environmentalstory

Home » कृषि अनुसंधान और नवाचार से बनेगा विकसित भारत 2047 का आधार

कृषि अनुसंधान और नवाचार से बनेगा विकसित भारत 2047 का आधार

by kishanchaubey
0 comment

Agricultural Research : भारत ने धान, गेहूं और गन्ने के उत्पादन में वैश्विक स्तर पर अग्रणी स्थान हासिल किया है। लेकिन सोयाबीन, मक्का और कपास जैसी फसलों के उत्पादन में कुछ क्षेत्रों में ठहराव या गिरावट देखने को मिली है। इससे यह स्पष्ट होता है कि कृषि क्षेत्र को एक नई दिशा देने के लिए अनुसंधान और विकास में सुधार जरूरी है।

कृषि की वर्तमान स्थिति

भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण योगदान है। यह देश की लगभग आधी आबादी को रोजगार प्रदान करती है और जीडीपी में 18% का योगदान देती है। लेकिन यह क्षेत्र कई समस्याओं से जूझ रहा है:

  • बंटे हुए खेत: 85% किसानों के पास छोटे भूखंड हैं, जो कुल उत्पादन में केवल 20% का योगदान करते हैं।
  • अत्यधिक भूजल दोहन: पंजाब और हरियाणा जैसे राज्यों में भूजल स्तर तेजी से गिर रहा है। पंजाब के 50% और हरियाणा के 96% ब्लॉक “अत्यधिक दोहन” की स्थिति में हैं।
  • मृदा क्षरण: भारत की 30% कृषि भूमि उर्वरता की कमी, कटाव और लवणीयता की समस्याओं से प्रभावित है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: तापमान में वृद्धि और अनियमित वर्षा के कारण 2050 तक फसल उत्पादन में 10-20% की कमी हो सकती है।

हरित क्रांति के बाद की चुनौतियां

हरित क्रांति के कारण कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई, लेकिन अब इसका प्रभाव स्थिर हो गया है। इसलिए, कृषि को उत्पादन-केंद्रित दृष्टिकोण से हटाकर मांग-आधारित, टिकाऊ और समावेशी प्रणाली में बदलना जरूरी है।

कृषि अनुसंधान में सुधार के लिए सुझाव

1. निवेश बढ़ाना और क्षेत्रीय विविधता को ध्यान में रखना

  • कम निवेश: भारत का कृषि अनुसंधान निवेश जीडीपी का केवल 0.4% है, जबकि चीन और नीदरलैंड जैसे देश 1-2% निवेश करते हैं।
  • क्षेत्रीय विविधता का उपयोग: रिमोट सेंसिंग, मृदा उर्वरता मानचित्रण और भू-स्थानिक तकनीकों का उपयोग करके भारत के विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में शोध को बढ़ावा दिया जा सकता है। जापान और दक्षिण कोरिया से यह सीखा जा सकता है कि स्थानीय कृषि पद्धतियों और टिकाऊ फसल तकनीकों को अपनाकर खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।

2. सहयोग और क्षमता निर्माण

  • कृषि अनुसंधान को विश्वविद्यालयों, निजी क्षेत्र, किसानों और संस्थानों के साथ मिलकर आगे बढ़ाने की जरूरत है।
  • क्षेत्रीय समस्याओं का समाधान: दक्षिण कोरिया की सटीक कृषि पद्धतियों से प्रेरणा लेते हुए, भारत में भी राज्य-विशेष समस्याओं पर काम किया जा सकता है।
  • प्रशिक्षण कार्यक्रम: शोधकर्ताओं, कृषि कर्मियों और किसानों को स्थानीय जरूरतों के अनुसार आधुनिक तकनीकों में प्रशिक्षित किया जाना चाहिए।

3. तकनीक का उपयोग

  • ड्रोन, डेटा एनालिटिक्स और जैव प्रौद्योगिकी जैसी तकनीकों का उपयोग जलवायु-प्रतिरोधी फसलों के विकास और संसाधनों की दक्षता बढ़ाने में किया जा सकता है।
  • डिजिटल प्लेटफॉर्म का उपयोग: ई-नाम (राष्ट्रीय कृषि बाजार) और मोबाइल एप्स से किसानों को जोड़ा जा सकता है। आंध्र प्रदेश के “रायथु भरोसा केंद्र” और कर्नाटक के “रैता संपर्क केंद्र” जैसे मॉडलों को अन्य राज्यों में भी लागू किया जाना चाहिए।

4. टिकाऊ कृषि और बेहतर शासन

  • जैविक खेती और मृदा संरक्षण: स्वीडन और चीन से प्रेरणा लेते हुए, भारत में भी टिकाऊ कृषि पद्धतियों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए।
  • शासन सुधार: भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR) को वैज्ञानिकों को सशक्त बनाने और प्रक्रियाओं को सरल बनाने की जरूरत है।

You may also like