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एशिया के ग्लेशियरों पर संकट: मानसून और गर्मी से हर साल 22 गीगाटन बर्फ का नुकसान

by kishanchaubey
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एशिया के ऊंचे पहाड़ों, जिन्हें “तीसरा ध्रुव” कहा जाता है, पर मौजूद ग्लेशियर जलवायु परिवर्तन और बदलते मानसून के कारण तेजी से पिघल रहे हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ यूटा और वर्जीनिया टेक के वैज्ञानिकों के नए अध्ययन के अनुसार, हाई माउंटेन एशिया के ग्लेशियर हर साल 22 गीगाटन से अधिक बर्फ खो रहे हैं। यह मात्रा इतनी विशाल है कि इससे करीब 9 करोड़ ओलंपिक साइज के स्विमिंग पूल भरे जा सकते हैं।

ग्लेशियर पिघलने के कारण और प्रभाव

वैज्ञानिकों का कहना है कि बढ़ती गर्मी ग्लेशियरों के पिघलने का प्रमुख कारण है, लेकिन दक्षिण एशियाई मानसून में बदलाव इस प्रक्रिया को और तेज कर रहा है। यूनिवर्सिटी ऑफ यूटा की सहायक प्रोफेसर और प्रमुख शोधकर्ता सोनम शेरपा ने बताया, “हिमालयी क्षेत्र, जहां मानसून का प्रभाव सबसे ज्यादा है, ग्लेशियरों के प्रति विशेष रूप से संवेदनशील है

यदि मानसून का समय और तीव्रता ऐसे ही बदलती रही, तो बर्फ का नुकसान और तेज होगा, जिससे 140 करोड़ से अधिक लोगों की जल आपूर्ति खतरे में पड़ सकती है।”ये ग्लेशियर एशिया की सैकड़ों नदियों और झीलों का प्रमुख स्रोत हैं, जो कृषि, जलविद्युत और रोजमर्रा की जरूरतों के लिए पानी उपलब्ध कराते हैं।

अध्ययन में नासा के ग्रेस सैटेलाइट डेटा और मौसम रिकॉर्ड का विश्लेषण किया गया, जिसके नतीजे आईईईई जर्नल ऑफ सिलेक्टेड टॉपिक्स ऑन एप्लाइड अर्थ ऑब्जर्वेशन एंड रिमोट सेंसिंग में प्रकाशित हुए हैं।

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क्या है ग्लेशियर पिघलने का गणित?

अध्ययन के अनुसार, मध्य हिमालय के दक्षिणी हिस्सों में ग्लेशियर गर्मियों में मानसून की बारिश से बर्फ जमा करते हैं, जो ऊंचाई पर ठंड के कारण बर्फ में बदल जाती है। लेकिन बढ़ती गर्मी और बदलता मानसून पैटर्न बर्फबारी को कम कर रहा है, जबकि पिघलने की रफ्तार बढ़ा रहा है।

बारिश का समय छोटा होने, बर्फबारी की कमी या बर्फ की जगह बारिश होने से ग्लेशियर सिकुड़ रहे हैं। पूर्वी हिमालय में बर्फबारी में कमी भी ग्लेशियरों के सिकुड़ने का बड़ा कारण है।

वैज्ञानिकों ने पाया कि ग्लेशियरों के सिकुड़ने का पैटर्न 3 से 4.5 साल और 5 से 8 साल के चक्र में दोहराया जाता है, जो मानसून के प्राकृतिक उतार-चढ़ाव से मेल खाता है। यह बदलाव भविष्य में जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को और गंभीर बना सकता है।

तात्कालिक और दीर्घकालिक खतरे

सोनम शेरपा ने चेतावनी दी कि तेजी से पिघलते ग्लेशियर न केवल पानी की कमी का संकट पैदा कर रहे हैं, बल्कि ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (GLOF), भूस्खलन और बाढ़ जैसी आपदाओं का खतरा भी बढ़ा रहे हैं। यह लोगों की सुरक्षा और बुनियादी ढांचे के लिए तात्कालिक खतरा है।

यूनिवर्सिटी ऑफ मैसाचुसेट्स अम्हर्स्ट के एक अन्य अध्ययन के अनुसार, ग्लेशियरों के पिघलने और बारिश के बदलते पैटर्न से एशिया की 11,113 नदियों (कुल का 10%) में जल प्रवाह बढ़ा है। लेकिन इसका बड़ा हिस्सा अब बारिश के बजाय पिघलते ग्लेशियरों से आ रहा है। यदि ग्लेशियर इसी तरह सिकुड़ते रहे, तो नदियों का मुख्य स्रोत बारिश बन जाएगा, जिससे निचले इलाकों में सूखे का खतरा बढ़ेगा।

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