एक ब्रिटिश रिसर्च रिपोर्ट के अनुसार, हिंदू धर्म के अनुयायी पर्यावरण संरक्षण में सबसे आगे हैं क्योंकि वे प्रकृति को सिर्फ संसाधन नहीं, बल्कि एक पवित्र तत्व मानते हैं। यह सुनकर गर्व महसूस होता है, लेकिन क्या वास्तव में हम अपने पर्यावरण को सुरक्षित रख पा रहे हैं? क्या भारत, जहां हिंदू धर्म का पालन करने वाले बहुसंख्यक हैं, वाकई स्वच्छ नदियों, हरे-भरे जंगलों और उर्वर मिट्टी वाला देश है? या फिर यह सिर्फ एक सांत्वना देने वाली रिपोर्ट है, जो हमें असली सच्चाई से दूर रख रही है?

ब्रिटिश रिपोर्ट क्या कहती है?
ब्रिटेन के इंस्टीट्यूट फॉर द इम्पैक्ट ऑफ फेथ इन लाइफ (IIFL) की एक स्टडी में दावा किया गया है कि –
- 78% हिंदू अपनी जीवनशैली में बदलाव कर पर्यावरण बचाने की कोशिश कर रहे हैं।
- 64% लोग इकोसिस्टम को पुनर्जीवित करने (Rewilding) में सक्रिय हैं।
- 44% लोग किसी न किसी पर्यावरण संगठन से जुड़े हुए हैं।
रिपोर्ट में कहा गया कि हिंदू धर्म में नदियों, पेड़ों, पृथ्वी और प्रकृति को पूजनीय माना जाता है, इसलिए हिंदू सबसे ज्यादा पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक हैं।
यह पढ़कर अच्छा लगता है, लेकिन असलियत इससे अलग नजर आती है।
अगर हम सच में इतने जागरूक हैं, तो फिर…
- हर साल 50,000 हेक्टेयर जमीन बंजर क्यों हो रही है?
- गंगा, यमुना और नर्मदा जैसी नदियां जहरीली क्यों बनती जा रही हैं?
- पिछले 10 सालों में 14 लाख हेक्टेयर जंगल कहां गायब हो गए?
नदियों की हालत – क्या हमने अपनी “मां” को बचाया?
हम गंगा को मां कहते हैं, लेकिन सेंट्रल पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट के मुताबिक, गंगा के 351 स्थानों पर पानी में खतरनाक बैक्टीरिया और जहरीले तत्व पाए गए हैं। हरिद्वार, कानपुर और वाराणसी जैसे शहरों में गंगा का पानी पीने लायक तो दूर, नहाने लायक भी नहीं है।
यमुना नदी की स्थिति और भी खराब है। दिल्ली में 22 किमी लंबा यमुना का हिस्सा पूरी तरह मृत घोषित किया जा चुका है। यमुना के पानी में अमोनिया का स्तर 3 ppm तक पहुंच गया है, जबकि पीने लायक पानी में इसकी सीमा 0.5 ppm होनी चाहिए।
नर्मदा, जिसे मध्य भारत की जीवनरेखा कहा जाता है, उसे अवैध रेत खनन और बांधों ने बर्बादी के कगार पर पहुंचा दिया है। मध्य प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की रिपोर्ट के अनुसार, नर्मदा के 48% हिस्से में ऑक्सीजन का स्तर बेहद कम हो चुका है।
क्या ये वही नदियां हैं, जिन्हें हम पूजनीय मानते हैं? अगर हां, तो हम इन्हें बचाने के लिए कुछ क्यों नहीं कर रहे?
मिट्टी की स्थिति – “धरती मां” खतरे में!
हम कहते हैं “धरती हमारी मां है”, लेकिन भारत की मिट्टी का क्या हाल हो चुका है?
- हर साल 50,000 हेक्टेयर जमीन बंजर हो रही है।
- 40% भारतीय मिट्टी खराब हो चुकी है, क्योंकि इसमें अब पौधों के लिए जरूरी पोषक तत्व नहीं बचे हैं।
- ICAR (Indian Council of Agricultural Research) की रिपोर्ट बताती है कि पिछले 50 सालों में भारतीय मिट्टी की उर्वरता 30% घट चुकी है।
अगर धरती सच में हमारी मां है, तो हमने इसे बचाने के लिए क्या किया?
जंगलों का हाल – “हरियाली” खो रही है
हम तुलसी, पीपल और वट वृक्ष को पूजते हैं, लेकिन जब मॉल, सड़कें और हाईवे बनाने की बात आती है, तो सबसे पहले पेड़ काट दिए जाते हैं।
सरकारी आंकड़ों के अनुसार –
- पिछले 10 सालों में 14 लाख हेक्टेयर जंगल काटे गए।
- अरुणाचल प्रदेश, असम और मध्य प्रदेश में 7 लाख हेक्टेयर जंगल 2015 से 2023 के बीच खत्म हो चुके हैं।
- हर साल औसतन 1.5 लाख हेक्टेयर जंगल काटे जा रहे हैं।
हम “वृक्षारोपण दिवस” पर हजारों पेड़ लगाते हैं, लेकिन क्या ये कटे हुए जंगलों की भरपाई कर सकते हैं?
ब्रिटिश रिपोर्ट पर भरोसा करें या हकीकत देखें?
अगर हम सच में पर्यावरण प्रेमी होते, तो –
- हमारी नदियां साफ होतीं।
- हमारी मिट्टी उपजाऊ होती।
- हमारे जंगल सुरक्षित होते।
लेकिन ऐसा नहीं है। हमने धर्म से सीखा कि पर्यावरण पूजनीय है, लेकिन हम इसे सिर्फ शब्दों में मानते हैं, कर्मों में नहीं।
अब आपके पास दो रास्ते हैं –
- ब्रिटिश रिसर्च रिपोर्ट पढ़कर खुद की पीठ थपथपाइए।
- आज से ही संकल्प लीजिए कि पर्यावरण की रक्षा में अपना योगदान देंगे।
आप क्या कर सकते हैं?
- प्लास्टिक और रसायनों का कम से कम उपयोग करें।
- अपने घर और आसपास के इलाकों में कचरा ना फैलाएं और स्वच्छता बनाए रखें।
- अधिक से अधिक पेड़ लगाएं और कटाई रोकने की पहल करें।
- जल संरक्षण को अपनी आदत में शामिल करें।
अगर आपको लगता है कि हमें अपने धर्म की सीख को सिर्फ पढ़ने के लिए नहीं, बल्कि जीने के लिए अपनाना चाहिए, तो इस संदेश को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाएं। पर्यावरण संरक्षण सिर्फ सरकार की जिम्मेदारी नहीं, बल्कि हर इंसान की जिम्मेदारी है।