नई दिल्ली: भारत में वायु प्रदूषण का स्तर स्वास्थ्य के लिए बेहद खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है। एक हालिया अध्ययन, जो लांसेट प्लैनेट हेल्थ में प्रकाशित हुआ है, के अनुसार भारत का कोई भी क्षेत्र ऐसा नहीं है जहां वायु गुणवत्ता विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) की अनुशंसित सीमा के अंदर हो।
WHO के अनुसार, PM2.5 का सुरक्षित स्तर 5 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर है। लेकिन, भारत में 81.9% लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं, जहां वायु गुणवत्ता का स्तर देश के अपने राष्ट्रीय मानक (NAAQS) 40 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर से भी अधिक खराब है।
हर साल 15 लाख मौतों का जिम्मेदार वायु प्रदूषण
अध्ययन में बताया गया है कि 2009 से 2019 के बीच, वायु प्रदूषण के कारण भारत में हर साल औसतन 15 लाख लोगों की जान गई। यह आंकड़ा पहले अनुमानित 11 लाख मौतों से कहीं अधिक है। यहां तक कि अगर भारत NAAQS के स्तर तक प्रदूषण कम कर ले, तो भी हर साल 3 लाख मौतों को रोका जा सकता है।
डॉ. दोरैराज प्रभाकरण, जो अध्ययन के सह-लेखक हैं, ने कहा, “यह आंकड़े वायु प्रदूषण के गंभीर स्वास्थ्य प्रभावों को दिखाते हैं। प्रदूषण के प्रमुख स्रोतों जैसे वाहन, पराली जलाना, निर्माण कार्य और औद्योगिक उत्सर्जन की पहचान कर इन्हें नियंत्रित करना बेहद जरूरी है।”
प्रदूषण के स्तर में क्षेत्रीय अंतर
अध्ययन के मुताबिक, 2019 में अरुणाचल प्रदेश के लोअर सुबनसिरी जिले में PM2.5 का स्तर सबसे कम 11.2 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर दर्ज किया गया। वहीं, 2016 में गाजियाबाद और दिल्ली में यह खतरनाक स्तर पर, 119 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर तक पहुंच गया।
प्रदूषण का स्वास्थ्य पर असर
वायु प्रदूषण, खासकर PM2.5, से श्वसन और हृदय रोगों का खतरा बढ़ जाता है। यह फेफड़ों को नुकसान पहुंचाने के अलावा, दिल के दौरे, स्ट्रोक और ब्लड प्रेशर की समस्या पैदा करता है। बच्चों में यह विकास संबंधी समस्याओं का कारण बनता है। अध्ययन के अनुसार, PM2.5 के हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि से मौत का जोखिम 8.6% बढ़ जाता है।
पर्यावरण और स्वास्थ्य पर व्यापक असर
वायु प्रदूषण न केवल मानव स्वास्थ्य, बल्कि पर्यावरण को भी नुकसान पहुंचा रहा है। फसलों की उत्पादकता घट रही है, जैव विविधता पर असर हो रहा है, और जलवायु परिवर्तन की गति तेज हो रही है।
साफ हवा के लिए ठोस कदम जरूरी
विशेषज्ञों का मानना है कि वायु प्रदूषण से निपटने के लिए नीतिगत बदलाव, स्वच्छ ऊर्जा का इस्तेमाल, हरियाली बढ़ाने और जनजागरूकता फैलाने जैसे उपाय तुरंत लागू किए जाने चाहिए। यदि वायु गुणवत्ता WHO के स्तर तक लाई जा सके, तो लाखों जानें बचाई जा सकती हैं और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले आर्थिक बोझ को भी कम किया जा सकता है।