भोपाल, जिसे झीलों का शहर कहा जाता है, को हाल ही में एक भव्य रूप देने के लिए लाखों-करोड़ों रुपये खर्च किए गए। चमचमाती सड़कें, सजी हुई दीवारें, और लाखों पौधों का हरियाली नेटवर्क—ये सब केवल दुनिया को दिखाने के लिए। लेकिन अब जरा हकीकत पर नज़र डालिए। गर्मी आते ही ये पौधे मुरझाने लगे हैं, पानी देने वाला कोई नहीं और अब ये भगवान के भरोसे छोड़ दिए गए हैं।
ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट की सजावट और हकीकत
24-25 फरवरी को भोपाल में हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट (GIS) में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी सहित 10,000 से अधिक मेहमानों को आकर्षित करने के लिए शहर को ऐसे सजाया गया जैसे किसी अमीर व्यक्ति की शादी हो रही हो। लेकिन जैसे ही मेहमान चले गए, वैसे ही यह खूबसूरती भी फीकी पड़ने लगी।
शहर में 2 लाख पौधे लगाए गए थे, लेकिन अब कोई नहीं जानता कि वे कहां हैं और किस हाल में हैं। हैरानी की बात यह है कि इन पौधों को लगाने में करोड़ों रुपये खर्च किए गए। अगर एक पौधे की लागत और गड्ढा खोदने की मेहनत का खर्च सिर्फ ₹50 भी मानें, तो सिर्फ इन पौधों पर 10 करोड़ रुपये खर्च हो गए।
सरकारी वृक्षारोपण: हरियाली के नाम पर घोटाला?
मध्य प्रदेश में सरकारी वृक्षारोपण हमेशा विवादों में रहा है। यहां हरियाली बढ़ाने के लिए नहीं, बल्कि जेबें भरने के लिए पौधे लगाए जाते हैं।
- याद कीजिए नर्मदा किनारे 6.63 करोड़ पौधे लगाने का गिनीज बुक रिकॉर्ड, जहां करोड़ों रुपये खर्च किए गए लेकिन आज उन पौधों का कोई अता-पता नहीं।
- 6 जुलाई 2024 को ‘एक पेड़ मां’ अभियान के तहत भोपाल में 12 लाख पौधे लगाए गए, लेकिन उनमें से कितने बचे, यह सिर्फ अफसरों की पारखी नजरें ही देख सकती हैं।
पौधों की देखभाल किसकी जिम्मेदारी?
ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट के लिए भोपाल की सजावट की जिम्मेदारी अलग-अलग विभागों को दी गई थी। रेड क्रॉस हॉस्पिटल से व्यापमं स्क्वायर तक की हरियाली का जिम्मा पीडब्ल्यूडी को सौंपा गया था। उन्होंने छोटे-छोटे पौधे लगवा दिए, लेकिन पानी देने की जिम्मेदारी नगर निगम या कैपिटल प्रोजेक्ट एडमिनिस्ट्रेशन पर डाल दी गई। अब पौधे बचें या मुरझाएं, यह जनता की किस्मत पर निर्भर करता है, क्योंकि पैसा भी जनता की जेब से ही गया है।
वृक्षारोपण के असल नियम और सही तरीका क्या है?
पर्यावरणविद् डॉ. सुभाष सिंह पांडे के अनुसार, सफल वृक्षारोपण के कुछ जरूरी नियम होते हैं:
- मानसून या बरसात के मौसम में ही पौधे लगाने चाहिए, तभी वे जीवित रह सकते हैं।
- गड्ढे गहरे खोदकर पौधों की उचित तैयारी करनी चाहिए।
- मध्य प्रदेश वृक्ष संरक्षण अधिनियम 2001 के अनुसार, 6 फीट से बड़े पौधे लगाए जाएं तो उनके बचने की संभावना अधिक होती है।
- स्थानीय या देशी पौधे लगने चाहिए, ताकि वे प्राकृतिक रूप से वातावरण में ढल सकें। विदेशी या सजावटी पौधों पर खर्च किया गया पैसा व्यर्थ जाता है।
अब सवाल उठता है कि यह सरकारी नाटक कब तक चलेगा?
क्या भोपाल को सिर्फ दिखावटी हरियाली चाहिए या असली? क्या हमें इस तरह करोड़ों रुपये की बर्बादी को यूं ही सहना चाहिए?