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दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ा; बच्चों, गर्भवती महिलाओं और पर्यावरण पर बुरा असर

by reporter
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आज सुबह दिल्ली की हवा की गुणवत्ता “खराब” श्रेणी में दर्ज की गई, जहां औसत AQI (एयर क्वालिटी इंडेक्स) 271 रहा। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) के अनुसार, आनंद विहार में AQI 302, चांदनी चौक पर 193, आईटीओ पर 280, आईजीआई एयरपोर्ट पर 273, वजीरपुर में 321, लोदी रोड पर 239 और नरेला में 312 मापा गया। मंगलवार को 24-घंटे का औसत AQI 304 था।

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स्काइमेट वेदर सर्विसेज के महेश पलावत ने PTI को बताया कि “हवा के पैटर्न के कारण पराली जलने का धुआं दिल्ली तक नहीं पहुंच पा रहा है। दोपहर में हवा की गति थोड़ी तेज थी, लेकिन शाम होते-होते शांत हो गई, जिससे हवा की गुणवत्ता में कुछ सुधार हुआ।”

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, वायु प्रदूषण का मतलब किसी भी रासायनिक, भौतिक या जैविक तत्व से वातावरण की स्वाभाविक विशेषताओं में बदलाव आना है। AQI स्तर 0-50 तक अच्छा, 51-100 संतोषजनक, 101-200 मध्यम, 201-300 खराब, 301-400 बहुत खराब, 401-500 गंभीर और 500 से अधिक “गंभीर प्लस” माना जाता है।

वायु प्रदूषण का स्वास्थ्य पर प्रभाव:

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  1. सांस की बीमारियां: बच्चों में अस्थमा और ब्रोंकाइटिस जैसी सांस की समस्याएं अधिक देखने को मिलती हैं। उनके फेफड़े छोटे होते हैं और प्रतिरक्षा तंत्र विकासशील होता है। पीएम2.5 और पीएम10 जैसे कण और नाइट्रोजन डाइऑक्साइड उनके वायुमार्ग को प्रभावित कर सकते हैं, जिससे श्वसन तंत्र पर दबाव बढ़ता है और सांस लेना कठिन हो जाता है।
  2. कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली: बच्चों का प्रतिरक्षा तंत्र अभी पूरी तरह से विकसित नहीं होता है, जिससे वे संक्रमणों के प्रति अधिक संवेदनशील होते हैं। सल्फर डाइऑक्साइड और ओजोन जैसे प्रदूषकों का संपर्क उनके प्रतिरक्षा कार्यों को प्रभावित कर सकता है, जिससे उन्हें सर्दी, फ्लू और अन्य संक्रमण जल्दी होते हैं।
  3. मस्तिष्क के विकास पर प्रभाव: लेड जैसे भारी धातु और कार्बन मोनोऑक्साइड जैसे रसायन बच्चों के मस्तिष्क विकास पर बुरा असर डाल सकते हैं। अध्ययनों से पता चला है कि ऐसे प्रदूषक संज्ञानात्मक समस्याएं, IQ स्तर में कमी और ध्यान केंद्रित करने में कठिनाई पैदा कर सकते हैं। ये प्रभाव दीर्घकालिक हो सकते हैं, जिससे स्मृति, सीखने और मस्तिष्क की संपूर्ण कार्यक्षमता पर असर पड़ता है।
  4. एलर्जी का उच्च जोखिम: प्रदूषित हवा बच्चों में एलर्जी की संभावना बढ़ाती है। ओजोन और पार्टिकुलेट मैटर जैसे रसायन श्वसन प्रणाली को अधिक संवेदनशील बना सकते हैं, जिससे परागकण और धूल से एलर्जी हो सकती है। इससे खुजली, छींक और त्वचा की जलन जैसे लक्षण दिखाई दे सकते हैं।
  5. गर्भवती महिलाओं और भ्रूण पर प्रभाव: जब गर्भवती महिलाएं प्रदूषित हवा में सांस लेती हैं, तो यह विषाक्त तत्व गर्भनाल के माध्यम से भ्रूण तक पहुंच सकते हैं, जिससे विकास पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। इसके कारण समय से पहले जन्म, कम वजन और विकास में विलंब जैसी समस्याएं हो सकती हैं।
  6. शारीरिक विकास पर प्रभाव: लंबे समय तक प्रदूषण के संपर्क में रहने से बच्चों की शारीरिक वृद्धि प्रभावित हो सकती है, जैसे कि ऊंचाई और फेफड़ों का विकास। इसके अलावा, लंबे समय तक संपर्क में रहने से हृदय संबंधी समस्याएं भी उत्पन्न हो सकती हैं, जिससे संपूर्ण स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ता है।

पर्यावरणीय प्रभाव:

दिल्ली में वायु प्रदूषण बढ़ने के कारण हवा की गुणवत्ता खराब हो रही है, जो न केवल लोगों के स्वास्थ्य बल्कि पूरे पारिस्थितिक तंत्र पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है। पेड़-पौधे, जल निकाय, और मिट्टी भी प्रदूषण से प्रभावित हो रहे हैं। लंबे समय तक ऐसी स्थिति बनी रहने से पारिस्थितिकी असंतुलित हो सकती है, जिससे सभी जीवों के अस्तित्व को खतरा हो सकता है।

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