Betwa River, Bhopal: मध्य प्रदेश की ऐतिहासिक बेतवा नदी अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है, लेकिन जो सच अब सामने आया है, वह चौंकाने वाला है। हमारी ग्राउंड रिपोर्ट में यह खुलासा हुआ है कि बेतवा के उद्गम स्थल पर जो पानी दिख रहा है, वह असल में प्राकृतिक स्रोत से नहीं आ रहा, बल्कि यह कोलार डेम के रिसाव और एक फूटी नहर का पानी है।
इस खुलासे तक पहुंचने के लिए हमारी टीम ने घने जंगलों, टेढ़े-मेढ़े रास्तों और उबड़-खाबड़ पहाड़ियों को पार किया। जो तस्वीर सामने आई, वह बताती है कि बेतवा को लेकर जो धारणा है, वह अब सच नहीं रही।
बेतवा का मूल स्रोत सूख गया, अब कहां से आ रहा है पानी?
बेतवा नदी का मूल स्रोत रायसेन जिले की विंध्याचल पहाड़ियों में झिरी गांव में है। पहले यहां जमीन के भीतर से स्वतः जलधारा फूटती थी। लेकिन आज वह जलधारा पूरी तरह बंद हो चुकी है।
वरिष्ठ भूवैज्ञानिक राजेश देवलिया ने हमें बताया, “पहले यहां प्राकृतिक रूप से ग्राउंड वॉटर का दबाव था, जिससे पानी ऊपर आता था। लेकिन भूजल स्तर गिरने और जलसंभर नष्ट होने के कारण अब यह प्रक्रिया बंद हो गई है। अब जो पानी दिखता है, वह कहीं और से आ रहा है।”
इसका मतलब साफ था—बेतवा का मूल स्रोत अब सक्रिय नहीं है!
कोलार डेम और फूटी नहर का पानी, असली बेतवा का छलावा
हमारी ग्राउंड रिपोर्ट में यह सामने आया कि जो पानी अब बेतवा के उद्गम स्थल पर दिख रहा है, वह कोलार डेम से रिसकर आ रहा है। इसके अलावा एक पुरानी फूटी नहर भी इस जलधारा को बनाए रखने में भूमिका निभा रही है।
पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष सी. पांडे इस पर सवाल उठाते हैं, “यह बहुत बड़ा धोखा है! बेतवा का असली पानी सूख चुका है। अब हम जो देख रहे हैं, वह नहर और डेम से रिसकर आया पानी है। यह सरकार और प्रशासन की नाकामी का सबसे बड़ा प्रमाण है।”
जंगलों से होते हुए सच्चाई तक पहुंचे, दिखा उजड़ा परिदृश्य
हमने इस खुलासे की पुष्टि के लिए जंगलों से होते हुए बेतवा के उद्गम स्थल तक का सफर तय किया। रास्ता बेहद कठिन था, लेकिन जो देखा, वह इस पूरे मुद्दे को समझने के लिए जरूरी था।
स्थानीय ग्रामीणों ने भी इस बदलाव की पुष्टि की। झिरी गांव के जाम सिंह बताते हैं, “पहले यहां से असली बेतवा निकलती थी, अब यह सिर्फ दिखावा है। हम जानते हैं कि असली पानी तो कब का बंद हो गया!”
वहीं, पूर्व सरपंच गुलाब दास कहते हैं, “पहले यहां का पानी खेतों तक आता था, लेकिन अब हमें अन्य वैकल्पिक स्त्रोतों की भी व्यवस्था करनी पड़ रही है।”
सरकार की चुप्पी, बेतवा का भविष्य संकट में!
डॉ. सुभाष सी. पांडे इस मुद्दे को लेकर प्रशासन पर गंभीर आरोप लगाते हैं। वे कहते हैं, “बेतवा का यह हाल प्रशासनिक लापरवाही का नतीजा है। अवैध खनन, अतिक्रमण और जलसंभर क्षेत्रों की अनदेखी ने इस नदी को मार डाला है। अब जो पानी बचा है, वह सिर्फ एक छलावा है।”
बेतवा को बचाने का आखिरी मौका?
हमारी इस ग्राउंड रिपोर्ट से यह स्पष्ट होता है कि बेतवा नदी का असली स्रोत खत्म हो चुका है। जो पानी आज दिख रहा है, वह मूल जलधारा का नहीं, बल्कि कृत्रिम रूप से रिसकर आया पानी है।
अगर अब भी सच को नजरअंदाज किया गया, तो आने वाले वर्षों में बेतवा पूरी तरह से इतिहास बन जाएगी। सवाल यह है कि क्या सरकार इस मुद्दे को गंभीरता से लेगी, या फिर बेतवा को सरस्वती की तरह सिर्फ ग्रंथों में दर्ज होने के लिए छोड़ दिया जाएगा?
👉 यह खुलासा आपकी आंखें खोलने के लिए है। क्या आप अब भी मानते हैं कि बेतवा जीवित है?
पूरी खबर यहां देखें: https://youtu.be/DDDK4-LROqU
