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45 डिग्री गर्मी में भी लहलहाएगी अरहर, इक्रीसेट ने रचा इतिहास

by kishanchaubey
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इंटरनेशनल क्रॉप्स रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर द सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (इक्रीसेट) के वैज्ञानिकों ने भारतीय कृषि में इतिहास रचते हुए दुनिया की पहली गर्मी-रोधी अरहर की किस्म ‘आईसीपीवी 25444’ विकसित की है।

यह नई किस्म 45 डिग्री सेल्सियस तक के भीषण तापमान को सहन कर सकती है और मात्र 125 दिनों में पककर तैयार हो जाती है। कर्नाटक, ओडिशा और तेलंगाना में किए गए सफल परीक्षणों में इसने प्रति हेक्टेयर दो टन तक की उपज दी है, जो भारतीय किसानों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।

स्पीड ब्रीडिंग ने बनाया क्रांति

इक्रीसेट की स्पीड ब्रीडिंग तकनीक ने इस क्रांतिकारी उपलब्धि को संभव बनाया। इस तकनीक की मदद से अरहर की नई किस्म विकसित करने में लगने वाला समय 15 साल से घटकर मात्र 5 साल रह गया है।

वैज्ञानिक स्टैनफोर्ड ब्लेड के अनुसार, 2024 में इक्रीसेट ने दुनिया की पहली अरहर स्पीड-ब्रीडिंग प्रणाली विकसित की, जिससे एक साल में चार पीढ़ियां उगाई जा सकती हैं। डॉ. प्रकाश गंगाशेट्टी और उनकी टीम ने नियंत्रित वातावरण में 4 इंच के गमलों में 18,000 पौधे उगाकर बीज उत्पादन का रिकॉर्ड बनाया। आधुनिक जीनोमिक तकनीक और सीड-चिपिंग की मदद से इस प्रक्रिया को और सटीक बनाया गया।

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हर मौसम की फसल बनेगी अरहर

पारंपरिक रूप से अरहर की खेती खरीफ मौसम तक सीमित थी, क्योंकि यह तापमान और फोटोपीरियड (दिन की लंबाई) के प्रति संवेदनशील होती है। लेकिन ‘आईसीपीवी 25444’ ने इस सीमा को तोड़ दिया। यह किस्म गर्मी और रबी के मौसम में भी अच्छी उपज दे सकती है, जिससे साल भर अरहर की खेती संभव हो सकेगी।

इक्रीसेट के महानिदेशक डॉ. हिमांशु पाठक ने इसे विज्ञान की शानदार उपलब्धि करार देते हुए कहा, “यह नई किस्म जलवायु संकट से जूझ रहे किसानों को नया समाधान देगी और दालों की कमी को दूर करने में मदद करेगी।”

भारत में अरहर की कमी होगी दूर

भारत में सालाना 35 लाख टन अरहर का उत्पादन होता है, जो घरेलू मांग से 15 लाख टन कम है। इस कमी को पूरा करने के लिए हर साल करीब 80 करोड़ डॉलर की अरहर आयात की जाती है।

इक्रीसेट का कहना है कि ‘आईसीपीवी 25444’ की मदद से दो रणनीतियों से उत्पादन बढ़ाया जा सकता है: पहला, खरीफ के 50 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में उच्च उपज वाली किस्मों का उपयोग, और दूसरा, गर्मी व रबी के मौसम में सिंचित खेतों में इस नई किस्म की बुआई। यह किस्म डेढ़ से दो टन प्रति हेक्टेयर उपज दे सकती है, जिससे किसानों की आय में प्रति हेक्टेयर 20,000 रुपये तक की बढ़ोतरी हो सकती है।

जलवायु संकट में किसानों की ढाल

जलवायु परिवर्तन के कारण पारंपरिक कृषि चुनौतियों का सामना कर रही है। ऐसे में ‘आईसीपीवी 25444’ जैसी किस्में किसानों को अनियमित मौसम में भी भरोसेमंद उत्पादन देने की क्षमता रखती हैं।

खासकर पानी की कमी वाले क्षेत्रों में यह फसल अच्छी पैदावार और अधिक आय का जरिया बन सकती है। रिमोट सेंसिंग और जीआईएस जैसी तकनीकों के साथ इसे 10 लाख हेक्टेयर तक विस्तारित किया जा सकता है, जिससे खाद्य सुरक्षा बढ़ेगी और किसानों की आय सुरक्षित होगी।

वैश्विक स्तर पर भी प्रभाव

इक्रीसेट अब 13,000 अरहर जर्मप्लाज्म का उपयोग कर वैश्विक स्पीड-ब्रीडिंग पैनल बना रहा है, ताकि यह तकनीक एशिया, अफ्रीका, ब्राजील और ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में भी फैल सके। डॉ. सीन मेयस के मुताबिक, “यह किस्म जलवायु अनिश्चितता के बीच किसानों को टिकाऊ और भरोसेमंद समाधान देती है।”

किसानों में उत्साह

कर्नाटक के बागलकोट जिले के किसानों हनुमंथा मिरजी और बसवराज घांटी ने इस किस्म की गर्मी में खेती की और इसे रोग-मुक्त व तेजी से बढ़ने वाली फसल बताया। किसान गुरुराज कुलकर्णी ने कहा, “यह किस्म गर्मियों में अरहर उगाने के लिए वरदान है। चार महीने में तैयार होने वाली इस फसल में कोई बीमारी या कीट नहीं दिखे। हम अगले साल इसे और अधिक उगाएंगे।

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