दो तेलुगु राज्यों—तेलंगाना और आंध्र प्रदेश—की जीवनरेखा गोदावरी नदी भारी प्रदूषण की चपेट में है। एक ताजा अध्ययन ने खुलासा किया है कि औद्योगिक कचरा, खेती से बहने वाला रसायन, और शहरों का गंदा पानी इस पवित्र नदी को जहरीला बना रहा है।
इसे ‘दक्षिण गंगा’ भी कहा जाता है, लेकिन अब इसकी हालत चिंताजनक है। आइए, इस समस्या को आसान शब्दों में समझते हैं और जानते हैं कि गोदावरी को बचाने के लिए क्या करना होगा।
अध्ययन का खुलासा
इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी-हैदराबाद (IIT-H) और नेशनल एनवायर्नमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (NEERI), नागपुर के संयुक्त शोध ने गोदावरी की दयनीय स्थिति को उजागर किया है। मुख्य बातें:
- प्रदूषण के स्रोत:
- महाराष्ट्र: यहां की फैक्ट्रियां बिना शोधन के जहरीले रसायन और भारी धातुएं (जैसे लेड, मरकरी) नदी में बहा रही हैं।
- तेलंगाना: शहरों का अनुपचारित गंदा पानी (सीवेज) सीधे नदी में मिल रहा है।
- आंध्र प्रदेश: नदी के किनारों पर खुले में शौच की समस्या पानी को और दूषित कर रही है।
- खेती का रसायन: कीटनाशक और उर्वरक खेतों से बहकर नदी में पहुंच रहे हैं, जिससे पानी जहरीला हो रहा है।
- प्रभाव:
- गोदावरी का पानी अब पीने, खेती, या मछली पालन के लिए सुरक्षित नहीं रहा।
- नदी की प्राकृतिक सुंदरता और ‘पवित्रता’ खत्म हो रही है।
- जलीय जीव (मछलियां, कछुए) और नदी पर निर्भर पक्षी खतरे में हैं।
गोदावरी का महत्व
गोदावरी भारत की दूसरी सबसे लंबी नदी है, जो 1,460 किलोमीटर तक बहती है। इसका उद्गम महाराष्ट्र के नासिक में त्र्यंबकेश्वर के पास है और यह आंध्र प्रदेश के पश्चिम गोदावरी में बंगाल की खाड़ी में मिलती है। यह नदी:
- 10% भारतीय भूभाग को कवर करती है।
- तेलंगाना और आंध्र प्रदेश के लाखों किसानों की खेती को सींचती है।
- शहरों और गांवों को पीने का पानी देती है।
- मछली पालन और पर्यटन के लिए महत्वपूर्ण है।
- सांस्कृतिक और धार्मिक दृष्टि से ‘दक्षिण गंगा’ के रूप में पूजनीय है।
अतिक्रमण और बाढ़ का खतरा
प्रदूषण के अलावा, गोदावरी की प्राकृतिक धारा को भी भारी नुकसान पहुंचा है। शोध बताता है कि:
- अनियंत्रित शहरीकरण:
- नासिक, नांदेड़, और राजमुंद्री जैसे शहरों में नदी के किनारों पर अवैध निर्माण हुए हैं।
- जंगलों की कटाई और अतिक्रमण से नदी का रास्ता संकरा हो गया है।
- नदी के आसपास की प्राकृतिक वनस्पति नष्ट हो रही है, जो बाढ़ को रोकने में मदद करती थी।
- बाढ़ का बढ़ता जोखिम:
- नदी का प्रवाह बाधित होने से बाढ़ का खतरा बढ़ गया है।
- निचले गोदावरी क्षेत्र (आंध्र प्रदेश) में हर दो साल में गंभीर बाढ़ आ रही है।
- हर 10-15 साल में बड़ी बाढ़ तबाही मचाती है। उदाहरण:
- 2006 की बाढ़: आंध्र प्रदेश में 460 गांव डूब गए, 2 लाख लोग विस्थापित हुए, फसलें और संपत्ति को भारी नुकसान हुआ।
- हाल की बाढ़ों (2020, 2022) ने भी हजारों हेक्टेयर खेती को बर्बाद किया।
स्वास्थ्य और पर्यावरण पर असर
- मानव स्वास्थ्य:
- प्रदूषित पानी पीने से पेट की बीमारियां, त्वचा रोग, और कैंसर जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं।
- भारी धातुओं से बच्चों के विकास और बुजुर्गों के स्वास्थ्य पर बुरा असर पड़ रहा है।
- जलीय पारिस्थितिकी:
- मछलियों की कई प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं।
- नदी के किनारे रहने वाले पक्षी (जैसे बगुले, सारस) भोजन की कमी से प्रभावित हैं।
- खेती और आजीविका:
- प्रदूषित पानी से सिंचाई करने पर फसलें खराब हो रही हैं।
- मछुआरों की आजीविका खतरे में है, क्योंकि मछलियां कम हो रही हैं।