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भोपाल गैस त्रासदी: 40 साल बाद भी जख्म हरे, नई पीढ़ी पर इसका कितना असर ?

by kishanchaubey
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2-3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल के यूनियन कार्बाइड कारखाने से 45 टन मिथाइल आइसोसाइनेट गैस का रिसाव हुआ। यह त्रासदी इतिहास की सबसे भयावह औद्योगिक दुर्घटनाओं में से एक है। जहरीली गैस ने 40 वर्ग किलोमीटर इलाके में तबाही मचाई, जिसमें तत्काल 4,000 से अधिक लोग मारे गए और लाखों प्रभावित हुए। स्वतंत्र एजेंसियों के अनुसार, कुल 25,000 से 30,000 लोगों की जान गई।

पीढ़ियों पर प्रभाव:
त्रासदी के प्रत्यक्ष पीड़ितों के अलावा, उनके बच्चों पर भी इसका असर दिखा। विकास यादव और रमन यादव जैसे बच्चे, जो उस घटना के दशक बाद पैदा हुए, शारीरिक और मानसिक बीमारियों से जूझ रहे हैं। उनकी स्थिति उनकी माता-पिता पर गैस के प्रभाव का नतीजा है।

अभी भी बने समस्याएं:

  1. जहरीला कचरा और भूजल प्रदूषण:
    • यूनियन कार्बाइड के परिसर में आज भी 337 टन जहरीला कचरा पड़ा है।
    • 11 लाख टन मिट्टी और आसपास का भूजल विषाक्त हो चुका है।
    • प्रदूषण नए इलाकों तक फैल रहा है।
  2. मुआवजा और न्याय:
    • गैस पीड़ितों को अपर्याप्त मुआवजा मिला।
    • 93% प्रभावितों को “अस्थायी क्षति” मानकर गलत वर्गीकृत किया गया।

भोपाल की सकारात्मक प्रगति:
दर्दनाक इतिहास के बावजूद भोपाल अपनी पहचान बदलने और विकास की ओर बढ़ने की कोशिश कर रहा है।

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  • औद्योगिक केंद्र बनने की संभावनाएं बढ़ रही हैं।
  • मंडीदीप और गोविंदपुरा जैसे क्षेत्र और ग्लोबल स्किल पार्क भविष्य के लिए कुशल कर्मियों को तैयार कर रहे हैं।

निष्कर्ष:
भोपाल गैस त्रासदी ने केवल तत्कालीन पीढ़ी को नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को भी प्रभावित किया। हालांकि, शहर ने अपनी पहचान बदलने की कोशिश शुरू कर दी है, लेकिन पूर्ण न्याय और पर्यावरणीय सुधार अभी भी दूर हैं।

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