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केरल के जंगलों से हटाए जाएंगे विदेशी पेड़, पर्यावरण को बचाने की बड़ी योजना

by kishanchaubey
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केरल वन विभाग ने 1960 के दशक में औद्योगिक जरूरतों के लिए नीलगिरी, बबूल और वॉटल जैसे विदेशी पेड़ लगाए थे। लेकिन अब ये पेड़ पर्यावरण के लिए नुकसानदायक माने जा रहे हैं। 28 मार्च, 2025 को वन और वन्यजीव विभाग की एक रिपोर्ट के अनुसार, केरल के जंगलों में अभी 7,622 हेक्टेयर में नीलगिरी और 1,758 हेक्टेयर में वॉटल के पेड़ हैं।

रिपोर्ट में बताया गया कि इन विदेशी पेड़ों को हटाने का काम शुरू हो चुका है, क्योंकि ये पेड़ एक ही तरह के (मोनोकल्चर) होते हैं और स्थानीय पर्यावरण के लिए ठीक नहीं हैं। विभाग ने फैसला किया है कि अब जंगलों में कोई नई विदेशी प्रजाति नहीं लगाई जाएगी।

वॉटल का रोपण 1992 में, बबूल और बबूल मैंगियम का 2018 में, और नीलगिरी का 2019 में बंद कर दिया गया था।

17 दिसंबर, 2021 को केरल सरकार ने एक खास नीति को मंजूरी दी, जिसे “पारिस्थितिकी-पुनर्स्थापना नीति” कहा जाता है। इसके तहत अगले 20 सालों में इन विदेशी पेड़ों को धीरे-धीरे हटाकर जंगलों को उनकी पुरानी प्राकृतिक स्थिति में लाया जाएगा।

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इस दौरान देशी पेड़-पौधों को बढ़ावा दिया जाएगा, ताकि जंगल फिर से हरे-भरे और स्वस्थ हो सकें।

वायनाड भूस्खलन: अतिक्रमण नहीं, प्राकृतिक कारण जिम्मेदार

वायनाड में जुलाई 2024 में हुए भयानक भूस्खलन को लेकर वन विभाग ने कहा कि यह इलाका बहुत संवेदनशील है। भूस्खलन के पीछे कई कारण थे, जैसे पहाड़ी इलाके की बनावट, मिट्टी का कटाव और उससे पहले हुई तेज बारिश।

रिपोर्ट में साफ किया गया कि भूस्खलन का कारण जंगलों में अतिक्रमण नहीं था।

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इस मामले को गंभीरता से लिया और भूस्खलन के कारणों की जांच के लिए एक रिपोर्ट मांगी। इसके अलावा, 27 सितंबर, 2024 को एनजीटी ने केरल वन विभाग को वनीकरण (पेड़ लगाने) और अतिक्रमण रोकने के प्रयासों पर अलग से रिपोर्ट देने को कहा।

इस मामले में वन विभाग को भी पक्षकार बनाया गया है।

चेन्नई में सूखे से निपटने की तैयारी, पुरानी खदानों से मिलेगा पानी

दूसरी ओर, चेन्नई में पानी की कमी से निपटने के लिए खास कदम उठाए जा रहे हैं। चेन्नई मेट्रोपॉलिटन वाटर सप्लाई एंड सीवरेज बोर्ड (सीएमडब्ल्यूएसएसबी) ने 28 मार्च, 2025 को एनजीटी को दी अपनी रिपोर्ट में बताया कि पुरानी खदानों को पानी जमा करने के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।

2017, 2019, 2023 और 2024 में आए सूखे के दौरान इन खदानों से पानी निकाला गया और सिक्करायपुरम खदानों में पंप किया गया।

रिपोर्ट के मुताबिक, सिक्करायपुरम खदानों में पानी पंप करने की पूरी व्यवस्था तैयार है। तमिलनाडु बिजली बोर्ड (टीएनईबी) ने बिजली की सप्लाई शुरू कर दी है और तमिलनाडु पावर डिस्ट्रीब्यूशन कॉर्पोरेशन लिमिटेड (टीएनपीडीसीएल) के साथ बाकी औपचारिकताएं पूरी की जा रही हैं।

अभी इन खदानों में करीब 6,000 मिलियन लीटर पानी जमा है।

कितना पानी निकाला गया?

  • 2017 में: 2,727 मिलियन लीटर
  • 2019 में: 3,606.19 मिलियन लीटर
  • 2023 में: 1,292.73 मिलियन लीटर
  • 2024 में: 105.44 मिलियन लीटर

2019 के बाद अच्छी बारिश होने की वजह से पंपिंग का काम रोक दिया गया था। सीएमडब्ल्यूएसएसबी ने सभी खदानों को जोड़ने के लिए पाइपलाइन और बुनियादी ढांचा तैयार किया है।

जल संसाधन विभाग (डब्ल्यूआरडी) ने भी चेम्बरमबक्कम झील के अतिरिक्त पानी को खदानों तक पहुंचाने के लिए एक कच्चा नाला बनाया है। इससे खदानें नियमित रूप से भरी रहती हैं।

अब जरूरत पड़ने पर सिक्करायपुरम खदानों से रोज 30 मिलियन लीटर और एरुमैयुर खदानों से 10 मिलियन लीटर पानी निकाला जा सकता है। इस तरह चेन्नई में सूखे की समस्या से निपटने की पूरी तैयारी की गई है।

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