फ्रांस और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक नए अध्ययन में चौंकाने वाला खुलासा हुआ है कि महिलाओं की सुनने की क्षमता पुरुषों की तुलना में औसतन दो डेसिबल बेहतर होती है। फ्रांस के सेंटर फॉर बायोडायवर्सिटी एंड एनवायर्नमेंटल रिसर्च की डॉ. पैट्रिसिया बालरेस्क और यूनिवर्सिटी ऑफ बाथ की प्रोफेसर टुरी किंग के नेतृत्व में हुए इस शोध ने 13 देशों के 450 लोगों की सुनने की क्षमता का विश्लेषण किया।
अध्ययन में यह भी पाया गया कि पर्यावरण, जैसे शहरी शोर या प्राकृतिक माहौल, सुनने की क्षमता पर गहरा प्रभाव डालता है। नतीजे ‘साइंटिफिक रिपोर्ट्स’ जर्नल में प्रकाशित हुए हैं।
अध्ययन की रूपरेखा
शोध में फ्रांस, इंग्लैंड, इक्वाडोर, गेबॉन, दक्षिण अफ्रीका और उज्बेकिस्तान सहित 13 देशों के लोगों को शामिल किया गया। इनमें जंगलों, पहाड़ों और शहरी क्षेत्रों में रहने वाले समुदाय थे, ताकि विभिन्न पर्यावरणीय और सांस्कृतिक परिस्थितियों में सुनने की क्षमता को समझा जा सके। ग्रामीण और गैर-यूरोपीय समुदायों को विशेष रूप से शामिल किया गया, जो आमतौर पर ऐसे शोधों में कम प्रतिनिधित्व करते हैं।
वैज्ञानिकों ने कान के कॉक्लिया (आंतरिक हिस्सा, जो ध्वनि को मस्तिष्क तक पहुंचाता है) की जांच की। ‘क्षणिक उत्प्रेरित श्रवण ध्वनि उत्सर्जन (टीईओएई)’ तकनीक का उपयोग कर यह देखा गया कि कॉक्लिया धीमी, तेज, ऊंची या नीची आवाजों पर कैसे प्रतिक्रिया देता है।
मुख्य निष्कर्ष
- जेंडर का प्रभाव: अध्ययन में पाया गया कि महिलाओं की सुनने की क्षमता पुरुषों से औसतन दो डेसिबल बेहतर है। महिलाएं न केवल बेहतर सुनती हैं, बल्कि आवाज को पहचानने और समझने की उनकी क्षमता भी पुरुषों से अधिक है। शोधकर्ताओं का मानना है कि यह अंतर हार्मोनल बदलाव या कान की आंतरिक संरचना में मामूली भिन्नता के कारण हो सकता है।
- पर्यावरण की भूमिका: शांत, प्राकृतिक माहौल (जंगल या ग्रामीण क्षेत्र) में रहने वालों की सुनने की क्षमता शहरी लोगों से बेहतर पाई गई। शहरी लोग ऊंची फ्रीक्वेंसी की आवाजों (जैसे गाड़ियों का शोर) को बेहतर सुनते हैं, संभवतः शोर से बचने की आदत के कारण। वहीं, पहाड़ी क्षेत्रों में रहने वालों की सुनने की क्षमता कम थी, जिसके पीछे ऑक्सीजन की कमी, कम हवा का दबाव और ध्वनि का कम पहुंचना जैसे कारक हो सकते हैं।
- आवाज की फ्रीक्वेंसी और पर्यावरण: पर्यावरण न केवल आवाज की तीव्रता, बल्कि उसकी फ्रीक्वेंसी (तरंगों) को भी प्रभावित करता है। जंगलों में रहने वाले लोग प्राकृतिक आवाजों (जैसे जानवरों की आवाज) पर अधिक ध्यान देते हैं, जिससे उनकी सुनने की संवेदनशीलता बढ़ती है।
- उम्र और अन्य कारक: पहले से ज्ञात है कि उम्र बढ़ने, तेज शोर और तंबाकू जैसे रसायनों के संपर्क से सुनने की क्षमता कम होती है। यह अध्ययन इस बात की पुष्टि करता है, लेकिन जेंडर और पर्यावरण को अधिक प्रभावशाली कारक बताता है।
स्वास्थ्य और शोर का जोखिम
विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, 80 डेसिबल से अधिक शोर में सप्ताह में 40 घंटे रहना सुरक्षित नहीं है। यह एक दरवाजे की घंटी की आवाज के बराबर है। शोर बढ़ने पर सुरक्षित समय तेजी से कम हो जाता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि अत्यधिक संवेदनशील सुनने की क्षमता शोर भरे वातावरण में नुकसानदेह हो सकती है, क्योंकि यह नींद की कमी और हृदय रोग जैसी समस्याओं को बढ़ा सकती है।
शोध का महत्व
प्रोफेसर टुरी किंग ने बताया कि यह अध्ययन सुनने की क्षमता को प्रभावित करने वाले जैविक और पर्यावरणीय कारकों को समझने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। शहरीकरण, शोर प्रदूषण और जीवनशैली के बदलावों के बीच सुनने की समस्याएं बढ़ रही हैं। यह शोध दर्शाता है कि सुनने की क्षमता केवल उम्र या बीमारी से ही नहीं, बल्कि लिंग, पर्यावरण, और रहन-सहन से भी प्रभावित होती है।
भविष्य की संभावनाएं
शोधकर्ताओं का मानना है कि इन कारकों को समझने से भविष्य में सुनने से जुड़ी बीमारियों का बेहतर इलाज संभव हो सकेगा। पर्यावरण सुधार, शोर प्रदूषण नियंत्रण और जीवनशैली में बदलाव सुनने की समस्याओं को कम करने में मदद कर सकते हैं। यह अध्ययन वैज्ञानिकों को मानव विकास और पर्यावरण के बीच संबंधों को और गहराई से समझने के लिए प्रेरित करता है।