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लाहौर का कचरा ढेर गायब, बदबू से कैसे मिली राहत

by kishanchaubey
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महमूद बूटी का कचरा ढेर गायब, लाहौर को मिली राहतलाहौर: कुछ समय पहले तक लाहौर के रिंग रोड से गुजरते वक्त महमूद बूटी इलाके के पास तेज बदबू लोगों को परेशान करती थी। यह बदबू शहर की सबसे बड़ी लैंडफिल साइट से आती थी, जहां 14 मिलियन टन कचरे का ढेर 80 फुट ऊंचा और 41 एकड़ में फैला हुआ था। लेकिन अब यह साइट पूरी तरह गायब हो चुकी है और इसकी जगह मिट्टी का एक पहाड़ नजर आता है।

मीथेन गैस का खतरा
महमूद बूटी लैंडफिल से सिर्फ बदबू ही नहीं, बल्कि मीथेन गैस का रिसाव भी बड़ी समस्या थी। विशेषज्ञों के मुताबिक, मीथेन कार्बन डाइऑक्साइड से 80 गुना ज्यादा जलवायु परिवर्तन के लिए जिम्मेदार है। साल 2021 में उपग्रहों ने इस साइट के ऊपर मीथेन का एक विशाल बादल देखा था, जिसका आयतन 126 मीट्रिक टन था। इसके अलावा, कचरे से रिसने वाला जहरीला पानी (लीचेट) भूजल को भी प्रदूषित कर रहा था।

लाहौर वेस्ट मैनेजमेंट कंपनी (LWMC) के सीईओ बाबर साहब दीन ने बीबीसी को बताया, “2021 में ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट ने इस समस्या को उजागर किया था। उस वक्त पाकिस्तान दुनिया में मीथेन रिसाव के सातवें सबसे बड़े देशों में शामिल था।”

कचरे से छुटकारा कैसे मिला?
साल 2016 में इस लैंडफिल को बंद कर दिया गया था, लेकिन कचरे का ढेर हटाना चुनौती बना रहा। हाल ही में LWMC और रावी अर्बन डेवलपमेंट अथॉरिटी ने मिलकर एक प्रोजेक्ट शुरू किया। इसके तहत 14 मिलियन टन कचरे को मिट्टी में दबा दिया गया। अब यहां गैस रिसाव के लिए पाइप लगाए गए हैं, ताकि मीथेन बादल की बजाय नियंत्रित तरीके से बाहर निकले।

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भविष्य की योजना
इस प्रोजेक्ट पर करीब 140 करोड़ पाकिस्तानी रुपये खर्च होंगे, लेकिन सरकार का एक पैसा भी इसमें नहीं लगेगा। बाबर साहब दीन ने बताया, “यहां से निकलने वाली मीथेन गैस उद्योगों को बेची जाएगी। साथ ही 11 एकड़ पर 5 मेगावाट का सोलर पार्क और 30 एकड़ पर अर्बन फॉरेस्ट बनाया जाएगा।” यह पूरा खर्च निजी कंपनियां उठाएंगी, जिन्हें ‘कार्बन क्रेडिट्स’ के जरिए भुगतान होगा।

कॉप 26 का संकल्प
पाकिस्तान ने जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र की कॉन्फ्रेंस (कॉप 26) में 2030 तक मीथेन रिसाव को 30 फीसद कम करने का वादा किया है। महमूद बूटी प्रोजेक्ट इस दिशा में एक कदम है। हालांकि, विशेषज्ञों का कहना है कि लाहौर का कचरा अब पास की लक्खू डीर साइट पर जा रहा है, जहां भी ऐसा ही संकट बन रहा है। LWMC का दावा है कि जर्मनी से फंडिंग के साथ वहां भी जल्द काम शुरू होगा।

क्या है कार्बन क्रेडिट?
कार्बन क्रेडिट एक मीट्रिक टन ग्रीनहाउस गैस कम करने पर मिलता है। कंपनियां इसे कार्बन मार्केट में बेच सकती हैं। बाबर साहब दीन को उम्मीद है कि महमूद बूटी से मिलने वाले क्रेडिट्स 18 से 20 डॉलर प्रति यूनिट के हिसाब से बिकेंगे।

अब देखना यह है कि यह मॉडल कितना कामयाब होता है और क्या लाहौर की दूसरी लैंडफिल साइट्स भी इस तरह साफ हो पाएंगी।

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