यु दर 40% अधिक थी।
- हृदय रोग: ग्राउंड फ्लोर पर रहने वालों की मृत्यु दर 35% अधिक थी।
- लंग कैंसर: खतरा 22% अधिक पाया गया।
इसके अलावा, ऊपरी मंजिलों पर रहने वाले लोगों को शोर प्रदूषण और एलर्जी (जैसे पराग कण) से भी कम जोखिम होता है।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव
1. पर्यावरण पर प्रभाव:
- ऊंचाई पर प्रदूषण का स्वरूप:
ऊंची इमारतों पर वायु प्रदूषण के कण हवा में लंबे समय तक बने रहते हैं, जिससे हवा की गुणवत्ता प्रभावित होती है। - ऊर्जा खपत:
ऊंची इमारतों के वेंटिलेशन और एयर कंडीशनिंग सिस्टम अधिक ऊर्जा की खपत करते हैं, जिससे कार्बन उत्सर्जन बढ़ता है।
2. स्वास्थ्य पर प्रभाव:
- सांस संबंधी समस्याएं:
लंबे समय तक खराब इनडोर एयर क्वालिटी से अस्थमा, ब्रोंकाइटिस और अन्य सांस की बीमारियां हो सकती हैं। - मानसिक स्वास्थ्य:
ऊंचाई पर लंबे समय तक अकेले रहने से तनाव और मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव पड़ सकता है। - फिटनेस पर असर:
पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से दूरी होने के कारण शरीर की प्राकृतिक कार्यप्रणाली पर असर हो सकता है।
3. सकारात्मक पहलू:
- ऊंचाई पर रहने से शोर प्रदूषण और जमीन पर मौजूद धूल और एलर्जी के जोखिम से बचा जा सकता है।
- बेहतर वेंटिलेशन और कम ग्राउंड-लेवल प्रदूषण स्वास्थ्य के लिए लाभकारी हो सकता है।
समाधान और सुझाव
- इनडोर एयर क्वालिटी सुधारें:
- एयर प्यूरिफायर का इस्तेमाल करें।
- नियमित रूप से घर को हवादार रखें।
- हरी पट्टी विकसित करें:
ऊंची इमारतों के आसपास हरियाली बढ़ाएं। - फिटनेस और स्वास्थ्य पर ध्यान दें:
योग और व्यायाम से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को बेहतर बनाएं। - ऊंचाई पर रहने वाले विशेष समूहों का ध्यान रखें:
बच्चों, बुजुर्गों और बीमार लोगों के लिए विशेष स्वास्थ्य उपाय किए जाएं।
निष्कर्ष:
ऊंची इमारतों में रहने के अपने फायदे और नुकसान हैं। बेहतर इनडोर एयर क्वालिटी और प्रदूषण नियंत्रण उपाय अपनाकर, ऊंचाई पर जीवन को स्वस्थ और सुखद बनाया जा सकता है।