Buddha Nala: बुद्धा नाला, जो कभी सतलुज नदी की एक स्वच्छ सहायक नदी थी, पिछले 50 वर्षों में धीमी और दर्दनाक तबाही का शिकार हुआ है। पंजाब के औद्योगिक केंद्र लुधियाना से गुजरने वाला यह नाला अब एक जहरीली नाली के रूप में कुख्यात है। इसमें बिना उपचारित औद्योगिक कचरा, शहरी सीवेज और कृषि अपशिष्ट बहता है। यह नाला औद्योगिकीकरण, शहरी विस्तार और मानवीय लापरवाही के पर्यावरणीय नुकसान का प्रतीक बन गया है।
कभी जीवनदायिनी थी यह नदी
अपने स्वर्णिम समय में बुद्धा नाला इस क्षेत्र के लिए जीवनरेखा था। इसकी साफ-सुथरी जलधारा ने जलीय जीवन का पोषण किया, कृषि को सहारा दिया और स्थानीय किसानों और व्यापारियों की आजीविका में योगदान दिया। लेकिन जैसे ही लुधियाना में औद्योगिकीकरण तेजी से बढ़ा, नाला प्रदूषित होने लगा।
औद्योगिक इकाइयों ने इसमें बिना उपचारित अपशिष्ट बहाना शुरू कर दिया। घरेलू सीवेज, कृषि अपशिष्ट और नाले के किनारे अवैध डेयरियों ने स्थिति और बदतर कर दी। नाले की स्वाभाविक शुद्धिकरण क्षमता समाप्त हो गई, और यह अब उन समुदायों का सहारा नहीं बन सका जो कभी इसके किनारे फले-फूले थे।
पर्यावरणीय और स्वास्थ्य संकट
आज बुद्धा नाला का जहरीला पानी स्थानीय निवासियों के जीवन की गुणवत्ता को बुरी तरह प्रभावित कर रहा है।
- स्वास्थ्य पर असर:
बच्चे जहरीली गैसों से प्रभावित होकर श्वसन संबंधी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं। वयस्कों में त्वचा रोग और पेट की बीमारियां आम हो गई हैं। - मछली पकड़ने का व्यवसाय खत्म:
जलीय जीवन समाप्त हो चुका है, जिससे मछली पकड़ने वाले समुदाय अपनी आजीविका खो चुके हैं। - भूजल प्रदूषण:
2022 में पंजाब कृषि विश्वविद्यालय के एक अध्ययन में पाया गया कि नाले के पानी में लेड और क्रोमियम जैसे भारी धातु सुरक्षित स्तर से कहीं अधिक मात्रा में हैं। ये प्रदूषक भूजल में भी प्रवेश कर गए हैं, जिससे सार्वजनिक स्वास्थ्य संकट और गंभीर हो गया है।
प्रदूषण का असर सतलुज और हरिके जलाशय पर
नाले का प्रदूषित पानी सतलुज नदी और हरिके जलाशय को भी प्रदूषित कर रहा है, जो पंजाब और राजस्थान के लिए जल स्रोत हैं। इससे अंतर-राज्यीय जल संबंधों पर भी दबाव बढ़ा है।
पुनरुद्धार के प्रयास: समस्याएं और चुनौतियां
बुद्धा नाले को बचाने के लिए किए गए प्रयास अब तक प्रभावी नहीं रहे हैं।
- 1980 के दशक:
शुरुआती प्रयासों में जागरूकता और औद्योगिक कचरे की निगरानी पर ध्यान दिया गया, लेकिन इनमें सख्ती नहीं थी। - 1990 के दशक:
उद्योगों को एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट (ETPs) लगाने का आदेश दिया गया, लेकिन अनुपालन अधूरा रहा। कई प्लांट खराब स्थिति में रहे। - हाल के प्रयास (2018-2022):
बुद्धा नाला पुनरुद्धार परियोजना और सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STPs) की स्थापना के बावजूद, वित्तीय देरी, कानूनों का कमजोर क्रियान्वयन और अतिक्रमण हटाने में असफलता ने इन प्रयासों को कमजोर कर दिया।
समाधान के रास्ते
बुद्धा नाला की स्थिति में सुधार लाने के लिए निम्नलिखित कदम उठाए जा सकते हैं:
- सख्त नियम और अनुपालन:
- उद्योगों के लिए पर्यावरणीय मानकों का पालन अनिवार्य किया जाए।
- गैर-अनुपालन पर भारी जुर्माने लगाए जाएं।
- एक विशेष कार्य बल बनाकर इन नियमों का क्रियान्वयन सुनिश्चित किया जाए।
- हानिकारक उद्योगों का स्थानांतरण:
- सबसे प्रदूषणकारी उद्योगों को सुरक्षित क्षेत्रों में स्थानांतरित किया जाए।
- स्थानांतरित उद्योगों को प्रोत्साहन दिया जाए और उनके पुराने स्थान का वाणिज्यिक उपयोग करने की अनुमति दी जाए।
- सामुदायिक भागीदारी:
- स्थानीय निवासियों को कचरा अलग करने और उचित तरीके से निपटान के लिए शिक्षित किया जाए।
- स्वच्छता अभियान चलाए जाएं और जनता को जिम्मेदारी का एहसास कराया जाए।
- उन्नत प्रौद्योगिकी का उपयोग:
- अधिक संख्या में STPs और कॉमन एफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट्स (CETPs) स्थापित किए जाएं।
- भौगोलिक सूचना प्रणाली (GIS) के माध्यम से प्रदूषण के हॉटस्पॉट की पहचान कर लक्षित उपाय किए जाएं।
अन्य देशों से सीखने की जरूरत
दुनिया में कई नदियों को पुनर्जीवित करने के सफल उदाहरण हैं:
गंगा कार्य योजना (भारत):
सामुदायिक भागीदारी और सार्वजनिक-निजी भागीदारी का बेहतरीन उदाहरण है।
थेम्स नदी (यूके):
इसे राजनीतिक इच्छाशक्ति और भारी निवेश से पुनर्जीवित किया गया।
राइन नदी (यूरोप):
अंतरराष्ट्रीय समन्वय के जरिए इसे साफ किया गया।