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बीएचयू के वैज्ञानिकों ने बनाया नया गणितीय मॉडल, जलवायु परिवर्तन और फसल उत्पादन के बीच के संबंधों का किया खुलासा

by kishanchaubey
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वाराणसी: बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के शोधकर्ताओं ने एक नया गणितीय मॉडल तैयार किया है, जो वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) के बढ़ते स्तर, वैश्विक तापमान, मानव जनसंख्या और फसल उत्पादन के बीच जटिल संबंधों को समझने में मदद करता है। यह शोध Chaos नामक जर्नल में प्रकाशित हुआ है और वैश्विक खाद्य सुरक्षा पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को उजागर करता है।

मुख्य निष्कर्ष:

  1. CO2 और फसल उत्पादन का संबंध:
    • शुरुआती दौर में CO2 का बढ़ना “CO2 उर्वरक प्रभाव” (CO2 Fertilisation Effect) के जरिए फसलों की वृद्धि को बढ़ाता है।
    • लेकिन जब तापमान एक सीमा से अधिक बढ़ जाता है, तो अत्यधिक गर्मी के कारण फसल उत्पादन में भारी गिरावट होती है।
  2. महत्वपूर्ण बिंदु:
    • CO2 उत्सर्जन के लिए एक “क्रिटिकल थ्रेशोल्ड” है। यदि यह सीमा पार होती है, तो फसल उत्पादन तेजी से घटने लगता है।
    • अलग-अलग फसलें जलवायु परिवर्तन पर अलग-अलग प्रतिक्रिया देती हैं।
    • तापमान-सहिष्णु फसल किस्में विकसित करना इस समस्या के समाधान का एक प्रभावी तरीका हो सकता है।
  3. तापमान का असर:
    • यहां तक कि तापमान में मामूली वृद्धि भी फसल उत्पादन पर गंभीर प्रभाव डाल सकती है।

अनुसंधान का महत्व

यह मॉडल जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कृषि रणनीतियों और नीतियों के लिए जरूरी जानकारी प्रदान करता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि CO2 उत्सर्जन को नियंत्रित करना और तापमान-सहिष्णु फसलों का विकास करना वैश्विक खाद्य सुरक्षा बनाए रखने के लिए बेहद जरूरी है।

अगले कदम:

शोधकर्ता अब अपने मॉडल में और भी तत्व जोड़ने की योजना बना रहे हैं, जैसे:

  • कीट आबादी का प्रभाव।
  • पानी की उपलब्धता।
  • मिट्टी की गुणवत्ता।
  • पोषक तत्वों का स्तर।
    इसके साथ ही, वे क्षेत्र-विशिष्ट मॉडल विकसित करेंगे, जिससे स्थानीय स्तर पर सटीक भविष्यवाणियां और रणनीतियां बनाई जा सकें।

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव:

  1. पर्यावरण पर प्रभाव:
    • बढ़ते CO2 स्तर और तापमान कृषि भूमि को बंजर बना सकते हैं।
    • अत्यधिक गर्मी से न केवल फसलें प्रभावित होती हैं, बल्कि जल स्रोत भी सूख सकते हैं।
    • खाद्य सुरक्षा पर खतरा मंडराने से वैश्विक स्तर पर आर्थिक और सामाजिक असंतुलन पैदा हो सकता है।
  2. स्वास्थ्य पर प्रभाव:
    • फसल उत्पादन में गिरावट से कुपोषण और भुखमरी के मामले बढ़ सकते हैं।
    • अत्यधिक गर्मी से मानव शरीर पर तनाव बढ़ता है, जिससे हृदय और श्वसन संबंधी बीमारियों का खतरा बढ़ता है।
    • अनाज और सब्जियों की कमी से भोजन महंगा हो सकता है, जिससे गरीब वर्ग सबसे ज्यादा प्रभावित होगा।

निष्कर्ष:

बीएचयू के इस शोध ने स्पष्ट किया है कि जलवायु परिवर्तन न केवल कृषि उत्पादन बल्कि संपूर्ण मानव जीवन को प्रभावित करता है। इस मॉडल के जरिए तापमान-सहिष्णु फसल किस्में विकसित करने और जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियों को अपनाने की दिशा में महत्वपूर्ण कदम उठाए जा सकते हैं।

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जलवायु परिवर्तन के गंभीर प्रभावों को देखते हुए, यह जरूरी है कि सरकारें, किसान, और वैज्ञानिक मिलकर स्थायी समाधान खोजें। इस शोध से कृषि क्षेत्र में नई दिशा मिल सकती है और खाद्य सुरक्षा बनाए रखने में मदद मिल सकती है।

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