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जम्मू और कश्मीर में बारिश की कमी से कृषि और बागवानी संकट में

by kishanchaubey
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जम्मू और कश्मीर इस साल भारी बारिश की कमी से जूझ रहा है। यहां सिर्फ 834.8 मिमी बारिश हुई है, जबकि सामान्यतः 1137.7 मिमी बारिश होती है। खासकर अक्टूबर में कश्मीर में बारिश की कमी 87 प्रतिशत तक पहुंच गई, जहां सिर्फ 4 मिमी बारिश हुई, जबकि आमतौर पर इस महीने में 31 मिमी बारिश होती है। दक्षिण कश्मीर, जो देश के बेहतरीन केसर और सेब का उत्पादन करता है, वहां बारिश की कमी 95 से 100 प्रतिशत तक रही है।

जलवायु परिवर्तन और कृषि पर असर

इस बारिश की कमी का कश्मीर की कृषि और बागवानी पर गहरा असर पड़ा है, जिसमें जलवायु परिवर्तन की बड़ी भूमिका है। पिछले कई वर्षों से जलवायु परिवर्तन के कारण मौसम में बड़े बदलाव हो रहे हैं, जिससे घाटी की नकदी फसलों की पैदावार प्रभावित हो रही है। केसर और सेब जैसी फसलें, जिनके लिए ठंडे मौसम और पानी की जरूरत होती है, अब सूखे का सामना कर रही हैं।

संकट में केसर उद्योग

कश्मीर का केसर उद्योग, जो करीब 375 करोड़ रुपये का है, पिछले दो दशकों से बारिश की कमी और सिंचाई की कमी के कारण गंभीर संकट में है। केसर उत्पादन में भारी गिरावट आई है। 1997-98 में केसर का उत्पादन 15.98 मीट्रिक टन था, जो 2021-22 में सिर्फ 3.48 मीट्रिक टन रह गया। इसी तरह, केसर की खेती का क्षेत्र भी घटकर 5707 हेक्टेयर से 3715 हेक्टेयर रह गया है।

पंपोर, जिसे कश्मीर का “केसर नगर” कहा जाता है, वहां बड़ी मात्रा में जमीन खाली पड़ी है। किसानों के लिए जलवायु परिवर्तन के कारण यह खेती करना मुश्किल हो गया है और इस वजह से उन्होंने केसर की खेती में रुचि खो दी है।

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सेब उद्योग पर संकट

कश्मीर का सेब उद्योग, जो भारत के सेब उत्पादन का 80 प्रतिशत है, भी सूखे, गर्मी और असमय बर्फबारी का सामना कर रहा है। यह उद्योग करीब 8,000 करोड़ रुपये का है और 35 लाख लोगों को रोजगार देता है। लगातार बढ़ते तापमान से सेब के आकार, रंग और गुणवत्ता पर असर पड़ा है। इस वजह से सेब की कीमतें भी घट रही हैं।

कुछ वर्षों में गर्मी के कारण सेब के फलों पर काले धब्बे और सनस्कार दिखाई देने लगे हैं, जो उनकी गुणवत्ता को खराब करते हैं। इसके अलावा, असमय बर्फबारी से सेब के पेड़ों पर लगे फलों को भी नुकसान पहुंचा है, जिससे किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ा है।

जलवायु परिवर्तन और बढ़ते तापमान का असर

कश्मीर में पिछले कुछ वर्षों में कई चरम मौसम की घटनाएं देखी गई हैं, जैसे कि फरवरी 2016 में सबसे गर्म फरवरी, अगस्त 2020 में सबसे गर्म अगस्त, और जुलाई 2021 में सबसे गर्म जुलाई। 2021 में कश्मीर में जनवरी का सबसे ठंडा रात्रि तापमान भी दर्ज किया गया था। इस साल मई में श्रीनगर में सबसे अधिक तापमान दर्ज हुआ और जुलाई में 36.2°C पहुंच गया।

बागवानी वैज्ञानिकों का कहना है कि 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक तापमान सेब की फसल के लिए हानिकारक है और इस बार की गर्मी ने फसल के विकास चक्र को प्रभावित किया है। इस वजह से सेब की गुणवत्ता और पैदावार में गिरावट आई है। अन्य फसलें, जैसे स्ट्रॉबेरी, चेरी, खुबानी और आलूबुखारा, भी जलवायु परिवर्तन के कारण प्रभावित हो रही हैं।

ग्लेशियरों का घटता आकार और जल संकट

हिमालय के ग्लेशियरों का तेजी से पिघलना भी कश्मीर के जल संकट को बढ़ा रहा है। पिछले 33 वर्षों में नौ प्रमुख ग्लेशियरों का क्षेत्रफल 5.20 किमी घट गया है। नवंबर 2024 में झेलम नदी में जलस्तर अपने न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया, जिससे पीने और सिंचाई के लिए पानी की भारी कमी हो गई है।

पर्यावरण और स्वास्थ्य पर प्रभाव

बारिश की कमी, असमय बर्फबारी और बढ़ते तापमान से न केवल कृषि और बागवानी प्रभावित हो रहे हैं, बल्कि इसका पर्यावरण और लोगों के स्वास्थ्य पर भी गहरा असर पड़ रहा है। लगातार सूखा और गर्मी का असर लोगों के मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य पर हो सकता है। पेयजल की कमी, भोजन की गुणवत्ता में गिरावट और आय का नुकसान भी स्वास्थ्य पर असर डाल सकता है

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