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उत्तराखंड में एवलांच का कहर: चमोली में हिमस्खलन, BRO के 57 मजदूर दबे

by kishanchaubey
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Uttarakhand: फरवरी के अंत में उत्तराखंड में भारी बारिश और बर्फबारी हुई, जिससे लोगों को राहत तो मिली लेकिन एक दुखद घटना भी सामने आई। 28 फरवरी 2025 को चमोली जिले में बदरीनाथ और माणा के बीच एक बड़ा हिमस्खलन (एवलांच) हुआ, जिसमें सीमा सड़क संगठन (BRO) के 57 मजदूर बर्फ में दब गए। राहत कार्य में जुटी टीम ने शाम तक 16 मजदूरों को सुरक्षित बाहर निकाल लिया, जबकि बाकी मजदूरों को निकालने का प्रयास किया जा रहा है।

घटनास्थल पर राहत एवं बचाव कार्य

चमोली के जिलाधिकारी (DM) ने इस घटना की पुष्टि की, लेकिन यह भी बताया कि खराब मौसम और भारी बर्फबारी के कारण संचार सेवाएं बाधित हो गई हैं। हेलीकॉप्टर से रेस्क्यू ऑपरेशन चलाना भी मुश्किल हो गया है। चमोली पुलिस ने घटनास्थल की कुछ तस्वीरें जारी की हैं, जिनमें मजदूरों को कंधों पर उठाकर ले जाते हुए देखा जा सकता है।

कब और कैसे हुआ हादसा?

रिपोर्ट्स के अनुसार, यह हादसा दोपहर के आसपास हुआ जब माणा और माणा बाइपास के बीच घिसतौली इलाके में सीमा सड़क संगठन के मजदूर सड़क से बर्फ हटाने का काम कर रहे थे। वहीं, कुछ अन्य खबरों के मुताबिक, यह हिमस्खलन सुबह 5 बजे हुआ, जब मजदूर अपने टिन शेड में सो रहे थे।

सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण क्षेत्र

बदरीनाथ के कपाट बंद होने के बाद यह इलाका वीरान हो जाता है, लेकिन रणनीतिक रूप से यह क्षेत्र बेहद महत्वपूर्ण है। इसी कारण सीमा सड़क संगठन यहां लगातार तैनात रहता है और बर्फ हटाने का कार्य जारी रहता है।

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उत्तराखंड में बर्फबारी और बारिश का असर

उत्तराखंड में पिछले दो दिनों से भारी बारिश और बर्फबारी हो रही है, जिससे ऊंचाई वाले इलाकों में कई सड़कें बंद हो गई हैं। जोशीमठ से आगे नीती और माणा घाटी की सड़कें भी जगह-जगह बाधित हो गई हैं।

उत्तराखंड में पहले भी हो चुकी हैं ऐसी घटनाएं

यह पहली बार नहीं है जब इस क्षेत्र में हिमस्खलन जैसी घटना हुई है। मार्च 2021 में धौलीगंगा के कैचमेंट एरिया में आए एवलांच में 8 से 10 मजदूरों की मौत हो गई थी। इसी साल 7 फरवरी को ऋषिगंगा आपदा ने भीषण तबाही मचाई थी, जिसमें जल विद्युत संयंत्र पूरी तरह नष्ट हो गया था और सैकड़ों मजदूरों की जान चली गई थी।

बदलते मौसम का असर

वैज्ञानिकों के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में बर्फबारी का समय बदल गया है। पहले दिसंबर और जनवरी में भारी बर्फबारी होती थी, लेकिन अब यह फरवरी और मार्च में ज्यादा हो रही है। इससे एवलांच का खतरा बढ़ जाता है।

उत्तराखंड वानिकी और उद्यानिकी विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रमुख एसपी सती बताते हैं कि पहले जब दिसंबर-जनवरी में बर्फ गिरती थी, तो जमीन ठंडी होती थी और ताजा बर्फ उसमें जम जाती थी। लेकिन अब जब बर्फबारी फरवरी-मार्च में हो रही है, तो जमीन तुलनात्मक रूप से गर्म होती है और बर्फ जमने के बजाय फिसल जाती है, जिससे एवलांच की संभावना अधिक हो जाती है।

ग्लोबल वार्मिंग का असर

एसपी सती का कहना है कि यह बदलाव ग्लोबल वार्मिंग का सीधा परिणाम है, जो न केवल हिमालय बल्कि दुनिया भर के ग्लेशियरों के लिए खतरनाक है। पहले जब दिसंबर-जनवरी में बर्फ गिरती थी, तो वह धीरे-धीरे ग्लेशियर का हिस्सा बन जाती थी। लेकिन अब फरवरी-मार्च की बर्फबारी जल्दी पिघल जाती है और ग्लेशियर का विस्तार नहीं हो पाता। इससे भविष्य में ग्लेशियरों का आकार कम होने और एवलांच जैसी घटनाओं के बढ़ने की आशंका है।

क्या है समाधान?

विशेषज्ञों का मानना है कि हमें जलवायु परिवर्तन को गंभीरता से लेना होगा और हिमालयी क्षेत्रों में सतत विकास की नीतियां अपनानी होंगी। इसके अलावा, ऐसी घटनाओं की निगरानी के लिए आधुनिक तकनीकों और उपकरणों का अधिक से अधिक उपयोग करना जरूरी है।

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