धरती का सबसे ठंडा और रहस्यमय महाद्वीप अंटार्कटिका एक गंभीर संकट की ओर बढ़ रहा है। वैज्ञानिकों की रिपोर्ट बताती हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण यहां की बर्फ बेहद तेज़ी से पिघल रही है, और इसका असर पूरी दुनिया, खासकर भारत जैसे देशों पर भयानक रूप से पड़ सकता है।
कैसे अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने से भारत पर आएगा संकट
द गार्जियन में प्रकाशित एक वैज्ञानिक रिपोर्ट के अनुसार, अंटार्कटिका की बर्फ पिघलने के कारण Antarctic Circumpolar Current (ACC) नामक महासागरीय धारा धीमी पड़ रही है। यह धारा पृथ्वी के जलवायु संतुलन को बनाए रखने में अहम भूमिका निभाती है।
अगर यह धारा धीमी होती है, तो:
- अंटार्कटिका की बर्फ और तेज़ी से पिघलेगी
- समुद्रों का जलस्तर अभूतपूर्व गति से बढ़ेगा
- मुंबई, कोलकाता, चेन्नई जैसे तटीय शहर डूबने के खतरे में आ जाएंगे
वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आने वाले वर्षों में इस धारा की गति में 20 प्रतिशत तक की गिरावट आ सकती है। इसका मतलब है कि ग्लेशियर पहले से भी तेज़ी से पिघलेंगे, और समुद्रों का स्तर इतना बढ़ सकता है कि करोड़ों लोग बेघर हो सकते हैं।
समुद्र का बढ़ता जलस्तर: भारत के लिए बड़ा खतरा
जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों का स्तर लगातार बढ़ रहा है।
- 1993 से अब तक महासागरों का औसत जलस्तर 10.3 सेंटीमीटर से अधिक बढ़ चुका है।
- अगर यह रफ्तार नहीं रुकी, तो 2070 तक समुद्र का स्तर 50 सेंटीमीटर या उससे अधिक बढ़ सकता है।
- यह बढ़ोतरी तटीय शहरों में बाढ़ और भारी तबाही ला सकती है।
समुद्र का जलस्तर बढ़ने से किन भारतीय शहरों को सबसे अधिक खतरा है:
- मुंबई – पहले से ही समुद्र के बढ़ते जलस्तर का सामना कर रहा है
- कोलकाता – सुंदरबन डेल्टा पहले से जलवायु परिवर्तन के प्रभाव में है
- चेन्नई – चक्रवात और बाढ़ का खतरा बढ़ता जा रहा है
- विशाखापट्टनम, पुरी, कांडला, कोच्चि – तटीय इलाकों में बसे शहर डूबने के कगार पर आ सकते हैं
खतरा सिर्फ समुद्र तक सीमित नहीं: भारत का मानसून भी प्रभावित होगा
अंटार्कटिका में बर्फ पिघलने से महासागर में ताज़े पानी की मात्रा बढ़ जाएगी, जिससे समुद्री धाराओं का प्रवाह बाधित होगा। इसका सीधा असर भारतीय मानसून पर पड़ेगा।
अगर मानसून बिगड़ गया, तो:
- भारत में सूखा और बाढ़ दोनों ही अधिक विनाशकारी हो जाएंगे
- कृषि उत्पादन घटेगा, जिससे खाद्य संकट पैदा हो सकता है
- गंगा, ब्रह्मपुत्र, यमुना जैसी नदियां भी प्रभावित होंगी
NASA और IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) की रिपोर्ट के अनुसार, अगर ग्लोबल वार्मिंग को नहीं रोका गया, तो अगले कुछ दशकों में महासागर अपने सबसे खतरनाक स्तर पर पहुंच सकते हैं।
क्या हम पहले ही जलवायु संकट के लक्षण देख रहे हैं
- 2024 पृथ्वी का अब तक का सबसे गर्म साल रहा
- भारत में पिछले साल 340 दिन चरम मौसम (Extreme Weather Events) देखे गए
- बढ़ती गर्मी से हिमालय के ग्लेशियर भी तेजी से पिघल रहे हैं
अगर यह सिलसिला जारी रहा, तो आने वाले वर्षों में गंगा और यमुना जैसी नदियां भी संकट में पड़ सकती हैं।
हमें क्या करना चाहिए (समाधान और बचाव के उपाय)
- ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कम करें – उद्योगों और वाहनों से होने वाले प्रदूषण को कम करना होगा
- नवीकरणीय ऊर्जा (सौर और पवन ऊर्जा) को बढ़ावा दें – कोयला और पेट्रोलियम पर निर्भरता घटानी होगी
- वनों की कटाई रोकें और अधिक पेड़ लगाएं – ग्लोबल वार्मिंग कम करने में मदद मिलेगी
- जल संसाधनों को बचाएं – पानी की बर्बादी रोकना अनिवार्य होगा
- सतत जीवनशैली अपनाएं – प्लास्टिक कम करें, ऊर्जा बचाएं, साइकिल या इलेक्ट्रिक वाहन का उपयोग करें