3 दिसंबर 1984 की रात भोपाल में यूनियन कार्बाइड के प्लांट नंबर ‘सी’ से करीब 40 टन मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ। टैंक नंबर 610 में पानी के संपर्क से हुए रासायनिक प्रतिक्रिया ने टैंक में दबाव बढ़ा दिया, जिससे जहरीली गैस ने हवा में घुलकर पूरे शहर को अपनी चपेट में ले लिया। सरकारी आंकड़ों के अनुसार, इस त्रासदी में शुरुआती घंटों में लगभग 3,000 लोगों की मौत हुई, जबकि गैर-सरकारी रिपोर्ट्स के मुताबिक, यह संख्या 10 हजार से भ अधिक हो सकती है।
तत्काल प्रभाव और मौत का सिलसिला:
- विषैली गैस ने सबसे पहले पास की झुग्गी बस्तियों को अपनी चपेट में लिया।
- अधिकतर लोग निद्रावस्था में ही दम तोड़ गए।
- गैस के प्रभाव से मौतें केवल उसी रात नहीं रुकीं; आने वाले वर्षों में यह सिलसिला जारी रहा।
- एक अनुमान के अनुसार, दुर्घटना के पहले दो दिनों में 50,000 लोगों का इलाज किया गया।
स्वास्थ्य और चिकित्सा की चुनौतियां:
- त्रासदी के बाद डॉक्टरों के पास गैस पीड़ितों के इलाज का कोई अनुभव नहीं था।
- पीड़ितों में अस्थायी अंधापन, सिरदर्द, सांस की समस्या और जलन जैसे लक्षण सामान्य थे।
- गैस रिसाव के आठ घंटे बाद शहर को गैस मुक्त घोषित किया गया, लेकिन इसके दीर्घकालिक प्रभाव से शहर आज भी जूझ रहा है।
कारखाने की विफलता:
- यूनियन कार्बाइड के अलार्म सिस्टम ने सही समय पर काम नहीं किया।
- कारखाने के पास ऐसी आपदा से निपटने की कोई तैयारी नहीं थी।
दीर्घकालिक प्रभाव:
- त्रासदी ने 40 साल बाद भी शहर को पूरी तरह से उबरने नहीं दिया है।
- हजारों लोग अभी भी स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं और मानसिक आघात से जूझ रहे हैं।
- यूनियन कार्बाइड के परिसर में जहरीले कचरे का निपटान अब तक नहीं हुआ है, जिससे आसपास का भूजल प्रदूषित है।
भोपाल की वर्तमान स्थिति:
भोपाल अब अपनी पहचान बदलने की ओर प्रयासरत है। औद्योगिक और शहरी विकास के माध्यम से यह शहर नई दिशा में बढ़ रहा है, लेकिन त्रासदी के घाव अब भी गहरे हैं।