Bhopal: भोपाल में वायु प्रदूषण (Air Pollution) की गंभीर समस्या को हल करने की जगह नगर निगम (Bhopal Municipal Corporation) ने एक अनोखा तरीका खोज निकाला है। लेकिन यह तरीका हवा को साफ करने का नहीं, बल्कि सिर्फ आँकड़ों को साफ करने का है। नगर निगम के कर्मचारी सेंसर के आसपास पानी का छिड़काव कर AQI को कम दिखाने की चालाकी कर रहे हैं, जिससे भोपाल की हवा ‘शुद्ध’ नजर आती है। लेकिन सच्चाई कुछ और ही है।
सेंसर के साथ छेड़छाड़ से भोपाल की हवा ‘शुद्ध’!
भोपाल में वायु गुणवत्ता मॉनिटरिंग स्टेशन (Continuous Ambient Air Quality Monitoring System – CAAQMS) तीन प्रमुख स्थानों – पर्यावरण परिसर, टीटी नगर और कलेक्टोरेट में लगाए गए हैं। इन स्टेशनों पर मिलने वाला डेटा सीधे सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) को भेजा जाता है।
लेकिन हाल ही में एक चौंकाने वाली घटना सामने आई, जहां नगर निगम के कर्मचारी इन मॉनिटरिंग स्टेशनों पर दिन में कई बार पानी का छिड़काव कर रहे हैं ताकि धूल और पार्टिकुलेट मैटर नीचे बैठ जाए और सेंसर की स्क्रीन पर वायु गुणवत्ता बेहतर नजर आए। यह घटना खुद पर्यावरण परिसर के गेट के पास कैमरे में कैद हुई, जहां राज्य स्तरीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड का मुख्यालय भी है।
नगर निगम की चालाकी कैसे बिगाड़ रही है देश की हवा?
भोपाल में इस चालाकी का असली कारण नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम (NCAP) से जुड़ा हुआ है।
- इस प्रोग्राम के तहत 2019-20 के मुकाबले 2026 तक पीएम 10 और पीएम 2.5 में 40% की कमी लाने का लक्ष्य रखा गया है।
- इसके लिए भोपाल को बीते चार वर्षों में 193 करोड़ 79 लाख रुपये का फंड भी मिला है, जिसमें से 98% फंड यानी 189 करोड़ 35 लाख रुपये खर्च भी किए जा चुके हैं।
लेकिन जब इतने करोड़ों रुपये खर्च होने के बावजूद भोपाल की हवा और प्रदूषित होती गई, तब संभवतः इस तरह की चालाकी करने का फैसला लिया गया।
2021 में बढ़ा था प्रदूषण का स्तर
- 2021 में भोपाल का PM-10 का स्तर 119 था, जो 2022 में 126 तक बढ़ गया।
- PM-2.5 का स्तर 45 से बढ़कर 52 हो गया।
- 2021 में ही भोपाल को 51 करोड़ 35 लाख रुपये मिले थे, लेकिन स्थिति सुधरने की बजाय बिगड़ गई।
गलत डेटा से देशभर को हो सकता है नुकसान
भोपाल में अगर गलत डेटा भेजा जा रहा है, तो इसका असर सिर्फ शहर तक सीमित नहीं रहता। यह आंकड़े सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड और केंद्र सरकार तक पहुंचते हैं। अगर भोपाल की हवा को ‘शुद्ध’ बताया जाता है तो:
- सख्त नियम-कानून लागू नहीं होंगे।
- प्रदूषण नियंत्रण के लिए फंडिंग में कटौती हो सकती है।
- अन्य प्रदूषित शहरों को भी यही गलत तरीका अपनाने की छूट मिल सकती है।
- भारत की वैश्विक साख को भी नुकसान होगा।
सच्चाई से आंख मूंदना जनता की जान के साथ खिलवाड़
भोपाल में हवा की गुणवत्ता भले ही सेंसर की स्क्रीन पर ‘शुद्ध’ दिखे, लेकिन वास्तविकता में लोग जहरीली हवा में सांस ले रहे हैं।
प्रदूषित हवा से होने वाले नुकसान:
- अस्थमा और सांस संबंधी रोग बढ़ रहे हैं।
- हृदय और फेफड़ों की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है।
- लंग कैंसर और अन्य गंभीर बीमारियों का खतरा।
जब सरकार के रिकॉर्ड में हवा साफ नजर आएगी, तो न तो जनता सतर्क रहेगी और न ही प्रशासन सख्ती करेगा। इससे जनता की सेहत पर बड़ा असर पड़ेगा।
नेशनल क्लीन एयर प्रोग्राम के पैसे पानी में बहाए जा रहे
NCAP के तहत भोपाल में लाखों रुपये की फंडिंग के बावजूद वायु प्रदूषण पर कोई ठोस असर नहीं पड़ा। सिर्फ डेटा को साफ करके रिपोर्ट सुधारी जा रही है।
भोपाल नगर निगम का कंसल्टेंट
भोपाल नगर निगम ने वायु प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए एक कंसल्टेंट को नियुक्त किया है, जो यह सुझाव देता है कि कैसे प्रदूषण स्तर को कम किया जा सकता है। लेकिन जब सेंसर धोकर डेटा को सुधारने का सुझाव दिया जा रहा हो, तो यह समझना मुश्किल नहीं है कि समस्या की जड़ कहां है।