दुनिया भर के संगठनों ने बाको वन घोषणा जारी करते हुए नेताओं से अपील की है कि वे जंगलों की सुरक्षा, आदिवासी अधिकारों और जलवायु न्याय को प्राथमिकता दें। यह घोषणा अज़रबैजान के बाकू में आयोजित जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन (COP29) के दौरान प्रस्तुत की गई।
ग्लोबल फॉरेस्ट कोएलिशन (GFC) और उसके सहयोगी संगठनों ने मध्य एशिया और कॉकसस क्षेत्र से इस दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर किए हैं। इसने COP29 की अध्यक्षता और देशों से आग्रह किया है कि वे पेरिस समझौते का पालन करें, जिसमें वैश्विक तापमान को सीमित करने का लक्ष्य है, ताकि जंगल की आग और वनों की कटाई के विनाशकारी प्रभावों से निपटा जा सके।
प्राकृतिक जंगलों को बाजार आधारित समाधान न मानें
इस घोषणा में कहा गया है कि प्राकृतिक जंगलों की भूमिका को सिर्फ “कार्बन सिंक” के रूप में देखने की बजाय, उन्हें एक महत्वपूर्ण पारिस्थितिकी तंत्र के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए। आर्मेनिया, रूस, मोल्दोवा, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और कज़ाखस्तान जैसे देशों ने आग और वनों की कटाई के कारण स्थानीय पारिस्थितिकी और जैव विविधता पर पड़ने वाले गंभीर प्रभावों को रेखांकित किया है।
GFC क्षेत्रीय समन्वयक आंद्रे लैलेटिन ने कहा, “जंगल केवल कार्बन भंडार नहीं हैं। ये लाखों लोगों के लिए घर, जल स्रोत और जीवन रेखा हैं, खासकर मध्य एशिया और कॉकसस जैसे क्षेत्रों में।”
2024: जंगलों के लिए संकट का वर्ष
घोषणा पत्र में कहा गया कि 2024 में अमेज़न के जंगलों में आग ने इतनी बड़ी जगह को नष्ट कर दिया, जो कई देशों के कुल क्षेत्रफल से अधिक है। रूस में इस साल 10,000 से ज्यादा जंगल की आग लगी, जिसने 7.7 मिलियन हेक्टेयर जंगल को तबाह कर दिया। यह अज़रबैजान के सभी जंगलों के क्षेत्रफल (1.2 मिलियन हेक्टेयर) का छह गुना है।
जंगलों की भूमिका और चुनौती
मसौदे में कहा गया कि कॉकसस और मध्य एशिया के जंगल पानी के संरक्षण और प्रबंधन में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। ये पहाड़ी जंगल “स्वच्छ पानी के कारखाने” के समान हैं, जो न केवल स्थानीय बल्कि दूर-दराज के क्षेत्रों को भी पानी उपलब्ध कराते हैं।
हालांकि, जलवायु परिवर्तन का प्रभाव इन क्षेत्रों में वैश्विक औसत से अधिक है। अगले दो दशकों में इन देशों को वनीकरण (afforestation) और स्थानीय प्राकृतिक जंगलों के पुनर्स्थापन (restoration) के लिए बड़े पैमाने पर कदम उठाने की जरूरत है।
नदी-तटीय जंगलों की रक्षा पर जोर
घोषणा में मध्य एशिया के बाढ़ग्रस्त नदी-तटीय (river-gallery) जंगलों को विशेष संरक्षण देने की मांग की गई। ये पारिस्थितिक तंत्र जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, लेकिन विकास परियोजनाओं, नदी प्रणालियों में बदलाव और जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक क्षतिग्रस्त हुए हैं।
मसौदे में सुझाव दिया गया कि इन जंगलों का प्राकृतिक पुनर्जनन (natural renewal) और जैव विविधता का संरक्षण बेहतर नदी प्रबंधन और स्थानीय समुदायों की भागीदारी से किया जा सकता है। साथ ही, इन क्षेत्रों को विशेष संरक्षण का दर्जा देना और अनियंत्रित आर्थिक गतिविधियों पर नियंत्रण भी आवश्यक है।
झूठे समाधान को रोकने की मांग
संगठनों ने कार्बन बाजार और REDD+ जैसे झूठे समाधानों को रोकने की मांग की। उन्होंने मानवाधिकारों पर आधारित नीतियों, सामुदायिक भागीदारी और जेंडर-आधारित फंडिंग को प्राथमिकता देने पर जोर दिया।
जलवायु न्याय के लिए सामूहिक प्रयास
GFC की अध्यक्ष अन्ना किरिलेंको ने कहा, “बाको वन घोषणा अंतरराष्ट्रीय समुदाय को स्पष्ट संदेश देती है कि जंगलों की सुरक्षा और आदिवासी समुदायों को जलवायु निर्णय लेने में शामिल करना, जलवायु स्थिरता प्राप्त करने के लिए अनिवार्य है।”
घोषणा में यह भी कहा गया कि वनों की कटाई से न केवल लकड़ी का नुकसान होता है, बल्कि उनमें रहने वाले असंख्य जीव-जंतुओं और पौधों की विविधता भी नष्ट होती है। इसलिए, जंगलों की सुरक्षा और पुनर्स्थापन के लिए वैश्विक स्तर पर ठोस कदम उठाने की जरूरत है।
बाको वन घोषणा इस बात पर जोर देती है कि जंगल केवल जलवायु समाधान का हिस्सा नहीं हैं, बल्कि ये जीवन का आधार हैं। इस संदेश को COP29 में शामिल देशों और नेताओं तक पहुंचाकर वनों की रक्षा और जलवायु न्याय के लक्ष्यों को प्राप्त किया जा सकता है।