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भारत में जल संकट गहराया, जलाशयों का जलस्तर 45% तक गिरा

by kishanchaubey
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भारत के प्रमुख जलाशयों में पानी का स्तर तेजी से गिर रहा है। केंद्रीय जल आयोग (CWC) के ताजा आंकड़ों के अनुसार, देश के 155 प्रमुख जलाशयों में पानी सिर्फ 45% बचा है, जो भविष्य के लिए गंभीर चिंता का विषय है।

गर्मी बढ़ी, बारिश अभी दूर

भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (IMD) ने अनुमान लगाया है कि मार्च से मई के बीच लू के दिन सामान्य से अधिक होंगे। इस दौरान तापमान सामान्य से ज्यादा बना रहेगा, जबकि दक्षिण-पश्चिम मानसून के आने में अभी दो महीने का समय बाकी है।

गर्मी और सूखे की इस स्थिति से पीने के पानी, सिंचाई और बिजली उत्पादन पर असर पड़ सकता है।

जलाशयों का जलस्तर – कहां कितनी गिरावट?

CWC की 20 मार्च 2025 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत के 155 प्रमुख जलाशयों की कुल जल क्षमता 18,080 करोड़ क्यूबिक मीटर (BCM) है, लेकिन फिलहाल उनमें सिर्फ 8,070 करोड़ क्यूबिक मीटर पानी बचा है।

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सबसे ज्यादा प्रभावित राज्य

जिन राज्यों में पिछले साल की तुलना में जलाशयों में पानी कम है, वे हैं:

  • उत्तर भारत: हिमाचल प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड
  • पूर्वी भारत: झारखंड, ओडिशा, बिहार, नागालैंड
  • मध्य भारत: छत्तीसगढ़

क्षेत्रवार जल संकट की स्थिति

उत्तर भारत: जलाशयों का जलस्तर सिर्फ 25% बचा है। हिमाचल प्रदेश में सामान्य से 36% कम और पंजाब में 45% कम पानी है।

दक्षिण भारत: आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक, तमिलनाडु और केरल के 43 जलाशयों में सिर्फ 41% पानी बचा है।

पश्चिम भारत: यहां जलाशयों में 55% पानी शेष है, जो अन्य क्षेत्रों की तुलना में बेहतर स्थिति में है।

मध्य भारत: इस क्षेत्र में जलाशयों में 49% पानी शेष है।

पूर्वी भारत: इस क्षेत्र में जलाशयों का जलस्तर 44% दर्ज किया गया है।

नदियों का जलस्तर भी गिरा

भारत की प्रमुख 20 नदी घाटियों में से 14 घाटियों में जलस्तर 50% से भी कम रह गया है।

गंगा नदी – अपनी क्षमता के 50% पर
गोदावरी नदी – 48% पर
नर्मदा नदी – 47% पर
कृष्णा नदी – सिर्फ 34% पानी बचा

जल संकट के असर

  1. कृषि पर प्रभाव: जलाशयों और नदियों में पानी कम होने से रबी और खरीफ के बीच गर्मी की फसलों की पैदावार प्रभावित होगी।
  2. पीने के पानी की कमी: जल संकट का सबसे बड़ा असर पीने के पानी की उपलब्धता पर पड़ेगा।
  3. बिजली उत्पादन पर असर: जलविद्युत संयंत्रों को सुचारू रूप से चलाने के लिए पर्याप्त पानी की आवश्यकता होती है।
  4. पर्यावरणीय असंतुलन: नदियों का जलस्तर गिरने से जलीय जीवों और वनस्पतियों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा।
  5. सामाजिक-आर्थिक प्रभाव: जल संकट से प्रभावित क्षेत्रों में ग्रामीण आजीविका और अर्थव्यवस्था पर असर पड़ सकता है।

क्या किया जा सकता है?

  • वाटर हार्वेस्टिंग: बारिश के पानी को संचित करने और जल स्तर बढ़ाने के लिए प्रभावी उपाय अपनाने होंगे।
  • जल संरक्षण: घरेलू और औद्योगिक जल उपयोग को नियंत्रित कर अनावश्यक बर्बादी रोकनी होगी।
  • नई सिंचाई तकनीकें: टपक (drip) सिंचाई जैसी आधुनिक तकनीकों को अपनाने से कम पानी में अधिक फसल उगाई जा सकती है।
  • नीतिगत हस्तक्षेप: सरकार को जल संरक्षण के लिए सख्त नीतियां लागू करनी होंगी।

जल संकट की स्थिति चिंताजनक है। अगर समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए, तो आने वाले महीनों में यह समस्या और विकराल हो सकती है।

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