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मध्य प्रदेश में गहराता जल संकट: क्या हम अभी भी जागेंगे?

by kishanchaubey
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Madhya Pradesh: जब दीपावली के पटाखों से प्रदूषण की बात होती है या होली में पानी की बर्बादी का मुद्दा उठता है, तब यह बहस अक्सर हिंदू-मुस्लिम तक सीमित हो जाती है। लेकिन क्या अब भी हम आंखें मूंदे रहेंगे? जल संकट किसी धर्म या राजनीति का मुद्दा नहीं, बल्कि हमारे अस्तित्व का सवाल है।

भोपाल के पास ही मचा हाहाकार: पानी के लिए जंग

मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल से महज 60 किलोमीटर दूर सीहोर जिले के बिशनखेड़ी और लावाखेड़ी गांव में वह संकट आ गया है, जो आमतौर पर अप्रैल-मई में देखने को मिलता था। गांवों के कुएं सूख चुके हैं, हैंडपंपों में पानी नहीं है और महिलाएं 2 किलोमीटर दूर तक जाकर 15 फीट गहरे गड्ढों से पानी निकालने को मजबूर हैं। हालत इतनी गंभीर है कि गंदे पानी को कपड़ों से छानकर पीना पड़ रहा है।

अब सोचिए, होली पर पानी की बर्बादी करते समय क्या आप इन लोगों से “हैप्पी होली” कह पाएंगे?

क्या कहती हैं रिपोर्ट्स?

भारत में पीने योग्य पानी के लिए ब्यूरो ऑफ इंडियन स्टैंडर्ड्स (BIS) की गाइडलाइंस हैं, जो पानी की शुद्धता का मानक तय करती हैं। लेकिन यहां सवाल BIS मानकों का नहीं, बल्कि पानी की एक-एक बूंद बचाने का है।

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सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड (CGWB) की रिपोर्ट के अनुसार, सीहोर जिले को जल संकटग्रस्त क्षेत्र में नहीं रखा गया है। जब यहाँ हालात इतने खराब हैं, तो सोचिए उन जिलों की स्थिति कैसी होगी, जिन्हें ‘गंभीर’ या ‘विस्फोटक’ श्रेणी में रखा गया है!

मध्य प्रदेश में पानी की स्थिति कितनी खराब है?

CGWB की National Compilation on Dynamic Ground Water Resources of India 2024 रिपोर्ट के अनुसार:

  • मध्य प्रदेश में कुल वार्षिक भूजल पुनर्भरण 35.90 बिलियन क्यूबिक मीटर (BCM) है।
  • इसमें से 19.85 BCM पानी पहले ही निकाला जा चुका है
  • बचा हुआ पानी कितने सालों तक चलेगा, इसका अंदाजा लगाना भी मुश्किल हो रहा है।

किन जिलों में जल संकट सबसे ज्यादा गहरा गया है?

1. अति-शोषित (Over-Exploited) क्षेत्र:

इन जिलों में भूजल का इतना अधिक दोहन हो चुका है कि अब ट्यूबवेल और नलकूपों से पानी की जगह हवा निकलने लगी है।

  • नीमच: मनासा, जावद
  • रतलाम: आलोट, रतलाम, पीपलोदा, जावरा
  • उज्जैन: घटिया, बदनागर, उज्जैन
  • राजगढ़: नरसिंहगढ़, सारंगपुर
  • मंदसौर: मंदसौर, सीतामऊ, गरोठ

अगर जल दोहन इसी तरह जारी रहा, तो आने वाले 5-10 सालों में ये इलाके पूरी तरह से दूसरे क्षेत्रों पर निर्भर हो जाएंगे।

2. गंभीर (Critical) क्षेत्र:

इन जिलों की स्थिति अभी थोड़ी बेहतर है, लेकिन जल्द ही ये भी ‘अति-शोषित’ की श्रेणी में आ सकते हैं।

  • शाजापुर: कालापीपल, मोमन बड़ोदिया, शुजालपुर
  • दतिया: भांडेर
  • विदिशा: ग्यारसपुर, कुरवाई
  • सतना: रामपुर-बघेलान, मैहर, अमरपाटन, सोहावल

क्या बड़े शहर भी पानी की किल्लत झेल रहे हैं?

1. अर्ध-संकटग्रस्त (Semi-Critical) क्षेत्र:

  • इंदौर: महू, सांवेर
  • भोपाल, ग्वालियर, रीवा, जबलपुर

यदि अभी जल संरक्षण के उपाय नहीं किए गए, तो इंदौर, भोपाल, ग्वालियर, जबलपुर जैसे बड़े शहरों को भी भयंकर जल संकट झेलना पड़ेगा।

अब क्या किया जाए?

अगर हमने अभी से जल संरक्षण के लिए ठोस कदम नहीं उठाए, तो आने वाले 10-15 वर्षों में मध्य प्रदेश के कई जिले पूरी तरह से जल संकट की चपेट में आ जाएंगे। हमें तुरंत ये उपाय अपनाने होंगे:

  1. वर्षा जल संचयन (Rainwater Harvesting) को अनिवार्य बनाया जाए।
  2. भूजल पुनर्भरण (Groundwater Recharge) तकनीकों को अपनाया जाए।
  3. बिना प्लानिंग के बोरवेल खोदने पर सख्त प्रतिबंध लगाया जाए।
  4. वनों की कटाई रोकी जाए और ज्यादा से ज्यादा वृक्षारोपण किया जाए।
  5. झीलों, तालाबों और नदियों की सफाई और पुनर्जीवन परियोजनाओं को लागू किया जाए।
  6. औद्योगिक जल अपव्यय को नियंत्रित करने के लिए सख्त कानून बनाए जाएं।

क्या आप तैयार हैं पानी बचाने के लिए?

अगर आप नहीं चाहते कि आपकी आने वाली पीढ़ी सिर्फ इतिहास की किताबों में नदियों और झीलों की कहानियां पढ़े, तो आज ही जल संरक्षण की दिशा में पहला कदम उठाइए

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