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महुआ बीनने में व्यस्त ग्रामीणों की जिंदगी: एक अहम आजीविका स्रोत

by kishanchaubey
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छत्तीसगढ़ के गरियाबंद जिले के बोईरगांव में महुआ के फूलों की हल्की मीठी महक पूरे गांव में फैली रहती है। गुलेश्वर ध्रुव के आंगन में करीब 40 किलो महुआ के फूल सूख रहे हैं, जो उन्होंने तीन दिनों में इकट्ठा किए हैं।

गुलेश्वर हर सुबह जंगल और अपने खेत में लगे महुआ के पेड़ों से ताजे झरे महुआ बीनकर लाते हैं। उनकी साइकिल के हैंडल और कैरियर पर महुआ से भरी बोरियां बंधी रहती हैं। उनके पास कुल 6-7 महुआ के पेड़ हैं, जो उनकी आय का एक महत्वपूर्ण जरिया हैं।

महुआ: ग्रामीणों के लिए आय का स्रोत

बोईरगांव में करीब 800 लोग रहते हैं और वहां 200 से अधिक महुआ के पेड़ हैं। ये पेड़ ग्रामीणों को हर साल मार्च-अप्रैल के महीने में अच्छी आमदनी देते हैं। गुलेश्वर हर साल 200-300 किलो महुआ इकट्ठा कर करीब 10-12 हजार रुपये तक कमा लेते हैं। इस कमाई से वह अपने घर का खर्च, बच्चों की पढ़ाई और कपड़ों की खरीदारी करते हैं। खास बात यह है कि महुआ बेचने के लिए उन्हें कहीं बाहर नहीं जाना पड़ता, व्यापारी खुद उनके घर आकर इसे खरीद लेते हैं।

महुआ के फूलों के बाद बीज से तेल निकालने का मौसम

महुआ के फूलों का सीजन खत्म होते ही जून-जुलाई में महुआ के फल तैयार हो जाते हैं। हर साल गुलेश्वर इन फलों से 5-10 किलो बीज जमा कर लेते हैं, जिससे 2-3 किलो तक तेल निकलता है। यह तेल पहले खाने में ज्यादा इस्तेमाल किया जाता था, लेकिन अब इसका उपयोग मुख्य रूप से खांसी, जुकाम और बुखार में मालिश के लिए किया जाता है।

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महुआ ग्रामीणों का एटीएम है

पथर्री गांव की रहने वाली फिंगेश्वरी ध्रुव महुआ को अपना एटीएम मानती हैं। वह इसे तभी बेचती हैं, जब भाव अच्छा मिलता है। आमतौर पर मई-जून में सूखा महुआ 50-55 रुपये प्रति किलो तक बिकता है, जो इसे बेचना लाभकारी बनाता है।

महुआ के मौसम में सामाजिक कार्यक्रम भी टल जाते हैं

गुलेश्वर बताते हैं कि महुआ के सीजन में पूरा क्षेत्र इसे बीनने में व्यस्त हो जाता है। इस दौरान लोग शादी, त्योहार और यहां तक कि ग्राम सभाओं की बैठकें भी टाल देते हैं। रिश्तेदारों के घर जाने से भी लोग बचते हैं, क्योंकि महुआ से ज्यादा जरूरी इस मौसम में कुछ नहीं होता।

महुआ: पारंपरिक जीवनशैली और पर्यावरण संरक्षण का हिस्सा

महुआ केवल एक आर्थिक जरिया नहीं है, बल्कि यह आदिवासी समाज की परंपरा और उनकी संस्कृति का भी हिस्सा है। यह जंगलों के संरक्षण को भी बढ़ावा देता है, क्योंकि ग्रामीण महुआ के पेड़ों को कटने नहीं देते।

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