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भारत में जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन: वैज्ञानिकों ने विकसित की नई पर्यावरण-अनुकूल तकनीक

by kishanchaubey
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भारत में प्रतिदिन लगभग 742 टन जैव चिकित्सा अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिससे अस्पतालों को इसके प्रबंधन में भारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इस कचरे में रक्त, थूक, शरीर के अंग, पट्टियां और रूई आदि शामिल हो सकते हैं। आमतौर पर इसे विशेष भट्टियों में जलाकर नष्ट किया जाता है। लेकिन, केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, लगभग 200 टन खतरनाक जैव चिकित्सा अपशिष्ट अब भी अनुपचारित रहता है।

अनुपचारित जैव चिकित्सा अपशिष्ट के खतरनाक प्रभाव

  • रोगाणुरोधी प्रतिरोध: अनुपचारित जैव चिकित्सा अपशिष्ट से ऐसे सूक्ष्मजीव विकसित हो सकते हैं, जो एंटीबायोटिक्स के खिलाफ प्रतिरोधी बन जाते हैं। यह पूरी मानवता के लिए एक बड़ा खतरा है।
  • सुरक्षित परिवहन का जोखिम: जैव चिकित्सा अपशिष्ट के सुरक्षित परिवहन में भी कई चुनौतियां होती हैं, जिससे संक्रामक रोग फैलने का खतरा रहता है।

वैज्ञानिकों ने विकसित की नई जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन तकनीक

अब, केरल के तिरुवनंतपुरम स्थित वैज्ञानिक एवं औद्योगिक अनुसंधान परिषद-राष्ट्रीय अंतःविषय विज्ञान और प्रौद्योगिकी संस्थान (CSIR-NIIST) के वैज्ञानिकों ने एक स्वदेशी तकनीक विकसित की है, जो रसायनों की मदद से जैव चिकित्सा कचरे को खाद में बदल सकती है। इस तकनीक को ‘सृजनम’ (Srjanam) नाम दिया गया है।

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‘सृजनम’ की अनोखी विशेषताएं

  • यह तकनीक जैव चिकित्सा अपशिष्ट को बिना जलाए सुरक्षित रूप से निष्प्रभावी कर देती है।
  • यह कचरे से उत्पन्न दुर्गंध को दूर कर एक सुखद सुगंध प्रदान करती है, जिससे इसे संभालना और नष्ट करना आसान हो जाता है।
  • यह पूरी तरह स्वचालित प्रणाली है, जो रक्त, मूत्र, थूक और प्रयोगशाला के डिस्पोजेबल कचरे को बिना महंगे और ऊर्जा-गहन भट्टियों का उपयोग किए सुरक्षित रूप से नष्ट कर सकती है।
  • यह प्रति दिन 400 किलोग्राम कचरे को संसाधित करने में सक्षम है और 10 किलोग्राम जैविक चिकित्सा अपशिष्ट को आधे घंटे में मिट्टी जैसे पाउडर में परिवर्तित कर सकती है।

AIIMS, दिल्ली में पहला प्रोटोटाइप स्थापित

इस तकनीक का पहला प्रोटोटाइप अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (AIIMS), नई दिल्ली में स्थापित किया गया है, जहाँ संस्थान के वैज्ञानिक इसका परीक्षण और मान्यकरण करेंगे।

केंद्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह ने इसे एक ‘कचरे से धन’ बनाने की पहल बताते हुए कहा कि “यह पर्यावरण-अनुकूल तकनीक भारत में स्वास्थ्य क्षेत्र में कचरा निपटान के तरीके को पूरी तरह बदल देगी।”

‘सृजनम’ से जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन में सुधार

  • मौजूदा अपशिष्ट निपटान तकनीकों की तुलना में यह कम लागत वाली और अधिक पर्यावरण-अनुकूल है।
  • यह गैर-विषाक्त और रोगाणुरोधी तकनीक है, जिसे तीसरे पक्ष द्वारा सत्यापित किया गया है।
  • वैज्ञानिकों के अनुसार, इसका निष्पादित जैव चिकित्सा अपशिष्ट सामान्य जैविक उर्वरकों जैसे वर्मी-कम्पोस्ट की तुलना में अधिक सुरक्षित है।

स्वास्थ्य और पर्यावरण के लिए एक नया कदम

AIIMS, दिल्ली के निदेशक डॉ. (प्रो.) एम. श्रीनिवास ने कहा, “यह वैज्ञानिक सहयोग की शक्ति को दर्शाता है और जैव चिकित्सा अपशिष्ट प्रबंधन के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि है।”

डॉ. सी. आनंदहरामकृष्णन, निदेशक, CSIR-NIIST, ने बताया कि यह तकनीक स्वास्थ्य सेवा कर्मियों के लिए जोखिम को कम करती है और संक्रामक रोगों के प्रसार को रोकने में सहायक हो सकती है।

‘सृजनम’ के साथ एक स्वच्छ और सुरक्षित भविष्य

आमतौर पर जैव चिकित्सा अपशिष्ट का अवैध रूप से निपटान किया जाता है, जिससे गंभीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य समस्याएं उत्पन्न होती हैं। लेकिन ‘सृजनम’ के माध्यम से अब यह संभव हो सकेगा कि सभी स्वास्थ्य संस्थान सुरक्षित और कानूनी तरीके से अपने अपशिष्ट का निपटान कर सकें।

इसके परीक्षण और अंतिम अनुमोदन के बाद, इस तकनीक को पूरे भारत में लागू किया जा सकता है। इससे न केवल स्वास्थ्य सेवाओं में सुधार होगा, बल्कि पर्यावरण संरक्षण में भी मदद मिलेगी।

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