Bhopal Gas Tragedy : मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से करीब 250 किलोमीटर दूर धार जिले के औद्योगिक क्षेत्र पिथमपुर में भोपाल गैस त्रासदी (1984) के जहरीले कचरे को 40 साल बाद जलाने के लिए भेजा गया। यह कचरा भोपाल के छोला इलाके में यूनियन कार्बाइड की बंद फैक्ट्री में इतने सालों से जमा था। कानूनी उलझनों और प्रशासनिक उदासीनता के कारण इसे यहां तक पहुंचने में चार दशक लग गए।
कचरे का पिथमपुर पहुंचना
1 जनवरी 2025 को, भोपाल गैस राहत और पुनर्वास विभाग की निगरानी में 337 मीट्रिक टन जहरीले कचरे को 12 बड़े कंटेनरों में सुरक्षित तरीके से पैक किया गया। इन कंटेनरों को सेहोर, देवास, और इंदौर जिलों के बीच बनाए गए एक विशेष “ग्रीन कॉरिडोर” के जरिए पिथमपुर के तारापुर गांव तक पहुंचाया गया।
कचरे का निपटान
इस कचरे को पिथमपुर वेस्ट मैनेजमेंट प्राइवेट लिमिटेड और री सस्टेनेबिलिटी लिमिटेड (पहले रामकी एनवायरो इंजीनियर्स) द्वारा जलाया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में इस कचरे को जलाने का आदेश दिया था। इसके बाद, दिसंबर 2024 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को चार हफ्तों में कचरे को हटाने का अंतिम निर्देश दिया।
मध्य प्रदेश के पर्यावरणविद और पूर्व केमिस्ट्री प्रोफ़ेसर सुभाष सी पांडेय कहते हैं, “मध्य प्रदेश में 150 के आसपास केमिकल फ़ैक्टरी हैं, जहाँ का कचरा पीथमपुर स्थित प्लांट में जलाया जाता है. यूनियन कार्बाइड फ़ैक्टरी के कचरे को जलाने के लिए वो उपयुक्त जगह है.”
“हालांकि कई मीडिया रिपोर्ट्स में कहा जा रहा है कि इससे समस्याएँ खड़ी हो सकती हैं. लेकिन मेरा मानना है कि जो केमिकल यूनियन कार्बाइड फ़ैक्टरी के कचरे में हैं, उनसे ज़्यादा घातक और ख़तरनाक केमिकल युक्त कचरे को पीथमपुर में जलाया जा रहा है. इस तरह की बातें लोगों को भ्रमित करेंगीं.”
वे कहते हैं, “क्योंकि ये काम सुप्रीम कोर्ट और केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की देखरेख में हो रहा है, तो इसमें ग़लती या लापरवाही की गुंजाइश बहुत कम है.”
पीथमपुर में कचरा ले जाने के बीच स्थानीय लोगों और अन्य फ़ैक्टरी कर्मचारियों में असमंजस बरकरार है.
एक स्थानीय व्यक्ति ने नाम न बताने की शर्त पर कहा कि सरकार को पहले यहाँ के लोगों को इस बारे में दिशा निर्देश देने थे, उसके बाद इस प्रक्रिया को पूरा करना चाहिए था.
उन्होंने कहा,”भोपाल में हुई गैस त्रासदी के लिए हमारी संवेदनाएं हैं लेकिन ऐसा कुछ यहाँ न हो इसको लेकर व्यवस्था नहीं की गई. स्थानीय लोगों को कुछ भी नहीं बताया गया. कचरे को निपटाने से अगर कोई समस्या होती है, तो हम लोग कहाँ जाएँगे?”
यूनियन कार्बाइड और 1984 की त्रासदी
1984 में यूनियन कार्बाइड की भोपाल फैक्ट्री से मिथाइल आइसोसाइनेट (MIC) गैस का रिसाव हुआ था। इस हादसे में हजारों लोग मारे गए और बाद के सालों में भी कई मौतें हुईं। यह कचरा उसी फैक्ट्री से बचा हुआ था, जो दिसंबर 1984 में बंद कर दी गई थी।
कानूनी लड़ाई और विलंब
- पहला मामला: जहरीले कचरे को हटाने की मांग करते हुए पहला केस अगस्त 2004 में मध्य प्रदेश हाई कोर्ट में दायर किया गया था।
- कानूनी उलझनें: भारतीय और अमेरिकी अदालतों में मुआवजे और कचरे के निपटान को लेकर कई केस दायर हुए।
- कचरा जलाने की जगह: कचरे को जलाने के लिए गुजरात के अंकलेश्वर समेत कई जगहों पर विचार किया गया, लेकिन विरोध और पर्यावरणीय चिंताओं के कारण इसे पिथमपुर में जलाने का फैसला हुआ।
- 2015 का ट्रायल: सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 2015 में पिथमपुर में 10 मीट्रिक टन कचरे का ट्रायल किया गया, जो सफल रहा।
प्रभावित लोगों की प्रतिक्रिया
भोपाल की फैक्ट्री के पास रहने वाले लोग इस कचरे को हटाए जाने से राहत महसूस कर रहे हैं। फैक्ट्री के पास रहने वाले आबिद नूर खान, जिनके परिवार के दो सदस्यों की 1984 में मौत हो गई थी, ने कहा, “कचरे के पास रहने से रातों की नींद उड़ जाती थी। इसे हटाना हमारे लिए बहुत बड़ी राहत है।”
पिथमपुर और इतिहास
पिथमपुर, जिसे ‘भारत का डेट्रॉइट‘ कहा जाता है, 1980 के दशक में पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन सिंह के कार्यकाल में विकसित हुआ था। यह वही अर्जुन सिंह थे, जिन पर 1984 में यूनियन कार्बाइड के प्रमुख वॉरेन एंडरसन को सुरक्षित रूप से अमेरिका भेजने में मदद करने का आरोप लगा था।
भावनात्मक पहलू
दिवंगत अलोक प्रताप सिंह, जिन्होंने वर्षों तक इस कचरे को हटाने के लिए कानूनी लड़ाई लड़ी, इस दिन को देखने के लिए जीवित नहीं रहे। उनकी लड़ाई को आखिरकार 40 साल बाद सफलता मिली।
भोपाल गैस त्रासदी के कचरे को हटाना एक ऐतिहासिक और जरूरी कदम था। हालांकि, इसे पूरा होने में 40 साल लग गए, जो कानूनी और प्रशासनिक देरी का प्रमाण है। इस प्रक्रिया ने प्रभावित लोगों को थोड़ी राहत दी है, लेकिन यह भी याद दिलाया कि इस त्रासदी का प्रभाव अभी भी खत्म नहीं हुआ है।