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आंत और दिमाग का गहरा रिश्ता: कैसे प्रभावित करते हैं एक-दूसरे को, नई रिसर्च ने खोले राज

by kishanchaubey
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gut and brain

हमारी आंत में 10 करोड़ से अधिक तंत्रिका कोशिकाएं (नर्व सेल्स) मौजूद हैं, जो शरीर में 95% सेरोटोनिन का उत्पादन करती हैं। सेरोटोनिन एक ऐसा रासायनिक पदार्थ है, जो हमारे मूड और खुशी को नियंत्रित करता है।

हाल के शोधों से पता चला है कि आंत में मौजूद खरबों बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और अन्य सूक्ष्म जीव, यानी माइक्रोबायोटा, हमारे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहद महत्वपूर्ण हैं। यह साफ है कि आंत और दिमाग एक-दूसरे से गहराई से जुड़े हैं और दोनों एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं।

क्या आपने कभी किसी महत्वपूर्ण मीटिंग से पहले घबराहट या पेट में मरोड़ महसूस की है? या कब्ज के दौरान चिड़चिड़ापन अनुभव किया है? ये सब आंत-दिमाग के इस जुड़ाव का नतीजा है। विशेषज्ञों का कहना है कि चिड़चिड़ापन तनाव को बढ़ा सकता है, और इसके पीछे आंत और दिमाग का रिश्ता एक अहम भूमिका निभाता है।

आंत और दिमाग का जुड़ाव: तीन मुख्य रास्ते

ब्रिटेन की बाउल रिसर्च की एंबेसडर और गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. सलीहा महमूद अहमद बताती हैं कि आंत और दिमाग तीन तरीकों से जुड़े हैं:

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  1. वैगस नर्व: यह तंत्रिका तंत्र की एक महत्वपूर्ण संरचना है, जो दिमाग को हृदय और आंत जैसे अंगों से जोड़ती है। यह संदेशों को तेजी से एक से दूसरे तक पहुंचाती है।
  2. हार्मोन: हार्मोन्स के जरिए आंत और दिमाग एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं। सेरोटोनिन जैसे हार्मोन मूड को बेहतर बनाने में मदद करते हैं।
  3. इम्यून सिस्टम: आंत में मौजूद इम्यून सेल्स शरीर और दिमाग को जोड़ने में अहम भूमिका निभाते हैं। डॉ. अहमद बताती हैं कि लोग अक्सर सोचते हैं कि इम्यून सेल्स केवल खून या लिम्फ नोड्स में होते हैं, लेकिन इनका एक बड़ा हिस्सा आंत में सक्रिय रहता है।

अमेरिका के मेयो क्लिनिक के गैस्ट्रोएंटेरोलॉजिस्ट डॉ. पंकज जे. पसरीचा बताते हैं कि दिमाग को काम करने के लिए भारी मात्रा में ऊर्जा चाहिए, और आंत इस ऊर्जा का मुख्य स्रोत है। वे कहते हैं, “दिमाग शरीर के वजन का सिर्फ 2% होता है, लेकिन यह शरीर की 20% ऊर्जा का उपयोग करता है।” आंत न केवल दिमाग को ऊर्जा देती है, बल्कि यह दिमाग को प्रभावित भी करती है।

रोजमर्रा के उदाहरणों से समझें यह रिश्ता

आपने शायद गौर किया होगा कि तनावपूर्ण स्थिति, जैसे ऑफिस की मीटिंग या कोई खतरा, सबसे पहले पेट पर असर डालता है। मिचलाहट, पेट में मरोड़ या दस्त जैसी समस्याएं इसके उदाहरण हैं। प्रेम में होने पर ‘पेट में गुदगुदी’ महसूस होना भी इसी जुड़ाव का हिस्सा है। वहीं, कब्ज जैसी समस्या चिड़चिड़ेपन और तनाव का कारण बन सकती है।

आंत: एक सूक्ष्म दुनिया

हमारी आंत में 10 खरब से अधिक माइक्रोबायल सेल्स हैं, जो बैक्टीरिया, वायरस, फंगस और अन्य सूक्ष्म जीवों से मिलकर बने हैं। यह संख्या मानव शरीर की कोशिकाओं से भी ज्यादा है। पिछले दो दशकों में, माइक्रोबायोटा और इसके स्वास्थ्य पर प्रभाव को समझने में काफी प्रगति हुई है। डॉ. अहमद बताती हैं कि नए उपकरणों और परीक्षणों ने आंत के सूक्ष्म जीवों को समझने में मदद की है।

2011 में डॉ. पसरीचा की चूहों पर की गई एक रिसर्च में पाया गया कि गैस्ट्रिक इरिटेशन लंबे समय तक अवसाद और चिंता जैसी समस्याएं पैदा कर सकता है। अन्य शोधों से पता चला है कि माइक्रोबायोटा का असंतुलन (डिस्बायोसिस) मोटापे, हृदय रोगों और कैंसर से जुड़ा हो सकता है। हालांकि, डॉ. पसरीचा यह भी कहते हैं कि इस बारे में अभी और सबूतों की जरूरत है।

स्वस्थ माइक्रोबायोटा के लिए क्या करें?

माइक्रोबायोटा और आंत-दिमाग कनेक्शन पर हालिया शोध यह सवाल उठाते हैं कि क्या आंत में सूक्ष्म जीवों का ‘संपूर्ण संतुलन’ संभव है? डॉ. अहमद के अनुसार, हर व्यक्ति का माइक्रोबायोटा अलग होता है, इसलिए यह कहना मुश्किल है। हालांकि, कुछ सामान्य उपाय आंत की सेहत के लिए फायदेमंद हैं:

  • संतुलित और विविध आहार: फल, सब्जियां, साबुत अनाज और दालें आंत के लिए अच्छे हैं।
  • प्रोबायोटिक्स: दही जैसे प्रोबायोटिक खाद्य पदार्थ पाचन तंत्र को मजबूत करते हैं।
  • पौधों पर आधारित आहार: डॉ. अहमद सलाह देती हैं कि सप्ताह में 30 प्रकार के पौधों पर आधारित खाद्य पदार्थ खाने से माइक्रोबायोम स्वस्थ रहता है।

क्या आहार भावनाओं को बदल सकता है?

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक स्टडी में अवसाद से जूझ रहे 71 वॉलंटियर्स को दो समूहों में बांटा गया। एक समूह को चार हफ्तों तक प्रोबायोटिक भोजन दिया गया, जबकि दूसरे को प्लेसीबो। स्टडी में मूड, चिंता, नींद और तनाव से जुड़े हार्मोन कॉर्टिसोल को मापा गया।

पुर्तगाल की यूनिवर्सिटी इंस्टीट्यूट ऑफ लिस्बन की असिस्टेंट प्रोफेसर रीटा बायो, जिन्होंने इस स्टडी का नेतृत्व किया, बताती हैं कि प्रोबायोटिक समूह में नकारात्मक भावनाओं की ओर झुकाव कम हुआ। वे कहती हैं, “प्रोबायोटिक्स अवसाद के कुछ लक्षणों को कम करने में मदद कर सकते हैं, लेकिन इसके लिए और रिसर्च चाहिए।”

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