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जलवायु परिवर्तन से खतरे में केला उत्पादन: 2080 तक बड़े निर्यातक देशों को होगा भारी नुकसान

by kishanchaubey
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जलवायु परिवर्तन का असर दुनियाभर में देखने को मिल रहा है और अब इसका प्रभाव केले की खेती पर भी पड़ने वाला है। एक नए शोध में पाया गया है कि बढ़ते तापमान की वजह से 2080 तक लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के कई इलाकों में केले का उत्पादन आर्थिक रूप से घाटे का सौदा बन जाएगा।

शोध का निष्कर्ष: क्यों संकट में है केला उत्पादन?

यह अध्ययन ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया और प्रतिष्ठित पत्रिका ‘नेचर फूड’ में प्रकाशित हुआ। शोध के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से मौजूदा केले उत्पादक क्षेत्रों का लगभग 60% भाग खेती के लिए अनुपयुक्त हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि अगर अभी से सही कदम नहीं उठाए गए, तो दुनिया के बड़े निर्यातक देश भारी नुकसान झेल सकते हैं।

केले की वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

केला दुनिया के सबसे ज्यादा निर्यात किए जाने वाले फलों में से एक है। यह 11 अरब डॉलर (करीब 90,000 करोड़ रुपये) का उद्योग है और लाखों किसानों और श्रमिकों की आजीविका इससे जुड़ी हुई है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादक देशों में इसका भविष्य खतरे में है।

सामाजिक और आर्थिक बाधाएं भी बनीं बड़ी चुनौती

केले के उत्पादन में गिरावट केवल बढ़ते तापमान के कारण नहीं होगी, बल्कि श्रम उपलब्धता, बुनियादी ढांचे की कमी और बंदरगाहों तक सीमित पहुंच जैसी सामाजिक और आर्थिक बाधाएं भी इसे प्रभावित करेंगी।

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अध्ययन में पाया गया कि केले का अधिकांश उत्पादन घनी आबादी वाले इलाकों और समुद्री बंदरगाहों के पास होता है। जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों से दूसरे इलाकों में उत्पादन स्थानांतरित करना मुश्किल होगा, जिससे किसानों के लिए अनुकूलन और भी कठिन हो जाएगा।

किन देशों पर पड़ेगा सबसे अधिक असर?

शोध के अनुसार, कोलंबिया और कोस्टा रिका सबसे अधिक प्रभावित होंगे, क्योंकि इन देशों में तापमान में वृद्धि खेती को असंभव बना सकती है।

वहीं, इक्वाडोर और ब्राजील के कुछ हिस्से अपेक्षाकृत सुरक्षित रहेंगे, क्योंकि इन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम होने की संभावना है।

केले की खेती बचाने के लिए संभावित समाधान

इस संकट से निपटने के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ महत्वपूर्ण रणनीतियां सुझाई हैं:

  1. सिंचाई सुविधाओं में सुधार: पानी की कमी वाले इलाकों में बेहतर सिंचाई व्यवस्था की जानी चाहिए।
  2. गर्मी-सहनशील केले की किस्मों का विकास: ऐसे केले विकसित करने होंगे जो अधिक गर्मी और सूखे को झेल सकें।
  3. किसानों को सहायता और जागरूकता: जलवायु जोखिमों से बचने के लिए किसानों को नए तरीके अपनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  4. जलवायु-अनुकूल कृषि नीतियां: सरकारों को ऐसी योजनाएं बनानी होंगी जो केले के उत्पादन को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचा सकें।

भविष्य की राह: अभी कदम उठाने की जरूरत

शोधकर्ताओं के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन सिर्फ एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि यह वैश्विक खाद्य सुरक्षा और आजीविका पर सीधा खतरा है। यदि समय रहते सही कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में केले की खेती में भारी गिरावट देखी जा सकती है।

सरकारों, वैज्ञानिकों और किसानों को मिलकर अनुकूलन योजनाएं बनानी होंगी, ताकि भविष्य में भी केले का उत्पादन आर्थिक रूप से टिकाऊ बना रहे।

जलवायु परिवर्तन का असर दुनियाभर में देखने को मिल रहा है और अब इसका प्रभाव केले की खेती पर भी पड़ने वाला है। एक नए शोध में पाया गया है कि बढ़ते तापमान की वजह से 2080 तक लैटिन अमेरिका और कैरिबियन के कई इलाकों में केले का उत्पादन आर्थिक रूप से घाटे का सौदा बन जाएगा।

शोध का निष्कर्ष: क्यों संकट में है केला उत्पादन?

यह अध्ययन ब्रिटेन के एक्सेटर विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा किया गया और प्रतिष्ठित पत्रिका ‘नेचर फूड’ में प्रकाशित हुआ। शोध के अनुसार, जलवायु परिवर्तन से मौजूदा केले उत्पादक क्षेत्रों का लगभग 60% भाग खेती के लिए अनुपयुक्त हो जाएगा। इसका मतलब यह है कि अगर अभी से सही कदम नहीं उठाए गए, तो दुनिया के बड़े निर्यातक देश भारी नुकसान झेल सकते हैं।

केले की वैश्विक अर्थव्यवस्था पर असर

केला दुनिया के सबसे ज्यादा निर्यात किए जाने वाले फलों में से एक है। यह 11 अरब डॉलर (करीब 90,000 करोड़ रुपये) का उद्योग है और लाखों किसानों और श्रमिकों की आजीविका इससे जुड़ी हुई है। लेकिन जलवायु परिवर्तन के कारण उत्पादक देशों में इसका भविष्य खतरे में है।

सामाजिक और आर्थिक बाधाएं भी बनीं बड़ी चुनौती

केले के उत्पादन में गिरावट केवल बढ़ते तापमान के कारण नहीं होगी, बल्कि श्रम उपलब्धता, बुनियादी ढांचे की कमी और बंदरगाहों तक सीमित पहुंच जैसी सामाजिक और आर्थिक बाधाएं भी इसे प्रभावित करेंगी।

अध्ययन में पाया गया कि केले का अधिकांश उत्पादन घनी आबादी वाले इलाकों और समुद्री बंदरगाहों के पास होता है। जलवायु परिवर्तन से प्रभावित क्षेत्रों से दूसरे इलाकों में उत्पादन स्थानांतरित करना मुश्किल होगा, जिससे किसानों के लिए अनुकूलन और भी कठिन हो जाएगा।

किन देशों पर पड़ेगा सबसे अधिक असर?

शोध के अनुसार, कोलंबिया और कोस्टा रिका सबसे अधिक प्रभावित होंगे, क्योंकि इन देशों में तापमान में वृद्धि खेती को असंभव बना सकती है।

वहीं, इक्वाडोर और ब्राजील के कुछ हिस्से अपेक्षाकृत सुरक्षित रहेंगे, क्योंकि इन क्षेत्रों में जलवायु परिवर्तन का प्रभाव कम होने की संभावना है।

केले की खेती बचाने के लिए संभावित समाधान

इस संकट से निपटने के लिए शोधकर्ताओं ने कुछ महत्वपूर्ण रणनीतियां सुझाई हैं:

  1. सिंचाई सुविधाओं में सुधार: पानी की कमी वाले इलाकों में बेहतर सिंचाई व्यवस्था की जानी चाहिए।
  2. गर्मी-सहनशील केले की किस्मों का विकास: ऐसे केले विकसित करने होंगे जो अधिक गर्मी और सूखे को झेल सकें।
  3. किसानों को सहायता और जागरूकता: जलवायु जोखिमों से बचने के लिए किसानों को नए तरीके अपनाने के लिए प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।
  4. जलवायु-अनुकूल कृषि नीतियां: सरकारों को ऐसी योजनाएं बनानी होंगी जो केले के उत्पादन को जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से बचा सकें।

भविष्य की राह: अभी कदम उठाने की जरूरत

शोधकर्ताओं के मुताबिक, जलवायु परिवर्तन सिर्फ एक पर्यावरणीय समस्या नहीं है, बल्कि यह वैश्विक खाद्य सुरक्षा और आजीविका पर सीधा खतरा है। यदि समय रहते सही कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले दशकों में केले की खेती में भारी गिरावट देखी जा सकती है।

सरकारों, वैज्ञानिकों और किसानों को मिलकर अनुकूलन योजनाएं बनानी होंगी, ताकि भविष्य में भी केले का उत्पादन आर्थिक रूप से टिकाऊ बना रहे।

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